बिन आंखों के पाई मंजिल ,कायम की नई मिसाल

Edited By ,Updated: 07 Jul, 2015 11:02 AM

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कोशिश करने वालों की हार नहीं होती इस कहावत पर खरा उतरा है यह शख्स जिसने आंखों की रोशनी न होने के बावजूद

नई दिल्ली : कोशिश करने वालों की हार नहीं होती इस कहावत पर खरा उतरा है यह शख्स जिसने आंखों की रोशनी न होने के बावजूद केवल सुनकर पढ़ा और यूपीएससी में सफलता हासिल की। बचपन में जब लोग खेलते थे, तो मेरा भी खेलने का मन करता पर कोई खिलाता नहीं। कहते अंधा क्या खेलेगा, पढ़कर क्या करेगा? ये ताने मिलते। घर आकर रोता अपना गुस्सा खुद पर निकालता लेकिन मां हौसला देती और इस हौसले ने ताकत दी। आठ साल की उम्र तक 25 प्रतिशत दिखता था फिर पूरी रोशनी चली गई। एक कविता फिर दिमाग में घर कर गई थी- कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...। 
 
 स्कूल में हमेशा आगे रहा फिर कॉलेज किया। प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी की। 2007 में सीजीपीएससी में नेत्रहीन आशीष सिंह ठाकुर चुने गए। उन्हें  देखकर लगा कि मुझे सिविल सर्विसेज की परीक्षा क्लीयर करनी ही है। आखिरकार इसके बाद परीक्षा की तैयारी शुरू की। मैंने स्टडी मटेरियल को रिकार्ड करवाया। उसे दिनभर सुनकर इसी तरह याद करता। मुझे सीजी पीएससी 2008 और 2011 दोनों में कामयाबी मिली। पीएससी 2011 में राज्य में 10वीं रैंक आया । उम्र ज्यादा होने का हवाला दिया गया और मुझे डिप्टी कलेक्टर बनने से रोक दिया गया। नायब तहसीलदार का पद दिया गया। 
 
मैंने हाईकोट में अपील की। केस चल रहा है। इसके बाद जिंदगी बदली। लोगों का नजरिया बदला। फिर, 2011 में एसएससी के जरिए नेशनल सैंपल सर्वे ऑफ इंडिया की बिलासपुर ब्रांच में असिस्टेंट सुप्रिटेंडेंट के रूप में सलेक्ट हुआ। मोहल्ले के ताने देने वाले लोगों ने सराहा। मैंने  पढ़ाई जारी रखी। हर वक्त मोबाइल में रिकॉर्डेड बुक सुनता रहता। आखिरकार यूपीएससी में सफलता मिली। 

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