भीमा कोरेगांव मामले में सुनवाई बुधवार तक टली

Edited By Yaspal,Updated: 17 Sep, 2018 06:52 PM

hearing in bhima koregaon case till wednesday

उच्चतम न्यायालय ने भीमा कोरेगांव मामले में पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई बुधवार...

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने भीमा कोरेगांव मामले में पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई बुधवार तक के लिए टाल दी है।  मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने आरोपियों -वकील सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवरा राव, अरुण फेरेरा तथा वेरनन गोंजाल्विस- की नजरबंदी भी उस दिन तक के लिए बढ़ा दी।

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इन आरोपियों की गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य की ओर से दायर याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने आरोपियों के खिलाफ कुछ और सबूत पेश करने के लिए न्यायालय से मोहलत मांगी, जिसपर खंडपीठ ने सुनवाई के लिए 19 सितंबर की तारीख तय करते हुए कहा कि मामले से जुड़े पुणे पुलिस के रिकॉर्ड और अन्य सुबूतों को देखकर ही इस मामले में कोई फैसला सुनाया जायेगा। न्यायमूर्ति मिश्रा ने यह भी संकेत दिया कि यदि पुलिस के दस्तावेजों में कुछ नहीं मिला तो प्राथमिकी को रद्द भी किया जा सकता है।

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इससे पहले सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस तरह की याचिकाओं पर सुनवाई और न्यायालय के इसमें दखल का विरोध किया। मेहता ने दलील दी कि इन आरोपियों की गिरफ्तारी केवल भीमा कोरेगांव के मामले में नहीं हुई है। याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने मामले की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) या फिर शीर्ष अदालत की निगरानी में कराने की मांग की। उनकी दलील थी कि इस मामले में पहले यह कहा गया कि प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश के सिलसिले में इन्हें गिरफ्तार किया गया है, लेकिन अगर ऐसा था तो इसकी जांच में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) या फिर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को क्यों नहीं शामिल किया गया।

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गौरतलब है कि 31 दिसंबर, 2017 को आयोजित एलगार परिषद की बैठक के बाद पुणे के भीमा-कोरेगांव में हुई ङ्क्षहसा की घटना की जांच के सिलसिले में बीते 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर उपरोक्त पांचों आरोपियों को गिरफ़्तार किया था, लेकिन इसके खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। शीर्ष अदालत ने 29 अगस्त को पांचों आरोपियों को छह सितंबर तक अपने घरों में ही नकारबंद करने का आदेश दिया था। बाद में इसे मामले की सुनवाई के अनुरूप धीरे-धीरे बढ़ाया जा रहा है।

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