पूर्वी UP में छिपी है दिल्ली की सत्ता की चाबी

Edited By Anil dev,Updated: 30 Mar, 2019 09:07 AM

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इस बार के आम चुनाव में दिल्ली के सिंहासन की चाबी पूर्वी यू.पी. में छिपी हुई है जहां त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं। इसलिए योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी ने अपना पूरा जोर पूर्वी यू.पी. पर ही लगा रखा है। आजमगढ़ से चुनाव लडऩे जा रहे...

नई दिल्ली: इस बार के आम चुनाव में दिल्ली के सिंहासन की चाबी पूर्वी यू.पी. में छिपी हुई है जहां त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं। इसलिए योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी ने अपना पूरा जोर पूर्वी यू.पी. पर ही लगा रखा है। आजमगढ़ से चुनाव लडऩे जा रहे अखिलेश यादव पहली बार इस इलाके से चुनावी मैदान में हैं जहां लोकसभा की 35 सीटें आती हैं। भाजपा ने वर्ष 2014 के लोकसभा और वर्ष 2017 के राज्य विधानसभा चुनाव में इस इलाके पर अपना कब्जा किया है। वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा ने पूर्वी यू.पी. की 35 में से 32 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2014 के आम चुनाव में जब मोदी लहर में भाजपा ने पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया था तब अखिलेश के पिता और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ से 60 हजार वोटों से जीते थे। 

निरहुआ उतर सकते हैं अखिलेश यादव के खिलाफ 
भाजपा ने अभी यहां से अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है लेकिन ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि इस सीट से भोजपुरी फिल्म स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को टिकट मिल सकता है। आजमगढ़ में एक बड़ी आबादी यादव और मुस्लिमों की है इसलिए जातिगत गणित अखिलेश यादव के पक्ष में है। निरहुआ पड़ोस के गाजीपुर जिले के रहने वाले हैं और भाजपा को आशा है कि उनकी स्टार छवि को भुनाकर आजमगढ़ में कमल खिलाया जा सकता है।

एक दशक से क्षेत्रीय दलों का दबदबा
राम जन्मभूमि आंदोलन और 3 धार्मिक शहरों अयोध्या, गोरखपुर (गोरक्षनाथ मंदिर) और वाराणसी (काशी विश्वनाथ मंदिर) ने भाजपा की मदद की लेकिन वर्ष 1993 में सपा और बसपा के गठबंधन ने भगवा ब्रिगेड को तगड़ा झटका दिया। एक दशक तक इस क्षेत्र में क्षेत्रीय दलों का दबदबा रहा। भाजपा 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में 10 सीटों तक सिमट कर रह गई। हालांकि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जातिगत गणित अपने साथ किया और सपा से गैर यादव ओ.बी.सी. वोटों का एक बड़ा हिस्सा और बसपा से गैर जाटव दलित वोटों को अपने पाले में कर लिया।

भाजपा का मुद्दा विकास
भाजपा वाराणसी और गोरखपुर में किए गए विकास के कामों को लेकर चुनाव में उतर रही है। मोदी ने वर्ष 2014 से लेकर अब तक वाराणसी में विकास कार्यों पर 2 लाख करोड़ रुपए खर्च किए हैं। योगी ने भी गोरखपुर के लिए यही मॉडल अपनाया है। उधर, कांग्रेस ने देरी से शुरूआत की लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा के आने के बाद अब उसका अभियान भी जोर पकड़ रहा है। प्रियंका ने इलाहाबाद से वाराणसी तक गंगा यात्रा के जरिए अपने कार्यकत्र्ताओं में जोश भरने की कोशिश की। यदि कांग्रेस को इस क्षेत्र में मजबूती मिलती है तो सपा-बसपा और भाजपा को नुक्सान होगा।

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