काबुल में पानी की बूंद-बूंद को तरसे लोग, सूखा पड़ सकता है भविष्य का चेहरा

Edited By Updated: 12 Jul, 2025 03:41 PM

people in kabul yearn for every of water drought

कभी अफगानिस्तान की रूह कहा जाने वाला काबुल, आज अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से जूझ रहा है। हिंदूकुश की पहाड़ियों के बीच बसे इस ऐतिहासिक शहर की पहचान सिर्फ अफगानिस्तान की राजधानी के तौर पर नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र के रूप में भी...

नेशनल डेस्क: कभी अफगानिस्तान की रूह कहा जाने वाला काबुल, आज अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से जूझ रहा है। हिंदूकुश की पहाड़ियों के बीच बसे इस ऐतिहासिक शहर की पहचान सिर्फ अफगानिस्तान की राजधानी के तौर पर नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र के रूप में भी रही है। लेकिन अब यही काबुल दुनिया का पहला ऐसा बड़ा शहर बनने की कगार पर है, जहाँ 2030 तक पानी पूरी तरह खत्म हो सकता है। नॉन-प्रॉफिट मर्सी कॉप्स की एक ताज़ा रिपोर्ट में इसकी गंभीर चेतावनी दी गई है।

तेज़ी से घट रहा भूजल स्तर, हर साल 4.4 करोड़ क्यूबिक मीटर ज़्यादा निकासी
रिपोर्ट के मुताबिक, बीते एक दशक में काबुल के भूजल स्तर में 25 से 30 मीटर तक की भारी गिरावट दर्ज की गई है। हर साल जितना पानी ज़मीन से निकाला जा रहा है, उससे 4.4 करोड़ क्यूबिक मीटर ज़्यादा निकासी हो रही है। इसका सीधा मतलब है कि जलस्तर की प्राकृतिक भरपाई से कहीं ज़्यादा तेज़ी से पानी का दोहन हो रहा है, जिससे भूमिगत जल स्रोत सूखते जा रहे हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि काबुल में आधे से ज़्यादा बोरवेल सूख चुके हैं और करीब 80 फीसदी भूजल दूषित हो चुका है।

जल संकट के पीछे के मुख्य कारण:
काबुल में इस गंभीर जल संकट के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं:

जलवायु परिवर्तन की मार: जल संकट की सबसे बड़ी वजह बदलता मौसम चक्र है। बीते कुछ वर्षों से अफगानिस्तान में बर्फबारी घट रही है, बर्फ समय से पहले पिघल रही है और सूखे की घटनाएँ बार-बार हो रही हैं। 2023 में सामान्य से 40-50% कम बारिश हुई, जिससे भूजल को रिचार्ज होने का मौका ही नहीं मिला। 

प्रशासनिक विफलताएँ: सालों तक चले संघर्ष ने काबुल में आधुनिक जल प्रणाली में निवेश को रोक दिया। जल प्रबंधन, पाइपलाइन मरम्मत और वर्षाजल संग्रहण जैसे बुनियादी कामों की लगातार अनदेखी की गई है। 170 मिलियन डॉलर की लागत वाला पंजशीर नदी से पानी लाने वाला प्रोजेक्ट वर्षों से सिर्फ कागजों में अटका पड़ा है।

तेजी से बढ़ती आबादी: 2001 में काबुल की आबादी जहाँ 10 लाख थी, वहीं अब यह 60 लाख के पार पहुँच चुकी है। युद्ध, आंतरिक विस्थापन और अस्थिर शासन व्यवस्था के चलते लाखों लोग काबुल में बस गए, जिसका नतीजा यह हुआ कि सीमित जल संसाधनों पर भारी बोझ पड़ गया।

बोतलबंद पानी कंपनियाँ और ग्रीनहाउस बढ़ा रहे मुसीबत
काबुल में 500 से अधिक बोतलबंद पानी और सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियाँ काम कर रही हैं, जो भूजल का अंधाधुंध दोहन कर रही हैं। सिर्फ अलोकोजे कंपनी ही हर साल 1 अरब लीटर पानी निकाल रही है। इसके अलावा, 400 हेक्टेयर में फैले ग्रीनहाउस सालाना करीब 4 अरब लीटर पानी की खपत कर रहे हैं, जिससे भूजल पर और दबाव बढ़ रहा है।

अगर कुछ नहीं किया तो क्या होगा? 30 लाख लोगों के विस्थापन का खतरा
अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अफगान सरकार ने जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो हालात और बिगड़ेंगे। अनुमान है कि काबुल से लगभग 30 लाख लोग विस्थापित हो सकते हैं। ये संकट सिर्फ राजधानी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। खासतौर पर उत्तरी, उत्तर-पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी प्रांतों में सूखा तेज़ी से फैल रहा है। यहाँ फसलें बर्बाद हो रही हैं, और पशुधन मर रहे हैं। खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के मुताबिक, खेती और पशुपालन पर निर्भर लाखों लोगों की रोज़ी-रोटी खतरे में है।

उम्मीद की किरण: पंजशीर नदी प्रोजेक्ट
इन सबके बीच, पंजशीर नदी से काबुल तक पानी लाने की योजना एक उम्मीद की किरण ज़रूर है। इसका डिज़ाइन 2024 के अंत तक तैयार हो चुका है और सरकार इसके लिए निवेशकों की तलाश में है। अगर इसे समय पर मंजूरी और फंडिंग मिल गई, तो करीब 20 लाख लोगों को साफ पानी मिल सकेगा, जो काबुल को इस गंभीर संकट से बचाने में मददगार साबित हो सकता है।
 

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