सर्वेः भारत में 89% लोग हैं तनाव के शिकार

Edited By Seema Sharma,Updated: 12 Aug, 2018 02:24 PM

89 of people in india are victims of stress

‘‘इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है।’’ शहरयार ने करीब 40 बरस पहले महानगरीय जीवन की भागदौड़ पर यह सवाल पूछा था, लेकिन आज आलम यह है कि बात शहर से बढ़कर देश तक पहुंच गई है। एक हालिया सर्वे की मानें तो भारत में 89 प्रतिशत लोग तनाव का शिकार हैं

नई दिल्ली: ‘‘इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है।’’ शहरयार ने करीब 40 बरस पहले महानगरीय जीवन की भागदौड़ पर यह सवाल पूछा था, लेकिन आज आलम यह है कि बात शहर से बढ़कर देश तक पहुंच गई है। एक हालिया सर्वे की मानें तो भारत में 89 प्रतिशत लोग तनाव का शिकार हैं, जबकि वैश्विक औसत 86 प्रतिशत है। सर्वे में शामिल लोगों में से हर आठ तनावग्रस्त लोगों में से एक व्यक्ति को इन परेशानियों से निकलने में गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। लोग कई कारणों से अपनी इस समस्या का इलाज नहीं करा पाते। इनमें सबसे बड़ी समस्या इसके इलाज पर आने वाले खर्च की है। यह सर्वे अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, चीन, ब्राजील और इंडोनेशिया सहित 23 देशों में किया गया और इसके नतीजे भारत के लिए चिंता की बात हो सकते हैं क्योंकि दुनिया के इन तमाम देशों के मुकाबले भारत के लोग कहीं ज्यादा तनाव का सामना कर रहे हैं। सिग्ना टीटीके हेल्थ इंश्योरेंस ने अपने सिग्ना ‘360 डिग्री वेल-बीइंग सर्वेक्षण-फ्यूचर एश्योर्ड’ की एक रिपोर्ट जारी की है। विकसित और कई उभरते देशों की तुलना में भारत में तनाव का स्तर बड़े रूप में है।

इस सर्वे के दौरान दुनिया के विभिन्न देशों में रहने वाले 14,467 लोगों का ऑनलाइन इंटरव्यू लिया गया। जिसके बाद ये सामने आया कि भारत लगातार चौथे साल तनाव के मामले में दुनिया के बाकी देशों से कहीं आगे है। भारत में जितने लोगों को इस सर्वे में शामिल किया गया उनमें से 75 प्रतिशत का कहना था कि वह अपने तनाव की समस्या के बारे में चिकित्सकीय मदद नहीं ले पाते क्योंकि अगर वह इस समस्या के निदान के लिए किसी पेशेवर चिकित्सक के पास जाते हैं तो उन्हें इसके लिए बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है। तनाव के कारणों की बात की जाए तो लोगों का काम और उनकी आर्थिक स्थिति इसकी सबसे बड़ी वजह है। हालांकि ज्यादातर लोगों का कहना था कि अगर उनके कार्यस्थल का माहौल उनके अनुकूल हो तो उनके तनाव का स्तर कम हो सकता है। वैसे यह राहत की बात है कि सर्वे में शामिल 50 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इस बारे में बात करने पर उन्हें कार्यस्थल पर सहयोग मिला और वह कार्यस्थल स्वास्थ्य कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं।

अधिकतर लोगों, करीब 87 प्रतिशत ने कहा कि अगर उन्हें किन्ही दो नियोक्ताओं में से किसी एक को चुनना हो तो वह उसे चुनेंगे जहां उन्हें काम करने की अनुकूल परिस्थितियां और कार्यस्थत स्वास्थ्य कार्यक्रमों की सहूलियत मिलेगी। सर्वे के निष्कर्ष से यह तथ्य सामने आया कि भारत में हर दो में से एक व्यक्ति वृद्धावस्था में अपनी बचत से अपने स्वास्थ्य संबंधी खर्च पूरे करता है और उसके बाद बीमे का नंबर आता है। भारत में हर दस में से चार लोग अपने लिए स्वास्थ्य बीमा लेते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि वृद्धावस्था की ओर बढ़ रहे लोग इस मामले में बेहतर तैयारी करते हैं और नियमित स्वास्थ्य जांच के साथ ही बीमा भी कराते हैं। लोगों के तनावग्रस्त होने के कारणों में मोटापा और बीमारी भी शामिल है और इस क्रम में नींद संबंधी परिवर्तनों का स्थान सबसे नीचे रहा।

सर्वे में शामिल 50 प्रतिशत तादाद ऐसे लोगों की थी, जो सामाजिक व्यस्तता में कमी और परिवार और दोस्तों के साथ पर्याप्त समय न गुजार पाने और अपने शौक पूरे न कर पाने के कारण तनाव का शिकार हो जाते हैं। माता पिता की देखभाल और बच्चों को उनके पैरों पर खड़ा करने की जद्दोजहद भी बहुत लोगों को तनाव के दरवाजे पर पहुंचा देती है। वैसे आज इंसान की हालत मशीन जैसी हो गई है। हर दिन अपनी हसरतों के पीछे भागता है और हर रात अपनी कोशिशों के नाकाम होने का मलाल करता है। ऐसे में अगर उसे तनाव हो जाए तो उसके लिए जिम्मेदार भी वह खुद ही है क्योंकि, ‘‘इन उम्र से लंबी सड़कों को, मंजिल पे पहुंचते देखा नहीं, यूं भागती दौड़ती फिरती हैं, हमने तो ठहरते देखा नहीं।’’

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