बिहार में आखिर दागियों के बिना क्यों नहीं बनती सरकार

Edited By DW News,Updated: 19 Aug, 2022 10:56 PM

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बिहार में आखिर दागियों के बिना क्यों नहीं बनती सरकार

बिहार में महागठबंधन के साथ दूसरी बार बनी नीतीश कुमार की सरकार के 33 मंत्रियों में से 23 दागी हैं. इनके खिलाफ अदालतों में मुकदमे चल रहे हैं. बिहार की सरकार और अपराधियों की साठगांठ का यह सिलसिला कब रुकेगा?बिहार में कानून मंत्री तो ऐसे हैं, जिन्हें वारंट जारी होने के बाद जिस दिन अपहरण के एक मामले में अदालत में सरेंडर करना था, उस दिन उन्होंने मंत्री पद की शपथ ले ली.आरजेडी के कोटे से कानून मंत्री बनाए गए कार्तिक सिंह उर्फ कार्तिक मास्टर विधान परिषद के सदस्य (एमएलसी) हैं. हालांकि, उन्हें किसी मामले में दोषी नहीं ठहराया गया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि उन्हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं है. आरजेडी एमएलसी कार्तिक सिंह बिहार के बाहुबली विधायक रहे अनंत सिंह के काफी करीबी और उनके रणनीतिकार माने जाते हैं. वे पहले एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक थे. अनंत सिंह के संपर्क में आने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी. जिस मामले में कार्तिक के खिलाफ वारंट निकला है, वह मामला 2014 का है. उन पर बाहुबली अनंत सिंह के साथ मिलकर राजधानी पटना के राजू नामक बिल्डर को अगवा करने का आरोप है. इस मामले में विधि मंत्री कार्तिक सिंह का कहना है कि दानापुर की एक अदालत ने उन्हें एक सितंबर तक के लिए राहत दे दी है. उन्होंने अपने खिलाफ सारे मामले को राजनीति से प्रेरित बताया है. यह भी पढ़ेंः बिहार में बदली सरकार, क्या डर गये नीतीश कुमार 10 अगस्त को महागठबंधन की सरकार बनी. 12 तारीख को कोर्ट ने उन्हें एक सितंबर तक के लिए राहत दी और 16 को उन्होंने मंत्री पद की शपथ ले ली. इस प्रकरण पर पटना व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ता राजेश कुमार कहते हैं, ‘‘यह कहीं से उचित नहीं ठहराया जा सकता है. उनके खिलाफ एक महीने पहले वारंट निकला था. जाहिर है, न्यायिक प्रक्रिया के तहत उन्हें आत्मसमर्पण करना था. भले ही उन्हें एक सितंबर तक के लिए राहत मिल गई है, लेकिन उसके बाद उन्हें सरेंडर तो करना ही होगा. आरोप के सिद्ध या खारिज होने में समय तो लगता है.'' इस बार 72 तो पिछली सरकार में 64 फीसदी दागी मंत्री एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार की नई सरकार में आरजेडी के 17 मंत्रियों में से 15 पर, जबकि जदयू के 11 में चार पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. सबसे ज्यादा, 11 मामले उप मुख्यमंत्री व लालू प्रसाद के छोटे पुत्र तेजस्वी यादव के खिलाफ, जबकि उनके बड़े भाई तेजप्रताप यादव के खिलाफ पांच मामले दर्ज हैं. आरजेडी के ही मंत्री सुरेंद्र यादव पर नौ मुकदमे दर्ज हैं. वहीं, जदयू में सबसे अधिक तीन मुकदमे अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमां खान पर तथा दो-दो मामले संजय झा व मदन सहनी पर दर्ज हैं. कांग्रेस के भी दो तथा हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा कोटे से एक व एक निर्दलीय मंत्री के खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं. बीजेपी-जदयू के साथ वाली पिछली एनडीए सरकार में भी दागी मंत्रियों की