Edited By Monika Jamwal,Updated: 12 Mar, 2019 06:56 PM
मछली खाने के शौकीन मछली का सेवन जरा ध्यान से ही करें तो अच्छा है।
कठुआ : मछली खाने के शौकीन मछली का सेवन जरा ध्यान से ही करें तो अच्छा है। पर्यावरण की दृष्टि में और मनुष्य सेवन के लिए हानिकारक मंगूर ब्रीड की मछली की फार्मिंग और बेचने पर पंजाब मेुं प्रतिबंध लगाए जाने के बाद इसकी खेप खपाने के चक्कर में रियासत जम्मू कश्मीर की ओर पंजाब के व्यापारी लगातार रुख कर रहे हैं। अधिकारिक सूत्रों की मानें तो हालांकि इसकी बिक्री पर रियासत जम्मू कश्मीर में किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है जिसके चलते बेधडक़ से चोरी छिपे पंजाब के व्यापारी इस ब्रीड की मछली को खपाने के चक्कर में जम्मू कश्मीर की ओर धकेल रहे हैं। परंतु रियासत का मत्सय पालन विभाग शायद इस जानकारी से बेखबर है। यही कारण है कि यहां इस मछली की बिक्री जोरों पर है।
कठुआ में स्थानीय मछली विक्रेताओं की मानें तो मंगूर ब्रीड का मछली का कारोबार पंजाब के लुधियाना शहर से हो रहा है। वहां के व्यापारी सुनियोजित ढंग से मछली रियासत जम्मू कश्मीर तक पहुंचाते हैं। हर रोज सुबह करीब तीन बजे गाडिय़ां रियासत में प्रवेश करती हैं। जिसके बाद स्थानीय मछली विक्रेताओं के पास यह मछली की खेप पहुंचाई जाती है। यह मछली मृत नहीं बल्कि एक विशेष ड्रमों में डाल जीवित तरीके से यहां पहुंचाई जाती है। स्थानीय विक्रेताओं ने यहां बकायदा गौदाम बना रखे हैं। जहां पर मछलियों का स्टाक रखा जाता है। आम तौर पर कठुआ के हटली मोड़ इलाके में प्रवासी मछली विक्रेता इस कारोबार को अंजाम दे रहे हैं। वे बेहतरीन ढंग से मछली को जीवित ही ड्रम में डाल ग्राहकों को लुभाने का प्रयास करते हैं लेकिन इस मछली के सेवन करने से होने वाले नुकसान से अंजान लोग इसका सेवन करते हैं।
सूत्रों की मानें तो यह मछली बड़े शहरों के सीवरेज में भी तैयार होती है। कीचड़ में रहने की क्षमता रखने वाली इस मछली को सीवरेज मेें भी तैयार किया जाता है। अगर लोगों को इसकी जानकारी होगी तो शायद ही इस मछली का सेवन कोई करना पसंद करेगा और साथ ही विभाग भी इस तरह की मछली, जिसपर पंजाब सरकार ने गत दो सालों से फार्मिंग और बिक्री पर प्रतिबंध लगा रखा है, उसके रियासत में प्रवेश न होने देने पर कार्रवाई करेगा।
क्या है मंगूर ब्रीड का मछली में
अफ्र ीकी शार्प कैटफिश को भारत में मंगूर या फिर मगूर नाम से जाना जाता है। यह मछली देसी मछलियों के अलावा छोटे पक्षियों और जानवरों को भी अपना निवाला बनाती है। मछली की यह विशिष्ट ब्रीड (क्लारियास गाइरिपिनस ) पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव डालती है। आपको बता दें कि भारत के कई हिस्सों के अलावा इस मछली पर विदेश मेें भी प्रतिबंध है। चूंकि यह मछली तैयार जल्दी हो जाती है, इसीलिए यह मार्केट में आसानी से उपलब्ध हो जाती है। यह हवा में तीन से पांच फुट तक सांस लेने में सक्षम होने के साथ साथ सूखी जमीन पर भी रेंग सकती है। चंूकि यह गंदे गट्टर, गंदे कीचड़ आदि में भी रह सकती है और इसकी फार्मिंग वहां भी होती है, इसीलिए मनुष्य सेवन के लिए यह हानिकारक भी बताई जाती है।
विभाग को एहतियातन उठाना होगा कदम
पंजाब सरकार की इस मछली पर प्रतिबंध को लेकर हुई पहल के बाद रियासत जम्मू कश्मीर में भी मत्सय पालन विभाग को कदम उठाने होंगे। चूंकि अगर इस मछली को किसी भी अन्य तालाब या फिर दरिया में डाल दिया जाए, तो यह मछली अन्य प्रजातियों की मछली को खा लेगी। ऐसे में विभाग को चाहिए कि इसके रियासत में प्रवेश करने पर ही प्रतिबंध लगाने को लेकर प्रयास करे। ताकि रियासत में पलने वाली अन्य प्रजातियों की मछलियों को किसी तरह का नुकसान न हो। अगर कोई इस मछली को गलती से भी कहीं तालाब या दरिया किनारे छोड़ देता है तो इसका नुकसान मत्सय पालन विभाग को अन्य प्रजातियों की मछलियों का नुकसान उठाकर झेलना पड़ सकता है।
क्या कहते हैं अधिकारी
लाल हुसैन, सहायक निदेशक मत्सय पालन विभाग कठुआ
इस ब्रीड की मछली की बिक्री पर यहां कोई प्रतिबंध नहीं है। हां, लेकिन इस ब्रीड की मछली को यहां फार्मिंग हम नहीं करने देते क्योंकि इस ब्रीड की मछली अन्य मछलियों को निवाला बनाती है। चूंकि यह अन्य मछलियों के लिए हानिकारक है। परंतु इसकी बिक्री को लेकर यहां प्रतिबंध नहीं है।
जसबीर सिंह, सहायक निदेशक फिशरी, गुरदासपुर पंजाब
यह मछली मांसाहारी है। यह पर्यावरण को भी दूषित करती है और मनुष्य के सेवन के लिए भी हानिकारक है। यह गंदे कीचड़ सहित अन्य स्थानों पर भी तैयार हो जाती है। इसीलिए इसपर पंजाब सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा है।