Edited By Isha,Updated: 10 Jun, 2018 01:22 PM
शिवसेना और जनता दल(यू) मौजूदा तेवरों को देखते हुए यदि वे दोनों भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विरुद्ध लामबंद हो रहे दलों के साथ खड़े हो जाते हैं तो उसे अगले साल होने वाले आम चुनाव के लिए सहयोगी जुटाने और केंद्र में सरकार बनाने में मुश्किलों का
नई दिल्ली (वार्ता) : शिवसेना और जनता दल(यू) मौजूदा तेवरों को देखते हुए यदि ये दोनों दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विरुद्ध लामबंद हो रहे दलों के साथ खड़े हो जाते हैं तो उसे अगले साल होने वाले आम चुनाव के लिए सहयोगी जुटाने और केंद्र में सरकार बनाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 282 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत हासिल किया था लेकिन उसने सहयोगी दलों को साथ लेकर केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार बनायी थी। उस समय 18 सीटों के साथ शिवसेना और 15 सीटों के साथ तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) उसके दो बड़े सहयोगी दल थे। इनमें से तेदेपा ने भाजपा से नाता तोड़ लिया है जबकि शिवसेना अगला आम चुनाव भाजपा से अलग होकर लडऩे की बात लगातार कह रही है। हाल में पालघर संसदीय सीट का उपचुनाव उसने भाजपा के विरुद्ध लड़ा था हालांकि उसे पराजय का सामना करना पड़ा।
पिछले चुनाव में मिलकर बनाई थी सरकार
पिछले लोकसभा चुनाव में जनता दल(यू) भाजपा के साथ नहीं थी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाद में भाजपा के साथ हाथ मिलाकर राज्य में साझा सरकार बनाई और अब उनकी पार्टी राजग का हिस्सा है। जद यू ने अगले आम चुनाव के लिये राज्य की 40 सीटों में से 25 उसे देने की मांग उठा कर भाजपा के लिये मुश्किल पैदा कर दी है। पिछले चुनाव में भाजपा ने राज्य में 22 सीटें जीती थीं जबकि उसके सहयोगी दलों लोक जनशक्ति पार्टी को छह तथा आरएलएसपी को तीन सीटें मिली थीं।
भाजपा को कोई बड़ा सहयोगी दल ढूंढऩे के पड़ सकते लाले
केंद्र में भाजपा का साथ दे रहे अन्य प्रमुख दलों की बात करें तो लोक जनशक्ति पार्टी और आरएलएसपी के अलावा अकाली दल के पास चार, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के पास तीन तथा अपना दल के पास दो सीटें हैं। विभिन्न राज्यों की स्थिति पर नजर डालें तो शिवसेना और जनता दल यू के अलग हो जाने पर भाजपा को कोई बड़ा सहयोगी दल ढूंढऩे के लाले पड़ सकते हैं।