Edited By vasudha,Updated: 22 Oct, 2019 11:40 AM
इतिहास के पन्नों में 22 अक्टूबर का दिन भारत के लिए अंतरिक्ष की एक बड़ी उपलब्धि के साथ जुड़ा है। दरअसल, 22 अक्टूबर 2008 को भारत ने अपने पहले चंद्र मिशन ‘चंद्रयान-1'' का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया था...
नेशनल डेस्क: इतिहास के पन्नों में 22 अक्टूबर का दिन भारत के लिए अंतरिक्ष की एक बड़ी उपलब्धि के साथ जुड़ा है। दरअसल, 22 अक्टूबर 2008 को भारत ने अपने पहले चंद्र मिशन ‘चंद्रयान-1' का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया था। श्रीहरिकोटा में प्रक्षेपण स्थल पर कई दिन की बारिश और खराब मौसम के बाद आखिरकार भारत ने इस दिन ‘चंद्रयान-1' के रूप में अपने पहले मानवरहित चंद्र अभियान को अमली जामा पहनाया था। इसके साथ ही भारत चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया था।
1,380 कि. ग्रा. वजनी चंद्रयान-1 अंतरिक्ष यान को भारतीय रॉकेट पोलर सैटेलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) द्वारा सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में भेजा गया था। इसमें हाई रेजोल्यूशन रिमोट सेंसिंग उपकरण थे। इन उपकरणों के जरिये चांद के वातावरण और उसकी सतह की बारीक जांच की गई थी. इनमें रासायनिक कैरेक्टर, चांद की मैपिंग और टोपोग्राफी शामिल थे। इसी का नतीजा था कि 25 सितंबर 2009 को इसरो ने घोषणा की कि चंद्रयान-1 ने चांद की सतह पर पानी के सबूत खोजे हैं।
इस अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा के चारों ओर 3,400 से अधिक परिक्रमाएं कीं। इसकी मिशन लाइफ दो साल की थी लेकिन करीब एक साल बाद ऑर्बिटर में तकनीकी खामी आने लगी थी। 28 अगस्त, 2009 को चंद्रयान-1 ने वैज्ञानिकों को डाटा भेजना बंद कर दिया था। इसके बाद इसरो ने 29 अगस्त, 2009 को चंद्रयान-1 मिशन बंद करने की घोषणा की। करीब 7 साल बाद 2 जुलाई, 2016 को नासा के बेहद शक्तिशाली रडार सिस्टम में चांद की कक्षा पर एक चीज चक्कर लगाती हुई कैद हुई थी।
चंद्रयान-1 ने निर्णायक तौर पर चंद्रमा पर पानी के निशान भी खोजे, जोकि इससे पहले कभी नहीं किया गया था। इसने चांद के उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र में पानी से बनी बर्फ का भी पता लगाया। इसने चंद्रमा की सतह पर मैग्नीशियम, ऐल्यूमीनियम और सिलिकॉन का भी पता लगाया। चंद्रमा की इस तरह की तस्वीर इस मिशन की एक और उपलब्धि है।