‘पत्नी या पति को ‘भूत' ‘पिशाच' कहना क्रूरता नहीं’, वैवाहिक रिश्तों पर अदालत की टिप्पणी

Edited By Yaspal,Updated: 30 Mar, 2024 05:12 PM

calling wife or husband  ghost  or  vampire  is not cruelty  court comments

पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि असंतोष के कारण एक-दूसरे से अलग रह रहे जोड़े अगर ‘‘खराब भाषा'' का इस्तेमाल कर एक-दूसरे को ‘‘भूत'' और ‘‘पिशाच'' जैसे नामों से बुलाते हैं तो यह क्रूरता के दायरे में नहीं आता है।

नेशनल डेस्कः पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि असंतोष के कारण एक-दूसरे से अलग रह रहे जोड़े अगर ‘‘खराब भाषा'' का इस्तेमाल कर एक-दूसरे को ‘‘भूत'' और ‘‘पिशाच'' जैसे नामों से बुलाते हैं तो यह क्रूरता के दायरे में नहीं आता है। यह टिप्पणी जस्टिस बिबेक चौधरी की पीठ की ओर से आई, जो झारखंड से सटे बोकारो के निवासी सहदेव गुप्ता और उनके बेटे नरेश कुमार गुप्ता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पिता-पुत्र की जोड़ी ने नरेश गुप्ता की तलाकशुदा पत्नी द्वारा अपने मूल निवास स्थान नवादा में दायर एक शिकायत पर बिहार के नालंदा जिले की अदालतों द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी।

शिकायतकर्ता ने 1994 में अपने पति और ससुर के खिलाफ दहेज में कार की मांग को लेकर दबाव बनाने के लिए शारीरिक और भौतिक यातना देने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था। बाद में पिता-पुत्र की प्रार्थना पर मामले को नवादा से नालंदा स्थानांतरित कर दिया गया, जिन्हें 2008 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा एक वर्ष के लिए कठोर कारावास की सजा सुनाई गई और अतिरिक्त सत्र अदालत ने उनकी अपील को दस साल बाद खारिज कर दिया। इस बीच, झारखंड की एक अदालत में दंपती का तलाक हो गया।

पटना हाईकोर्ट के समक्ष दायर याचिका का विरोध करते हुए, तलाकशुदा महिला के अधिवक्ता ने दलील दी कि ‘‘21वीं सदी में एक महिला को उसके ससुराल वालों द्वारा ‘भूत' और ‘पिशाच' कहा जाता था, जो अत्यधिक क्रूरता का एक रूप था। हालांकि, अदालत ने कहा कि वह इस तरह के तर्क को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है।

पीठ ने कहा, ‘‘वैवाहिक संबंधों में, विशेष रूप से असफल वैवाहिक संबंधों में, ‘पति और पत्नी दोनों' द्वारा ‘गंदी भाषा' के साथ ‘एक-दूसरे को गाली देने' के उदाहरण सामने आए हैं। उन्होंने कहा, ‘हालांकि, ऐसे सभी आरोप क्रूरता के दायरे में नहीं आते हैं।' हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को सभी आरोपियों ने ‘परेशान' किया तथा ‘क्रूरतापूर्वक प्रताड़ित' किया था। तदनुसार, निचली अदालतों द्वारा पारित निर्णयों को रद्द कर दिया गया, हालांकि "लागत के संबंध में कोई आदेश नहीं था"।

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