सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा, क्या SC/ST समृद्धों को रखा जा सकता है प्रमोशन कोटा से दूर

Edited By Yaspal,Updated: 16 Aug, 2018 10:55 PM

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सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र से पूछा कि क्या एससी/एसटी में समृद्ध लोगों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में कोटा का लाभ प्राप्त करने से बाहर रखना चाहिए, ताकि इन समुदायों में पिछड़े हुए लोग आगे बढ़ सकें।

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र से पूछा कि क्या एससी/एसटी में समृद्ध लोगों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में कोटा का लाभ प्राप्त करने से बाहर रखना चाहिए, ताकि इन समुदायों में पिछड़े हुए लोग आगे बढ़ सकें। इसके जवाब में केंद्र ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष अनुसूचित जाति (एससी)/अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों से जुड़े सरकारी कर्मचारियों के लिए पदोन्नति में कोटा का पुरजोर समर्थन किया।

केंद्र ने कहा कि जाति और पिछड़ेपन का ‘‘दंश एवं ठप्पा’’ अब भी उन लोगों के साथ जुड़ा हुआ है। ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा का जिक्र करते हुए अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि इसे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत कोटा का लाभ प्राप्त करने से समृद्ध लोगों को बाहर रखने के लिए लाया गया था और इसे एससी/एसटी पर लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि उनके पिछड़ेपन की एक कानूनी धारणा है।

ऊंची जाति में नहीं कर सकता शादी
वेणुगोपल ने पीठ से कहा, ‘‘इन्हें अपनी ही जाति के अंदर शादी करनी होती है। यहां तक कि एससी/एसटी समुदाय का एक समृद्ध व्यक्ति भी ऊंची जाति में शादी नहीं कर सकता है। यह तथ्य कि कुछ लोग समृद्ध हो गए हैं, जाति और पिछड़ेपन के ठप्पे को नहीं मिटाता है।’’ पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा भी शामिल थे।

शीर्ष विधि अधिकारी पीठ के सवालों का जवाब दे रहे थे। दरअसल, शीर्ष न्यायालय ने पूछा था कि सवाल यह है कि क्या ऐसे लोग जो ऊपर आ गए हैं, उन्हें बाहर रखना चाहिए और जो ऊपर नहीं आ सके हैं क्या उन्हें कोटा का फायदा दिया जाना चाहिए। वेणुगोपाल ने कहा कि एस/एसटी के लोग सदियों से मुख्य धारा से बाहर रखे गए और जाति का ‘‘दंश एवं ठप्पा’’ अब भी उनके साथ जुड़ा हुआ है। इसके अलावा एससी और एसटी कौन है, इस बारे में राष्ट्रपति और संसद को फैसला करना है।

अब भी होता है भेदभाव
उन्होंने भेदभावपूर्ण जाति प्रथा को बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि एससी/एसटी के साथ अब भी भेदभाव होता है और यहां तक कि उन्हें ना तो ऊंची जाति में शादी करने की इजाजत है, ना ही वे घोड़ी पर चढ़ सकते हैं। वेणुगोपाल ने कहा कि यहां तक कि एससी और एसटी की कुछ खास श्रेणियों में वे लोग आपस में शादी नहीं कर सकते हैं और ना ही सामाजिक संबंध रख सकते हैं।

उन्होंने एससी और एसटी समुदाय के उन लोगों की दशा का भी जिक्र किया जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया है। उन्होंने कहा कि इन लोगों का धर्म तो बदल गया लेकिन भेदभाव बहुत कुछ बना हुआ है। वेणुगोपाल ने कहा कि 2006 के एम नागराज फैसले पर पुर्निवचार करने की जरूरत है। बहरहाल, इस विषय पर आगे की दलीलें फिर से 22 अगस्त को शुरू होंगी।

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