चिदंबरम का दावा- आज देश में है भय का शासन

Edited By Anil dev,Updated: 06 Feb, 2019 05:00 PM

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वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पी चिदंबरम ने दावा किया कि आज देश में भय का शासन है और इस बात का खतरा है कि संविधान को ङ्क्षहदुत्व से प्रेरित एक दस्तावेज से बदल दिया जाएगा। पूर्व वित्त एवं गृह मंत्री ने कहा कि यह परि²श्य राष्ट्र के संस्थापकों द्वारा दिये गए...

नई दिल्ली: वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पी चिदंबरम ने दावा किया कि आज देश में भय का शासन है और इस बात का खतरा है कि संविधान को ङ्क्षहदुत्व से प्रेरित एक दस्तावेज से बदल दिया जाएगा। पूर्व वित्त एवं गृह मंत्री ने कहा कि यह परि²श्य राष्ट्र के संस्थापकों द्वारा दिये गए ‘भारत के विचार’ को खत्म कर देगा और इसे बरकरार रखने के लिये एक अन्य स्वतंत्रता आंदोलन और एक अन्य महात्मा गांधी की आवश्यकता पड़ेगी। चिदंबरम ने यह टिप्पणी अपनी नई किताब अनडांटेड: सेविंग द आइडिया ऑफ इंडिया’’ में की है। यह किताब पिछले साल प्रकाशित उनके निबंधों का संग्रह है। राज्य सभा सदस्य के मुताबिक पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त किया जा सकता है, विभाजित समाज की खाइयों को पाट कर उसे फिर से एकजुट किया जा सकता है लेकिन एक चीज जो टूटने के बाद सही नहीं की जा सकती वह है संविधान और उस दस्तावेज में सन्निहित संवैधानिक मूल्य। 

संविधान के हर मूल्य पर हो रहा है हमला
चिदंबरम ने कहा कि अभी संविधान के हर मूल्य पर हमला हो रहा है चाहे वह स्वतंत्रता हो, समानता, उदारवाद, धर्मनिरपेक्षता, निजता या फिर वैज्ञानिक स्वभाव आदि। रूपा प्रकाशन द्वारा छापी गई इस किताब के प्राक्कथन में चिदंबरम लिखते हैं, च्च्इस बात का स्पष्ट और प्रत्यक्ष खतरा है कि भारत के संविधान को एक ऐसे दस्तावेज से बदल दिया जाएगा जो हिंदुत्व की विचारधारा से प्रेरित होगा। यह ‘भारत के विचार’ का अंत होगा जो राष्ट्र के संस्थापकों ने हमें दिया था। इस विचार को फिर से स्थापित करने के लिये एक दूसरे स्वतंत्रता संग्राम और एक और महात्मा से कम में काम नहीं चलेगा।’’ 

आज भारत में है भय का शासन 
चिदंबरम ने कहा, मुझे यह कहते हुए कोई हिचकिचाहट नहीं है कि आज भारत में भय का शासन है। हर ‍व्यक्ति डर में जीता है- पड़ोसी का डर, स्वयं-भू नैतिकता के ठेकेदारों का डर, कुटिल दिमाग से कानून थोपे जाने का डर....और सबसे बड़ा भारतीय राज्य की जासूसी का डर।’’  पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने किताब की भूमिका लिखी है जिसमें उन्होंने संस्थानों के प्रभावों के बारे में बताया है।      

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