संख्या कम नहीं थी. नौ फरवरी, 2021 को जब कैबिनेट विस्तार के बाद उस समय बीजेपी कोटे से बने 14 में से 11 मंत्रियों तथा जदयू कोटे से बने 11 में से चार मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे. साफ है, इस बार महागठबंधन की सरकार में 72 प्रतिशत तो पिछली एनडीए सरकार में 64 फीसद मंत्री दागी थे. सुधार के प्रयासों का भी खास असर नहीं राजनीति का अपराधीकरण रोकने की दिशा में संभवत: सबसे पहला कदम तब उठाया गया था जब सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर 23 सितंबर, 2013 को ईवीएम में नोटा का बटन जोड़ा गया था. इसका उद्देश्य था कि इससे पार्टियों पर दबाव बढ़ेगा और दागी प्रवृति के लोगों को टिकट नहीं देंगे. लेकिन, इसका कुछ खास असर नहीं पड़ा. इसके बाद फिर पार्टियों को प्रत्याशियों के चुनाव के 48 घंटे के भीतर उनके आपराधिक इतिहास को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया. किंतु, इससे भी कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ. इसके अलावा भी कई निर्देश जारी किए गए. बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला काफी महत्वपूर्ण रहा, जिसके तहत राज्य सरकारें अपने हिसाब से किसी के खिलाफ आपराधिक मुकदमे वापस नहीं ले सकेंगी. 2017 में अदालत ने जन प्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज मुकदमों की जल्दी सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का आदेश जारी किया. विशेष अदालतें तो बन गईं, पर निपटारे की रफ्तार तेज ना हो सकीं. राजनीतिक विश्लेषक अविलाष सरकार कहते हैं, ‘‘दागियों के मामले में पूरे देश की स्थिति एक जैसी है. आंकड़ों पर नजर डालिए, स्थिति में सुधार कहीं नहीं दिख आ रहा. इसकी मूल वजह किसी भी सरकार द्वारा इसमें दिलचस्पी नहीं लेना है. नतीजतन अदालतों में पेंडिंग मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है और उस अनुपात में उसका निपटारा नहीं होने का लाभ इन दागी राजनीतिज्ञों को मिल जाता है. आखिर, अदालतों की भी तो सीमाएं हैं.'' पिछले विधानसभा चुनाव में 243 सीटों पर 470 दागी प्रत्याशियों ने भाग्य आजमाए थे. लेकिन, सभी ने अपनी आपराधिक जानकारी सार्वजनिक नहीं की. इनमें आरजेडी के सर्वाधिक 104, बीजेपी के 77, जेडीयू के 56, एलजेपी के 57, कांग्रेस के 45, आरएलएसपी के 57, बीएसपी के 29, एनसीपी के 26 और वाम दलों के नौ ऐसे प्रत्याशी थे. यह भी पढ़ेंः आखिर बिहार में पुलिस-पब्लिक आमने सामने क्यों है विभागीय बैठक में तेजप्रताप के बहनोई एक ऐसा वीडियो वायरल हुआ है जिसमें तेज प्रताप यादव की एक विभागीय समीक्षा बैठक में उनकी बहन मीसा भारती के पति शैलेश भी शामिल होते दिख रहे हैं. इस मामले पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री जनक राम का कहना है, ‘‘बिहार में जीजा-साले के दौर की वापसी शुरू हो गई है. अब जनता फिर से पुराना समय देखेगी.'' पत्रकार अमित रंजन कहते हैं, ‘‘वोटों की गलाकाट प्रतियोगिता के कारण दागी छवि वाले लोग सियासी दलों की मजबूरी बन चुके हैं. वोट देने के वक्त लोग भी जाति व धर्म का चश्मा पहन लेते हैं, उन्हें उनके आपराधिक कृत्य याद नहीं रहते. इन्हें स्वीकार करना हमारी नियति बन चुकी है.''

यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे DW फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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