नजरिया: अस्पताल से ही राज, WHAT AN IDEA पर्रिकर सर जी

Edited By Anil dev,Updated: 13 Oct, 2018 12:38 PM

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जुमलों पर चढ़कर आई केंद्र सरकार ने अब एक और नया आयाम स्थापित कर दिया है। जो अस्पताल इलाज के लिए होते हैं, उन्हें राज के लिए इस्तेमाल करके। यह इतिहास रचा गया देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में, जहां अरसे से बीमार चल रहे गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा)  जुमलों पर चढ़कर आई केंद्र सरकार ने अब एक और नया आयाम स्थापित कर दिया है। जो अस्पताल इलाज के लिए होते हैं, उन्हें राज के लिए इस्तेमाल करके। यह इतिहास रचा गया देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में, जहां अरसे से बीमार चल रहे गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने कल कैबिनेट की मीटिंग बुलाई। 

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दिलचस्प ढंग से पर्रिकर कैबिनेट के ही दो सदस्यों को बीते हफ्ते इसलिए मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया कि वो बीमार हैं और काम-काज नहीं देख पाएंगे। लेकिन शायद काम-काज और राज-काज को लेकर अमित शाह की थ्योरी अलग-अलग है। इसलिए जिस दिन उन्होंने गोवा के दो मंत्रियों को हटाया, उसी दिन शाम को यह फरमान सुना दिया कि पर्रिकर नहीं हटेंगे। जबकि हकीकत यह है कि हटाए गए मंत्रियों के मुकाबले मनोहर पर्रिकर कहीं ज्यादा लंबे अरसे से बीमार हैं। कोई भी शख्स बीमार हो सकता है। और किसी का बीमार हो जाना उसे अयोग्य नहीं बना देता। लेकिन जब मामला लंबा खिंच जाए तो गोवा जैसी परिस्थितियों में यह सोचना तो बनता है कि संबंधित व्यक्ति के जन-दायित्वों को लेकर कोई वैकल्पिक कदम उठाया जाए। 

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शीर्ष पदों पर बैठे लोगों की लंबी बीमारी के चलते पहले भी व्यवस्था परिवर्तन हुए हैं, ताकि जनता और उससे जुड़े काम-काज प्रभावित न हों। लेकिन जिस तरह से मनोहर पर्रिकर की बीमारी को लेकर केंद्र का रुख है, उससे हैरानी होना स्वाभाविक है। उन्हें अग्नाशय संबंधित बीमारी बताई गई है। वे अमेरिका जाकर भी इलाज करवा चुके हैं। जाहिर है, यह सामान्य अग्नाशय संक्रमण नहीं है। पर्रिकर एक बेहतर और सादा जीवन जीने वाले नेता हैं। उनका आचार-व्यवहार कइयों  के लिए प्रेरणा हो सकता है। हम स्वयं उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं। लेकिन सलीका और कायदा यही है कि सरकार उन्हें स्वास्थ्य लाभ का समय दे और गोवा में  मुख्यमंत्री की वैकल्पिक व्यवस्था करे। मुख्यमंत्री का उनके कार्यालय में होना जरूरी है। सारे काम फाइलें साइन करके निपटाना संभव नहीं है। 

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बीजेपी शासित राज्यों में तो मुख्यमंत्रियों ने जनता से सीधे संवाद के कार्यक्रम चलाए हुए हैं। गोवा की जनता इस संवाद से महरूम है। दोस्ती और शासन के दस्तूर में अंतर समझना जरूरी है। खासकर तब, जब गोवा में बीजेपी ने जनादेश के विपरीत जाकर जोड़-तोड़ से सरकार बनाई है। गोवा की 40 में से बीजेपी के पास 14 सीटें हैं, जबकि 16 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ा दल है। कहने का तात्पर्य यह है कि एक तो पहले ही जोड़-तोड़ की सरकार और एम्स राज। कुछ तो सोचिये 'शाह' जी।   
 

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