हरि प्रबोधिनी एकादशी: जो व्यक्ति करेगा ये काम, वे कभी नहीं देखेगा नरक का द्वार

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Nov, 2019 07:42 AM

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दीपोत्सव के ग्यारह दिन बाद आने वाली एकादशी को हरिप्रबोधनी एवं देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। यह कार्तिक शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। जो वस्तु त्रिलोकी में न मिल सके वह हरि प्रबोधिनी एकादशी व्रत

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दीपोत्सव के ग्यारह दिन बाद आने वाली एकादशी को हरिप्रबोधनी एवं देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। यह कार्तिक शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। जो वस्तु त्रिलोकी में न मिल सके वह हरि प्रबोधिनी एकादशी व्रत से प्राप्त की जा सकती है। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए क्षीर सागर में शयन करते हैं। चार माह बाद वे कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। ‘भगवान पुराण’ के अनुसार विष्णु के शयनकाल के चार माह में मांगलिक कार्यों का आयोजन निषेध है।

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‘आदि पुराण’ के अनुसार एकादशी तिथि का उपवास बुद्धि और शांति प्रदाता व संततिदायक है। ‘विष्णु पुराण’ के अनुसार किसी भी कारण से चाहे लोभ के वशीभूत होकर जो एकादशी तिथि को भगवान विष्णु का अभिनंदन करते हैं, वे समस्त दुखों से मुक्त होकर जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। 

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सनत कुमार ने लिखा जो व्यक्ति एकादशी व्रत या स्तुति नहीं करता वह नरक का भोगी होता है। महर्षि कात्यायन के अनुसार जो व्यक्ति संतति, सुख सम्पदा,धन-धान्य व मुक्ति चाहता है तो उसे हरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन विष्णु स्तुति, शालिग्राम व तुलसी महिमा का पाठ करना चाहिए व व्रत रखना चाहिए।

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ब्रह्मा जो हिन्दू धर्म में प्रमुख देवता हैं, उन्हें सृष्टि का रचयिता कहा जाता है। मनुष्य को जो फल एक हजार अश्वमेध और एक सौ राजसूय यज्ञों से मिलता है, वह हरि प्रबोधिनी एकादशी से मिलता है। 

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