Edited By Yaspal,Updated: 10 Jul, 2018 09:12 PM
राज्य सभा का 18 जुलाई से शुरू हो रहे मॉनसून सत्र में सदन के सदस्य संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं में किसी में भी बोल सकेंगे।
नई दिल्लीः राज्य सभा का 18 जुलाई से शुरू हो रहे मॉनसून सत्र में सदन के सदस्य संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं में किसी में भी बोल सकेंगे। दरअसल, उच्च सदन में अब पांच और भाषाओं- डोगरी, कश्मीरी, कोंकणी, संथाली और सिंधी में एक ही समय में साथ-साथ अनुवाद की सुविधाएं मुहैया होगी।
राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने नये अनुवादकों के एक समूह को प्रशिक्षण और योग्यता पूरी होने का प्रमाणपत्र देकर इस कार्य के लिए मंगलवार को शामिल किया, जिससे यह संभव हो पाया है। उपराष्ट्रपति ने कहा ‘‘मुझे हमेशा से यह महसूस होता रहा है कि हमारी भावनाओं और विचारों को बगैर किसी अवरोध के जाहिर करने के लिए मातृभाषा प्राकृतिक माध्यम है।’’ उन्होंने कहा कि संसद जैसी बहुभाषी संस्था में सदस्यों को भाषाई बाधाओं के चलते अन्य की तुलना में खुद को अक्षम या तुच्छ नहीं समझना चाहिए।
गौरतलब है कि नायडू ने पदभार संभालने के शीघ्र बाद भरोसा दिलाया था कि संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज 22 भाषाओं में किसी में भी सदस्यों के बोलने के लिए कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने कहा था कि मातृभाषा में बोलना विचारों को बेहतर तरीके से जाहिर करने में मदद करता है। उनके इस आश्वासन के अनुपालन में राज्यसभा सचिवालय ने इन पांच भाषाओं में अनुवादकों की तलाश करने, उनका चयन करने और प्रशिक्षित करने की विशेष कोशिशें की।
इन 22 अनुसूचित भाषाओं में राज्यसभा में एक ही समय में साथ-साथ अनुवाद की सेवा 12 भाषाओं के लिए पहले से ही थी । इनमें असमी, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, मराठी, ओडिय़ा, पंजाबी, तमिल, तेलुगू और उर्दू शामिल हैं। पांच और भाषाओं-बोडो, मैथिली, मणिपुरी, मराठी और नेपाली के लिए लोकसभा के अनुवादकों को तैनात किया जाता था।