ऑफ द रिकार्ड: जींद की हार ने गहराया कांग्रेस का संकट

Edited By Anil dev,Updated: 02 Feb, 2019 08:23 AM

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अगर जींद उप-चुनाव में रणदीप सिंह सुर्जेवाला की शर्मनाक पराजय के बाद भूपिन्द्र सिंह हुड्डा यह सोचते हैं कि इससे प्रदेश में पार्टी की कमान अपने हाथ में लेने के उनके मौके बढ़ जाएंगे तो निश्चित तौर पर वह बिल्कुल गलत सोच रहे हैं।

नई दिल्ली: अगर जींद उप-चुनाव में रणदीप सिंह सुर्जेवाला की शर्मनाक पराजय के बाद भूपिन्द्र सिंह हुड्डा यह सोचते हैं कि इससे प्रदेश में पार्टी की कमान अपने हाथ में लेने के उनके मौके बढ़ जाएंगे तो निश्चित तौर पर वह बिल्कुल गलत सोच रहे हैं। राहुल गांधी ने व्यक्तिगत रूप से हुड्डा को उप-चुनावों से पहले जींद से उम्मीदवार का नाम बताने के लिए कहा था लेकिन उन्होंने कोई नाम नहीं बताया। सूत्रों के अनुसार उन्होंने पूर्व कांग्रेसी और निर्दलीय उम्मीदवार जयप्रकाश से बात करने के लिए कहा था। हालांकि जे.पी. कांग्रेस में वापसी करने और फिर से चुनाव लडऩे के मूड में नहीं थे। वह अपने परिवार के किसी सदस्य को उप-चुनाव के मैदान में उतारना चाहते थे। बस यहीं से हुड्डा की स्थिति कमजोर होती चली गई। 

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हुड्डा के ग्राफ में बहुसंख्या जाट मतदाताओं के जननायक जनता पार्टी (जे.जे.पी.) के दिग्विजय सिंह के पक्ष में जाने से भी गिरावट आई जिन्होंने सुर्जेवाला के 22,740 मतों के मुकाबले 37,631 मत हासिल किए। इससे स्पष्ट हो गया कि जहां एक ओर गैर जाट वोट भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में गए, वहीं जाट मतदाताओं ने जे.जे.पी. के पक्ष में मतदान किया। अभय चौटाला जिन्होंने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन भी किया था को जाट मतदाताओं ने पूरी तरह से नकार दिया। इससे जे.जे.पी. ने स्पष्ट रूप से जता दिया कि वह असली इंडियन नैशनल लोकदल (आई.एन.एल.डी.) के उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित होने का माद्दा रखती है। चौटाला के उम्मीदवार को बामुश्किल 3454 वोट मिले लेकिन हुड्डा की चिंता यह है कि अगर सभी गैर जाट वोटर भाजपा के पक्ष में चले गए और जाट मतदाताओं ने भी समर्थन नहीं दिया, तब इसका क्या असर होगा। 

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प्रदेश के अधिकांश जाट नेता जाट आंदोलन दौरान हुई ङ्क्षहसा को लेकर हुड्डा के खिलाफ लामबंद हो गए थे। इस आंदोलन के चलते गैर जाट मतदाता कांग्रेस से पूरी तरह छिटक गए। देखा जाए तो जींद में भाजपा की जीत से स्पष्ट संकेत हैं कि गैर जाट मतदाताओं ने भाजपा को जीत दिलाकर खुद को सांत्वना दी है। साथ ही हरियाणा में चौतरफा घमासान को कांग्रेस के खात्मे की तयशुदा दवाई बना दिया है। हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने राहुल गांधी को कहा था कि जींद में एक बेहद मजबूत प्रत्याशी ही पार्टी की जीत के रास्ते सुनिश्चित कर सकता है। तंवर कांग्रेस की ओर से एक सशक्त चेहरा चाहते थे, उल्टे ङ्क्षचतित तो भाजपा को होना चाहिए जिसके बागी प्रत्याशी ने चुनाव में 13 हजार से ज्यादा वोट झटक लिए। कांग्रेस को गैर जाट वोटरों को लुभाने की दरकार है। कहा जा रहा है कि प्रदेश से जितनी जल्दी हुड्डा का बोरिया-बिस्तर बंधेगा, उतना ही कांग्रेस के लिए बेहतर होगा। रणदीप सुर्जेवाला ने इस चुनौती को स्वीकार किया और चुनावी समर में कूद गए। परिणाम चाहे जो भी हो कांग्रेस में संकट और गहरा गया है। सभी की निगाहें हुड्डा की ओर हैं कि वे अब आगे क्या करते हैं। 

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