मुस्लिम की मजार पर जरूर रुकता है भगवान जगन्नाथ का रथ...जानिए कौन है भक्त सालबेग

Edited By Seema Sharma,Updated: 23 Jun, 2020 12:02 PM

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कोरोना संकट के बीच मंगलवार को भगवान जगन्नाथ मंदिर से बाहर आएंगे और रथ पर सवार होकर अपने भक्तों को दर्शन देंगे। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पुरी रथ यात्रा को जब इजाजत मिली तो हर किसी ने जय जगन्नाथ का जयघोष किया। सुप्रीम कोर्ट में रथ यात्रा की...

नेशनल डेस्कः कोरोना संकट के बीच मंगलवार को भगवान जगन्नाथ मंदिर से बाहर आएंगे और रथ पर सवार होकर अपने भक्तों को दर्शन देंगे। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पुरी रथ यात्रा को जब इजाजत मिली तो हर किसी ने जय जगन्नाथ का जयघोष किया। सुप्रीम कोर्ट में रथ यात्रा की इजाजत के लिए केंद्र सरकार, मंदिर समिति के अलावा ओडिशा के नयागढ़ जिले के 19 साल के मुस्लिम छात्र आफताब हुसैन ने भी पुनर्विचार की अपील की थी। रथयात्रा को लेकर अदालत का रुख करने वाले हुसैन नयागढ़ ऑटोनॉमस कॉलेज में बीए अर्थशास्त्र के तृतीय वर्ष के छात्र हैं। उसे सोशल मीडिया पर राज्य का दूसरा सलाबेग कहा जा रहा है।

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कौन है सालबेग
सलाबेग मुस्लिम था लेकिन वह भगवान जगन्नाथ का बड़े भक्त था। मुख्य तीर्थ से गुंडिचा मंदिर तक की तीन किलोमीटर की यात्रा के दौरान सम्मान के रूप में ग्रैंड रोड पर स्थित सलाबेग की कब्र के पास स्वामी का रथ कुछ देर के लिए रुकता है। मुगल सूबेदार के पुत्र सलाबेग ओडिशा के भक्ति कवियों के बीच विशेष स्थान रखते हैं क्योंकि उन्होंने अपना जीवन भगवान जगन्नाथ को समर्पित कर दिया था। वह 17वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुए थे। कहते हैं एक बार सालबेग मुगल सेना की तरफ से लड़ते हुए बुरी तरह से घायल हो गए थे। तमाम इलाज के बावजूद उनका घाव ठीक नहीं हो रहा था। इस पर उनकी मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और उनसे भी प्रभु की शरण में जाने को कहा। मां की बात मानकर सालबेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू कर दी। उनकी पूजा से खुश होकर जल्द ही भगवान जगन्नाथ ने सालबेग को सपने में दर्शन दिया। अगले दिन जब उनकी आंख खुली तो शरीर के सारे घाव ठीक हो चुके थे।

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मंदिर में नहीं मिला था सालबेग को प्रवेश
भगवान के चमत्कास से जब सालबेग ठीक हो गए तो वो जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए मंदिर गए लेकिन उन्हें किसी ने मंदिर में दाखिल नहीं होने दिया। सालबेग निराश नहीं हुए और   मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की अराधना में लीन हो गए। इस दौरान उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई भक्ति गीत व कविताएं लिखीं। उड़ीया भाषा में लिखे उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए, इस सबके बावजूद भी उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिला। इस पर सालबेग ने एक बार कहा था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ खुद उनकी मजार पर दर्शन देने के लिए आएंगे। सालबेग की मौत के बाद उन्हें जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच ग्रांड रोड के करीब दफना दिया गया।

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मजार पर रुकता है भगवान जगन्नाथ का रथ
सालबेग की मौत के बाद जब पहली बार रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी मशक्कत की लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला। तब  रथ यात्रा में शामिल एक शख्स ने तत्कालीन ओडिशा के राजा से कहा कि भगवान के भक्त सालबेग का जयकारा लगवाया जाए। उस व्यक्ति की सलाह मानकर राजा ने जैसे ही सालबेग का जयघोष करवाया रथ अपने आप चल पड़ा। दरअसल सालबेग की इच्छा के मुताबिक भगवान जगन्नाथ की जब रथ यात्रा निकलती है तब मजार पर उसे दर्शन देने जाते हैं। तभी से हर साल सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए रथ को रोका जाता है।

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हुसैन भी भगवान का भक्त
सुप्रीम कोर्ट में रथयात्रा को लेकर याचिका देने वाले छात्र हुसैन ने कहा कि वह बचपन से ही भगवान जगन्नाथ से प्रभावित रहा है और उसके दिवंगत दादा मुलताब खान भी भगवान के भक्त थे। हुसैन ने कहा कि उनके दादा ने 1960 में इतामती में त्रिनाथ (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) मंदिर का निर्माण किया था। छात्र ने कहा कि उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई पुस्तकें पढ़ी हैं और वह 'ब्रह्माण्ड के भगवान' के प्रति आस्था रखते हैं। हुसैन के पिता इमदाद हुसैन, मां राशिदा बेगम और छोटे भाई अनमोल ने उन्हे जगन्नाथ की मूर्ति की पूजा करने से कभी नहीं रोका। हालांकि हुसैन ने पुरी में 12वीं शताब्दी के श्री जगन्नाथ मंदिर के दर्शन कभी नहीं किए क्योंकि वह मुस्लिम परिवार में पैदा हुए हैं। उसने कहा कि मैंने कभी मंदिर के दर्शन नहीं किए क्योंकि मुझे इसकी अनुमति नहीं है। एक इंसान होने के नाते मेरा मानना है कि ब्रह्माण्ड का रचनाकार एक ही है।

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