नजरिया: दुराचार रोकने को कानून नहीं संस्कार जरूरी

Edited By Anil dev,Updated: 29 Jun, 2018 04:33 PM

delhi nirbhaya kand madhya pradesh kathua

दिल्ली के निर्भया कांड के बाद शिमला में गुडिय़ा कांड, कठुआ में बच्ची के साथ बर्बरर्ता, (बीच  में हर तीन मिनट पर एक दुराचार ) और अब मंदसौर में वैसा ही घिनौना अपराध। हमारा समाज महिलाओं और बच्चियों को लेकर लगातार अपनी पाश्विकता जाहिर कर रहा है।

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): दिल्ली के निर्भया कांड के बाद शिमला में गुडिय़ा कांड, कठुआ में बच्ची के साथ बर्बरर्ता, (बीच  में हर तीन मिनट पर एक दुराचार ) और अब मंदसौर में वैसा ही घिनौना अपराध। हमारा समाज महिलाओं और बच्चियों को लेकर लगातार अपनी पाश्विकता जाहिर कर रहा है। एक अंतराष्ट्रीय संस्था ने चार रोज पहले जब भारत को महिलाओं के लिए असुरक्षित राष्ट्र बताया था तो कई भौहें तनी थीं। कई ब्यान जारी हुए थे। उस सस्न्था  और उसके सर्वेक्षण पर उगलियां उठी थीं। आज वही नजरें  झुकी हुई हैं और मुंह मानो सिल गए हैं। मध्यप्रदेश की ताजा घटना झकझोर कर रख देती है। दिलचस्प ढंग से ये वही मध्य प्रदेश है जहां 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुराचार पर फांसी देने का कानून सबसे पहले पास हुआ है।  इसी का अनुसरण करते हुए दो रोज पहले पंजाब कैबिनेट ने भी ऐसा ही कानून पारित किया है। लेकिन यह घटना बताती है कि समाधान शायद कानून में नहीं है। महिलाओं के प्रति हमारे समाज में यौन क्रूरता इस कदर बढ़ गई है कि इसे शायद ही कानून से नाथा जा सके। अगर सख्त कानून ही हल होता तो  ऐसे अपराध नहीं होते। यह भी सही है कि दुराचार के मामलों में अब तक अपराधियों के छूटने या सख्त सजा से बच जाने के मामले ज्यादा हैं। 
PunjabKesari कानून की कमजोरियों का लाभ उठाकर अक्सर दुराचारी बचते रहे हैं। इस बात ने भी ऐसे अपराधों को  बढ़ावा ही दिया। ऐसे में अब देश के सामने बड़ा प्रश्न यही  है कि आखिर महिलाओं से क्रूरता को कैसे समाप्त किया जाए? कैसे इस देश को -यत्र नारी पूज्यन्ते, तत्र रम्यन्ते  देवो--वाली स्थिति में फिर से ले जाया जाए। जवाब के लिए कानून की किसी किताब का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। अगर संजीदगी से ढूंढेंगे तो समस्या का हल हमारे भीतर ही  मिल जाएगा। बदले माहौल में, खासकर जबसे  शहरीकरण बढ़ा है तबसे जनमानस भी खुद तक सिमट गया है। अब किसी को किसी से कोई लेना-देना नहीं है। सब खुद तक सीमित होकर रह गए हैं। जबकि पुराने जमाने में सामाजिक तंत्र बहुत परिपक्व और मजबूत था। आज से दो दशक पहले तक लोग बच्चों को यह सिखाते थे कि गांव की सभी लड़कियां, स्कूल, क्लास में पढऩे वाली सभी लडकियां हमारी बहनें हैं। और आज जब बच्चा नर्सरी क्लास का पहला दिन बिताकर घर लौटता है तो आधुनिकाएं  पूछती है-किस किस को फ्रेंड बनाया। तुम्हरी क्लास की कौन सी लड़की से दोस्ती हुई।
PunjabKesari
यही बदलाव हमें इस भयावह मोड़ पर खींच लाया है जहां हम ऐसे जघन्य अपराधों पर मोमबत्ती तो जलाते हैं लेकिन उन्हें ख़त्म करने के लिए अपने बच्चों के भीतर  संस्कारों  की लौ नहीं जलाते। आज एक ही गांव के युगलों द्वारा प्रेम विवाह करने की खबरें  आम हैं। मामा - चाचा की बेटी संग भाग जाने के किस्से भी अक्सर पढऩे को मिल जाते हैं। इसी तरह रिश्तेदारों द्वारा बेटियों के यौन शोषण की घटनाएं भी उत्तरोत्तर बढ़ रही हैं।  यानी हमने अपने सगे रिश्तों को छोड़कर  अन्यत्र  महिलाओं को अब बहन, बेटी की नजर से देखना बंद कर दिया है। यह सांस्कृतिक पतन ही इन स्थितियों से रू-ब -रू करवा रहा है। अब महिला उत्पीडऩ का उदाहरण देने के लिए हमें रावण तक नहीं जाना पड़ता, पड़ोस में ही कोई न कोई रावण मिल जाता है। हमारे भीतर ही रावण मिल जाएगा। इसे नाथना होगा। संस्कृति के इस पतन को रोकना होगा।  घर से शुरुआत करेंगे तो यह कोई कठिन काम नहीं है। अपने बेटों में संस्कार डालें कि किसी की बेटी से बदतमीजी न करें। जैसी आपकी अपनी बहन वैसी दूसरे की।
PunjabKesari
लड़कियों, महिलाओं की इज्जत का पाठ किताबों से नहीं घर में मां-बाप से सीखा जाता है। और अगर कानून से यह होता है तो फिर ऐसा कानून बनाया जाए कि जिसका भी बेटा लड़की छेड़ेगा उसे दंड मिलेगा। फिर देखिए कैसे सब बेटों को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने में लगते हैं। दुराचार के मामलों में आरोपित का तुरंत सामाजिक बहिष्कार हो। जिस गांव, समुदाय  से वो है वहां उसके साथ साथ उसके परिवार का भी बहिष्कार हो। वकीलों के संगठन भी लालच त्यागें और तय करें कि ऐसे किसी शख्स का केस नहीं लड़ेंगे। हालांकि इससे  सबको न्याय की अवधारणा तो थोड़ी हत्तोत्साहित होगी लेकिन ऐसे मामलों का अध्ययन बताता है कि निन्यानवे फीसदी मामलों में आरोपित दोषी होता है। ऐसे में एक फीसदी के चक्कर में जघन्य अपराध करने वाले वकीलों को मोटी फीस देकर बच निकलते हैं। इसलिए वकीलों को स्व-विवेक से काम लेते हुए  इस मामले में उदाहरण पेश करना होगा। उधर जो मोमबत्ती गैंग ऐसे मामलों के बाद छाती पीटती है वह मोमबत्ती जलाने के बजाए संस्कारों की मशाल जलाए। मोमबत्ती जलाने से नहीं संस्कारों की लौ जलाने से ही बदलाव होगा।
PunjabKesari

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!