Election Diary: बॉम्बे, मद्रास, विंध्य सब मिट गए "चुनावी जहान" से

Edited By Anil dev,Updated: 03 Apr, 2019 02:02 PM

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देश में लोकसभा का चुनाव हो रहा है।  90 करोड़ मतदाता  543  सांसद चुनकर भेजेंगे जो अगले पांच साल तक देश की दशा और दिशा तय करने में अपनी भूमिका निभाएंगे।  चुनावी  समय में  इस बात की चर्चा भी चरम पर है

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): देश में लोकसभा का चुनाव हो रहा है।  90 करोड़ मतदाता  543  सांसद चुनकर भेजेंगे जो अगले पांच साल तक देश की दशा और दिशा तय करने में अपनी भूमिका निभाएंगे।  चुनावी  समय में  इस बात की चर्चा भी चरम पर है कि किसे कितनी सीटें मिलेंगी। बहुमत का आंकड़ा 272  है।  ऐसे में सबकी नज़र यूपी , महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल , बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों पर टिकी  हैं।  ये अकेले  पांच राज्य  देश की आधी संसद चुनकर भेजते हैं। पहले चुनाव में भी कमोबेश ऐसी ही स्थितियां थीं।  कुछ ही राज्य  केंद्र की सरकार तय कर देते थे क्योंकि वहां अन्यों की तुलना में सीटें अधिक थीं।  लेकिन क्या आप जानते हैं कि  पहले चुनाव में जिन 25 राज्यों में  मतदान हुआ था उनमे से आधे  वर्तमान में  अस्तित्व में हैं ही नहीं ? जी हां यह सच है कि 1951 -52 के पहले चुनाव के बाद से अब तक करीब 14  राज्यों का अस्तित्व मिट चुका है।  इलेक्शन डायरी में आज चर्चा उन्हीं इतिहास हो चुके राज्यों की । इनमें से कुछ राज्यों में विधानसभाएं भी चुनी जाती रही हैं। 

चार हिस्सों में बंटा था एमपी 
वर्तमान में 29 लोकसभा  सीटों वाला राज्य मध्य प्रदेश तब चार हिस्सों में बंटा था । वहां भोपाल, मध्य भारत और विंध्य प्रदेश नाम के राज्य भी हुआ करते थे।  भोपाल और विंध्य प्रदेश में महज दो-दो सीटें थीं जबकि मध्य भारत में  नौ सीटें थीं। मध्य प्रदेश के नाम से एक अलग प्रदेश था जिसमे 23 लोकसभा सीटें हुआ करती थीं। इसमें 06 डबल सीट थीं।  विंध्य प्रदेश की दोनों सीटें डबल सीट थीं यानी वहां से चार सांसद चुने जाते थे। मध्य भारत में भी दो डबल सीट थीं जबकि भोपाल के पास कोई डबल सीट नहीं थी। हालांकि तब भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 69 सीटें हुआ करती थीं लेकिन तब उसके बाद सबसे ज्यादा 62 सीटों वाला मद्रास भी अब इतिहास हो चुका  है। मद्रास में पहले दो आम चुनावों में 13 डबल सीट भी थीं।  यानि पहले दो आम चुनावों  तक मद्रास 75 सांसद चुनकर भेजता था।  

अलग थे पंजाब और पेप्सु 
उस समय पंजाब भी दो अलग हिस्सों में बंटा  हुआ था।  यहां पेप्सू राज्य को अलग से मान्यता हासिल थी।  ऐसे में पंजाब के हिस्से 15  और पेप्सू  के हिस्से चार सीटें थीं।  इनमे से पंजाब के पास चार और पेप्सू के पास एक डबल सीट थी। तब अलग से हरियाणा नहीं था, हालांकि हिमाचल अलग राज्य था जहां से दो लोकसभा सीटों पर तीन सांसद (एक डबल सीट ) चुने जाते थे।  दिलचस्प ढंग से हिमाचल का ही वर्तमान का सबसे छोटा जिला बिलासपुर तब अलग राज्य हुआ करता था और  एक सांसद चुनकर भेजता था।  

बॉम्बे , हैदराबाद ,मैसूर  भी अब नहीं 
पहले चुनाव में बॉम्बे  और हैदराबाद भी अलग राज्य थे । बॉम्बे से 37 और हैदराबाद से 21  सांसद चुने जाते थे।  डबल सीट के तहत बॉम्बे से 07 और हैदराबाद से 04  सांसद अलग से चुने जाते थे।  इसी तरह  मैसूर भी अलग राज्य हुआ करता था जहां  09 सीटें थीं। इनमें  से 02 डबल सीट थीं। ऍम मैसूर कर्नाटक का एक जिला है।  छह सीटों वाला सौराष्ट्र भी अब अलग राज्य नहीं है।  राजस्थान में भी अजमेर अलग स्टेट था जहाँ से 2  सांसद चुने जाते थे। राजस्थान के पास 18 सीटें थीं जिनमे से दो डबल सीट वाली थीं। इसी तर्ज़ पर अब कुर्ग, कोचीन और कच्छ  राज्यों का भी अस्तित्व जिला में सिमट गया है। कोचीन कभी 11  सांसद  चुनकर भेजता था जबकि कुर्ग और कच्छ  के पास क्रमश: एक और दो सीटें हुआ करती थीं। कोचीन के पास भी एक डबल सीट थी। अब इन राज्यों का वजूद भी जिला में सिमट गया है। पहले चार चुनाव तक ईनमसे से कई राज्य अस्तित्व में थे।  लेकिन पांचवां आम चुआव आते आते इनका वजूद समाप्त हो गया। इन राज्यों में विधानसभा के भी चुनाव होते थे।    
 

राज्य सीटें   चुनाव  हुए
अजमेर 02 1951
मद्रास 62 1951 से 1967 
भोपाल 02 1951
मैसूर 09  1967 और 1951
बॉम्बे 37 1957 1951
पैप्सू  04 1954 1951
कुर्ग 01  1951 
सौराष्ट्र  06  1951
कोचीन 11 1954 1951
मध्य भारत 09  1951
विंध्य प्रदेश 02 1951
कच्छ 02 1951 
बिलासपुर  01 1951 
हैदराबाद  21 1951
कुल सीटें 169 +32 (डबल सीट)=201 









 

 

 

 

 

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