कारगिल युद्ध के साथी ने छोड़ा साथ, 20 साल बाद आर्मी से रिटायर होगी INSAS

Edited By ,Updated: 06 Mar, 2017 09:47 AM

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करीब 20 वर्ष बाद स्वदेश निर्मित इंसास राइफल आखिरकार सेना में सेवा से हटेगी और एक आयातित असाल्ट राइफल उसका स्थान लेगी जिसका निर्माण बाद में देश में किया जाएगा।

नई दिल्ली: करीब 20 वर्ष बाद स्वदेश निर्मित इंसास राइफल आखिरकार सेना में सेवा से हटेगी और एक आयातित असाल्ट राइफल उसका स्थान लेगी जिसका निर्माण बाद में देश में किया जाएगा। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि 1988 में सेना में शामिल की गई ‘द इंडियन स्माल आर्म्स सिस्टम’ (इंसास) के स्थान पर अधिक कैलिबर (7.62 गुणे 51) की घातक असाल्ट राइफल को शामिल किया जा सकता है।

सूत्रों ने बताया कि करीब एेसेेे 18 वेंडर हैं जिन्होंने सेना द्वारा सीमा पर और आतंकवाद निरोधक अभियानों में इस्तेमाल की जाने वाली करीब दो लाख एेसी राइफलों को बदलने पर अपनी सहमति भेजी है। इनमें विदेशी हथियार निर्माण कंपनी से गठजोड़ वाली भारतीय कंपनियां शामिल हैं। इंसास को सेवा से हटाने का कारण जैसा कि विशेषज्ञों ने बताया है यह है कि लंबी दूरी में यह प्रभावी नहीं है और सब सी अच्छी हालत में यह दुश्मन को पंगु बना सकती है। सूत्रों ने कहा कि 7.62 गुणे 51 असॉल्ट राइफल पहले ही पाकिस्तानी सेना में शामिल की जा चुकी है। पाकिस्तानी सेना ने उसे हेकलर एंड कोच से खरीदा था जो जर्मनी स्थित छोटे हथियार बनाने वाली विश्व की प्रमुख हथियार निर्माता कंपनी है।

सेना में शामिल होगी नई राइफल
नई असॉल्ट राइफल खरीदने का प्रस्ताव पहले से ही प्री..एक्सेप्टेंस आफ नेसेसेटी (एआेएन) स्तर पर है और उम्मीद है कि इन हथियारों की खरीद प्रक्रिया को तेज गति से संचालित करके इसे वर्ष के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा। सूत्रों ने कहा कि जोर फिलहाल पूर्वोत्तर में सेना के विशेष बलों को हथियार से लैस करने पर है और प्रस्ताव जल्द ही रक्षा खरीद समिति (डीएसी) के समक्ष आएगा। सूत्रों ने कहा कि विशेष बलों को नजदीक के मुकाबले की स्थिति में सहायक नये हथियारों के बाद जोर असॉल्ट राइफलों की खरीद और इंसास राइफलों को बदलने पर होगा।

विदेशी वेंडर के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में शामिल होना जरूरी होगा ताकि देश में असॉल्ट राइफल की गोला बारूद और उसके रखरखाव की कोई कमी न हो। ये हथियार दुश्मन को 500 मीटर के प्रभावी रेंज में मार सकते हैं। इंसास की संकल्पना 1980 के दशक के शुरूआत में शुरू हुई थी और बाद में उसे उत्पादन के लिए पश्चिम बंगाल में इचापुर आर्डिनेंस फैक्ट्री को सौंप दिया गया था। 1996 में सेना में शामिल किये जाने से पहले राइफल की डिजाइन बदल दी गई थी। राइफल का इस्तेमाल 1999 के करगिल युद्ध के दौरान किया गया था।
 

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