दिल्ली चुनाव पर भी असर डालेगा 370, जानिए कैसे

Edited By Seema Sharma,Updated: 06 Aug, 2019 12:16 PM

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आर्टिकल 370 पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया के दूरगामी असर पड़ते दिख रहे हैं। खासकर अगले कुछ महीनों में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव पर 370 की छाया जरूर रहने वाली है।

नई दिल्ली (नवोदय टाइम्स): आर्टिकल 370 पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया के दूरगामी असर पड़ते दिख रहे हैं। खासकर अगले कुछ महीनों में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव पर 370 की छाया जरूर रहने वाली है। शायद यही कारण है कि आम आदमी पार्टी ने सरकार के फैसले को हाथोंहाथ लिया और बिना देर किए अपना समर्थन दिया। इसका फायदा उसे कितना होगा और कांग्रेस को कितना नुकसान, यह वक्त ही बताएगा। एक के बाद एक चुनाव हारते जाने के बाद भी कांग्रेस जनभावना को समझने में कहीं न कहीं चूक करती जा रही है। 2014 के बाद हुए तमाम चुनावों में कांग्रेस की यही चूक उसकी हार का बड़ा कारण बनता रहा और फिर भी उसने सबक नहीं लिया।

 

हाल के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से पाकिस्तान पर हुए ‘एयर स्ट्राइक’ की घटना राष्ट्रवाद के नाम पर चुनावी मुद्दा बना, उसका भी आकलन करने में कांग्रेस ने चूक की, जिसका परिणाम उसे भुगतना पड़ा। माहौल अभी भी बहुत ज्यादा नहीं बदला है। ऐसे में कश्मीर से 370 को हटाए जाने पर कांग्रेस को कहीं फिर से भारी न पड़ जाए। दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनावों में एक बार फिर, राष्ट्रवाद, कश्मीर और पाकिस्तान का मुद्दा अहम मुद्दा बनता दिख रहा है। देशभर में जिस तरह से लोग जश्न मना रहे हैं, ये उनकी भावनाओं का प्रदर्शन है। दिल्ली में विस्थापित कश्मीरी पंडितों में एक बड़ा समूह रहता है, जो धारा 370 के हटाए जाने से काफी खुश हैं। कश्मीरी पंडितों के साथ लोगों की भी सहानुभूति है।

 

संभवत: इसी तरह आम आदमी पार्टी ने सरकार के फैसले का समर्थन किया जबकि इसका विरोध जता रही कांग्रेस शायद जनभावना को समझने में कहीं चूक करती दिख रही है। स्थानीय कांग्रेसियों के मुताबिक संसद में कांग्रेस नेताओं की प्रतिक्रिया का नकारात्मक असर पड़ सकता है। वहीं आम आदमी पार्टी द्वारा समर्थन किए जाने को चुनावी चाल के रूप में मान रहे हैं। दरअसल इस मुद्दे पर राज्यसभा में कांग्रेस के रूख को लेकर दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। कुछ का कहना है कि विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद को अपना पक्ष रखते हुए रखते हुए सीधा इसका विरोध नहीं बल्कि सरकार से सभी दलों के नेताओं के साथ बाचचीत कर कोई बीच का रास्ता निकालने के लिए सुझाव देना चाहिए था।

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