देश की राजधानी का हाल, 5 साल में 26,761 बच्चे हुए लापता

Edited By vasudha,Updated: 07 Oct, 2018 06:53 PM

in delhi 26761 children were missing in 5 years

देश में हर साल हजारों बच्चे गुम हो जाते हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ही रोजाना 18 बच्चे लापता होते हैं जिनमें से अधिकतर बच्चे तस्करी का शिकार बन जाते हैं। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी में लापता होने वाले 10 में से छह बच्चों का कभी पता...

नेशनल डेस्क: देश में हर साल हजारों बच्चे गुम हो रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ही रोजाना 18 बच्चे लापता होते हैं जिनमें से अधिकतर बच्चे तस्करी का शिकार बन जाते हैं। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी में लापता होने वाले 10 में से छह बच्चों का कभी पता ही नहीं चलता। अलायंस फॉर पीपुल्स राइट्स (एपीआर) और गैर सरकारी संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राइ) द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार पिछले पांच साल में दिल्ली में 26,761 बच्चे लापता हो गए, इनमें से 9,727 बच्चों का ही पता चल सका।
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राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों और पुलिस से सूचना के अधिकार के तहत मिले जवाब के आधार पर दिल्ली में 63 प्रतिशत लापता बच्चों का पता नहीं चल पता है। यह आंकड़ा बाकी देश के 30 प्रतिशत आंकड़े से दोगुना है। दिल्ली के मयूर विहार के एक ट्रैफिक सिग्नल पर रोजी-रोटी के लिए फूल बेचने वाले मनोज ने कहा कि गिरोह के लोग कुछ दूरी से इन सिग्नलों पर ऐसे बच्चों पर नजर रखते हैं और जब पुलिस उन्हें बचाने के लिए आती है तो दावा करते हैं कि वे सभी उनके बच्चे हैं। इनमें से कई बच्चों को दूसरे राज्यों से तस्करी कर लाया जाता है और ट्रैफिक सिग्नल पर जो महिलाएं होती हैं, वो ऐसे जाहिर करती हैं कि वो इन बच्चों के अभिभावक हैं।
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क्राइ की क्षेत्रीय निदेशक (उत्तर) सोहा मोइत्रा ने कहा कि बच्चों का पुनर्वास करना एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि अगर बहुत छोटी उम्र में बच्चों की तस्करी हुई हो तो ऐसे बच्चों का पता लगाने में ज्यादा समय लगता है और इस वजह से उन्हें अपने घर के बारे में भी याद नहीं होता। चेहरा पहचानने वाली अद्यतन तकनीक पर काम चल रहा है और पुलिस आश्वस्त है कि बेहद छोटी उम्र में तस्करी के शिकार होने वाले बच्चों के पुनर्वास में इससे मदद मिलेगी। 
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एक अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पाया कि दिल्ली में 36 ट्रैफिक सिग्नलों पर 600 से ज्यादा बच्चे भीख मांगते हैं या फिर किसी सामान वगैरह की बिक्री करते हैं। लेकिन यह एक महज नमूना भर है, वास्तविक आंकड़ा बहुत अधिक हो सकता है। कई बच्चों को उनके अभिभावक भीख मंगवाते हैं या कलम, फूल या गुब्बारे आदि बेचने के लिए कहते हैं जबकि कई बच्चों को तस्करी कर यहां लाया जाता है। एनसीपीसीआर के सदस्य यशवंत जैन ने कहा कि बाल अधिकार आयोग ने ट्रैफिक सिग्नलों पर दिखने वाले बच्चों की पुनर्वास योजना के लिए विभिन्न अधिकारियों के साथ ही मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला।      

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