Edited By Seema Sharma,Updated: 16 Dec, 2018 08:37 AM
सी.बी.आई. के निदेशक आलोक वर्मा उस दिन को कोस रहे होंगे जब उन्होंने समझौते के लिए सरकार की पेशकश को ठुकरा दिया था। सरकार ने सितम्बर महीने में उनके समक्ष एक शांति फार्मूला रखा था कि उनके डिप्टी राकेश अस्थाना
नेशनल डेस्कः सी.बी.आई. के निदेशक आलोक वर्मा उस दिन को कोस रहे होंगे जब उन्होंने समझौते के लिए सरकार की पेशकश को ठुकरा दिया था। सरकार ने सितम्बर महीने में उनके समक्ष एक शांति फार्मूला रखा था कि उनके डिप्टी राकेश अस्थाना उनसे माफी मांग लेंगे और सी.बी.आई. में उनकी मनपसंद के अधिकारियों को नियुक्त किया जाएगा। इसके अलावा उनको सेवानिवृत्ति के बाद अच्छा पद भी दिया जाएगा मगर वर्मा ने अपनी अलग राह चुनी और इस पेशकश को ठुकरा दिया। इसकी बजाय उन्होंने टकराव का रास्ता अपनाया जो अंतत: सरकार द्वारा आधी रात को उनको निदेशक पद से जब्री छुट्टी पर भेजने के साथ खत्म हुआ।
उन्होंने अपनी जब्री छुट्टी को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी जहां मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोर्ई के नेतृत्व में एक पीठ ने उनके मामले की सुनवाई की। ऐसी आशा थी कि सुप्रीमकोर्ट जल्द ही फैसला सुना देगी मगर इंतजार लम्बा होता गया क्योंकि 2 सप्ताह पूर्व सुप्रीमकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। जस्टिस गोगोई तेजी के साथ फैसले देने के लिए मशहूर हैं लेकिन वर्मा भाग्यशाली नहीं और सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार से शीतकालीन अवकाश शूरू हो गए हैं जिससे वर्मा बहुत हताश हैं। अब सुप्रीमकोर्ट 2 जनवरी को खुलेगा और अभी यह मालूम नहीं कि उनका मामला पहले सप्ताह में आएगा या बाद में।
वर्मा की दुविधा यह है कि वह 1 फरवरी को सेवानिवृत्त हो रहे हैं जिसका अर्थ है कि क्या वह 2 सप्ताह या उससे कम समय के लिए फिर से निदेशक पद पर बहाल होंगे जिसका कोई अर्थ नहीं होगा। अदालत के मूड को महसूस करते हुए कहा जा सकता है कि वर्मा को सी.बी.आई. के निदेशक पद पर बहाल होने के बावजूद पूरे अधिकार मिलने की संभावना नहीं। सी.वी.सी. ने पहले ही कुछ विपरीत रिपोर्ट दी है जिस पर सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि कुछ अपमानजनक है और कुछ मामलों में निंदनीय है। वर्मा यह नहीं जानते कि लगभग 2 महीने वह घर में क्या करें।