कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने पहली बार रिपोर्ट जारी की

Edited By kirti,Updated: 15 Jun, 2018 09:41 AM

on the violation of human rights in kashmir

संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पी.ओ.के.) में कथित मानवाधिकार उल्लंघन पर अपनी तरह की पहली रिपोर्ट आज जारी की और इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय जांच करवाने की मांग की। भारत ने रिपोर्ट को ‘भ्रामक और प्रेरित’ बताकर खारिज कर...

 

नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पी.ओ.के.) में कथित मानवाधिकार उल्लंघन पर अपनी तरह की पहली रिपोर्ट आज जारी की और इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय जांच करवाने की मांग की। भारत ने रिपोर्ट को ‘भ्रामक और प्रेरित’ बताकर खारिज कर दिया तथा कहा कि कश्मीर में मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं हो रहा। नई दिल्ली ने संयुक्त राष्ट्र में अपना कड़ा विरोध दर्ज करवाया और कहा कि सरकार इस बात से गहरी चिंता में है कि संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था की विश्वसनीयता को कमतर करने के लिए निजी पूर्वाग्रह को आगे बढ़ाया जा रहा है।

विदेश मंत्रालय ने कड़े शब्दों वाले बयान में कहा कि यह रिपोर्ट भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करती है। सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। पाकिस्तान ने आक्रमण के जरिए भारत के इस राज्य के एक हिस्से पर अवैध और जबरन कब्जा कर रखा है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने 49 पेज की अपनी रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर (कश्मीर घाटी, जम्मू और लद्दाख क्षेत्र) और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (आजाद जम्मू-कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान) दोनों पर गौर किया।

पी.ओ.के. के लिए ‘आजाद जम्मू-कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान’ जैसे शब्द प्रयोग करने पर संयुक्त राष्ट्र पर आपत्ति जताते हुए विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘रिपोर्ट में भारतीय भू-भाग का गलत वर्णन शरारतपूर्ण, गुमराह करने वाला और अस्वीकार्य है। ‘आजाद जम्मू-कश्मीर’ और ‘गिलगित-बाल्टिस्तान’ जैसा कुछ नहीं है।’’ वहीं संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान से शांतिपूर्वक काम करने वाले कार्यकर्ताओं के खिलाफ आतंक रोधी कानूनों का दुरुपयोग रोकने और असंतोष की आवाज के दमन को भी बंद करने को कहा।

रिपोर्ट में कहा गया कि राज्य में लागू सशस्त्र बल (जम्मू-कश्मीर) विशेषाधिकार अधिनियम, 1990 (अफस्पा) और जम्मू-कश्मीर लोक सुरक्षा अधिनियम, 1978 जैसे विशेष कानूनों ने सामान्य विधि व्यवस्था में बाधा, जवाबदेही में अड़चन और मानवाधिकार उल्लंघनों के पीड़ितों के लिए उपचारात्मक अधिकार में दिक्कत पैदा की है। इसमें 2016 से सुरक्षा बलों द्वारा कथित अत्याचार की घटनाओं और प्रदर्शनों की जानकारी मौजूद है।

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