Edited By vasudha,Updated: 28 May, 2020 05:05 PM
उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 महामारी के दौरान पलायन कर रहे श्रमिकों की दयनीय स्थिति पर केन्द्र सरकार से कई तीखे सवाल पूछे। इसमें मजदूरों के पैतृक घर पहुंचने में लगने वाला समय, इनकी यात्रा खर्च के भुगतान और इनके खाने-पीने तथा ठहरने से जुड़े सवाल भी...
नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 महामारी के दौरान पलायन कर रहे श्रमिकों की दयनीय स्थिति पर केन्द्र सरकार से कई तीखे सवाल पूछे। इसमें मजदूरों के पैतृक घर पहुंचने में लगने वाला समय, इनकी यात्रा खर्च के भुगतान और इनके खाने-पीने तथा ठहरने से जुड़े सवाल भी शामिल थे। इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया कि घर वापसी के लिए प्रवासी मजदूरों से बस और ट्रेनों का किराया नहीं लिया जाएगा। राज्य सरकारें मजदूरों का किराया देंगी।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने इन कामगारों की वेदनाओं का स्वत: संज्ञान लिये गये मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये केन्द्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से विभिन्न जगहों पर फंसे हुए इन श्रमिकों की यात्रा के किराये के भुगतान को लेकर व्याप्त भ्रम के बारे में जानकारी चाही। पीठ ने कहा कि इन श्रमिकों को अपनी घर वापसी की यात्रा के लिये किराये का भुगतान करने के लिये नहीं कहना चाहिए। पीठ ने मेहता से सवाल किया कि सामान्य समय क्या है? यदि एक प्रवासी की पहचान होती है तो यह तो निश्चित होना चाहिए कि उसे एक सप्ताह के भीतर या दस दिन के अंदर पहुंचा दिया जायेगा? वह समय क्या है? ऐसे भी उदाहरण हैं जब एक राज्य प्रवासियों को भेजती है लेकिन दूसरे राज्य की सीमा पर उनसे कहा जाता है कि हम प्रवासियों को नहीं लेंगे, हमें इस बारे में एक नीति की आवश्यकता है।
पीठ ने इन कामगारों की यात्रा के भाड़े के बारे में सवाल किये और कहा कि हमारे देश में बिचौलिया हमेशा ही रहता है। लेकिन हम नहीं चाहते कि जब भाड़े के भुगतान का सवाल हो तो इसमें बिचौलिया हो। इस बारे में एक स्पष्ट नीति होनी चाहिए कि उनकी यात्रा का खर्च कौन वहन करेगा। इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही सॉलिसीटर जनरल ने केन्द्र की प्रारंभिक रिपोर्ट पेश की और कहा कि एक से 27 मई के दौरान इन कामगारों को ले जाने के लिये कुल 3,700 विशेष ट्रेन चलायी गयी और सीमावर्ती राज्यों में अनेक कामगारों को सड़क मार्ग से पहुंचाया गया। उन्होंने कहा कि बुधवार तक करीब 91 लाख प्रवासी कामगारों को उनके पैतृक घरों तक पहुंचाया गया है।
कोविड-19 महामारी की वजह से चार घंटे की नोटिस पर 25 मार्च से देश में लागू लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में लाखों भूखे प्यासे श्रमिक विभिन्न जगहों पर फंस गये। उनके पास ठहरने की भी सुविधा नहीं थी। इन श्रमिकों ने आवागमन का कोई साधन उपलब्ध नहीं होने की वजह से पैदल ही अपने अपने घर की ओर कूच कर दिया था। शीर्ष अदालत ने 26 मई को इन कामगारों की दयनीय स्थिति का स्वत: संज्ञान लिया था अैर उसने केन्द्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर इस संबंध में जवाब मांगा था। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि केन्द्र और राज्यों ने राहत के लिये कदम उठाये हैं लेकिन वे अपर्याप्त हैं और इनमें कमियां हैं। साथ ही उसने केन्द्र और राज्यों से कहा था कि वे श्रमिकों को तत्काल नि:शुल्क भोजन, ठहरने की सुविधा उपलब्ध करायें तथा उनके अपने-अपने घर जाने के लिये परिवहन सुविधा की व्यवस्था करें।