कांगो में मुश्किलों से घिरे भारतीय

Edited By Updated: 09 Jul, 2016 02:38 PM

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भारत के हैदराबाद में कांगो की एक महिला की हत्या के बाद अफ्रीकी देश कांगो की राजधानी किंशासा में हिंसा फैलनी शुरू हो गई और

भारत के हैदराबाद में कांगो की एक महिला की हत्या के बाद अफ्रीकी देश कांगो की राजधानी किंशासा में यह खबर पहुंचते ही हिंसा फैलनी शुरू हो गई। बदले के भावना से स्थानीय लोगों ने वहां भारतीय कारोबारियों पर हमला किया। इससे घबराकर भारतीयों ने अपने आप को घरों में बंद कर लिया। दुकानें भी बंद रखी गई। किंशासा एक नगर के लोग इतने आक्रोशित थे कि उन्होंने दुकानों पर पथराव के अलावा उनके मालिकों की पीट-पीटकर हत्या करने की कोशिश की। सुनने में आया कि ये लोग उस महिला को अपनी बहन संबोधित कर रहे थे और उसकी हत्या का बदला लेना चाहते थे। हैदराबाद की घटना की कांगो के लोगों द्वारा इतनी तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की जाएगी, इसकी किसी को कल्पना भी नहीं थी।  

संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना के कुछ भारतीय सैनिकों द्वारा वहां की महिलाओं के साथ बलात्कार किए जाने से भी स्थानीय लोगों में रोष व्याप्त हो गया था। अगस्त 2010 में वहां शांति सेना में शामिल 3 भारतीय सेनिकों की हत्या कर दी गई थी और हमले में कुछ अन्य घायल हो गए थे। ये सभी सैनिक कुमांऊ रेजिमेंट के थे। तब वहां कारोबारियों को हिंसा का शिकार नहीं बनाया गया था।

मई 2016 में दिल्ली में जब कांगो के एक युवक की हत्या की गई थी तब भी किन्शासा में कुछ भारतीयों के साथ मारपीट और उनकी दुकानों में तोड़फोड़ की गई थी। यहां तक कि उन पर गोलियां भी चलाई गई। उन्होंने भारत में अफ्रीकी मूल के लोगों से नफरत के खिलाफ ठोस कदम उठाने की मांग की थी। इस युवक की हत्या के बाद अफ्रीकी देशों के दूतों ने केंद्र सरकार की ओर से मनाए जाने वाले अफ्रीका डे समारोह में शामिल न होने और भारत में शिक्षा के लिए अफ्रीकी छात्रों को नहीं भेजने की धमकी भी दी थी। 

एक अनुमान के अनुसार नई दिल्ली में करीब 25 हजार अफ्रीकी छ़ात्र विभिन्न संस्थाओं में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। भारत में चाहे यह घटना गोवा, नई दिल्ली की हो या बेंगलुरू की, जब भी अफ्रीकी छात्रों के साथ  बुरा बर्ताव किया गया या उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई इसका तत्काल असर वहां के लोगों पर होता है। फिर वहां रहने वाले भारतीयों की शामत आ जाती है। इस समय कांगों की राजधानी में लगभग 5 हजार भारतीय रहते हैं।

एक नजर भारत और अफ्रीकी देशों पर डालें तो आजादी से पहले ये संबंध बहुत अच्छे थे। महात्मा गांधी ने दक्षिणी अफ्रीका में भेदभावपूर्ण कानूनों के खिलाफ आंदोलन चलाया था। उनके अहिंसा और सत्याग्रह के हथियारों में वहां भी बखूबी से काम किया था। जब भारत आजादी हो गया तो जवाहरलाल नेहरु और इंदिरा गांधी ने उपनिवेशवाद और रंगभेद की नीति के खिलाफ अफ्रीकी देशों का जमकर साथ दिया। इन देशों को आजादी दिलाने में भारत की सकियता दिखाने से भारत का सम्मान बढ़ा। इन देशों के भारत के साथ आर्थिक और व्यापारिक संबंध स्थापित हो गए और बड़ी संख्या में भारतीयों ने भी वहां अपने कारोबार खोल लिए। इस समय कई भारतीय कंपनिया अफ्रीकी देशों में काम कर रही हैं।

भारत ने कभी नस्लवाद का समर्थन् नहीं किया और हमेशा यही भरोसा दिलाया कि यहां रहने वाले अफ्रीका के लोग सुरक्षित हैं। माना जाता है कि अफ्रीकी देशों में इससे हालात विपरीत हैंं। कांगो में इन घटनाओं के बाद वहां दंगे के हालात तो नहीं पैदा हुए, लेकिन लोगों को भारी तनाव में देखा गया। भारतीयों का आरोप है कि वहां की सरकार उनकी सुरक्षा की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है। वर्ष 2001 से राष्ट्रपति जोसेफ काबिला सत्ता पर काबिज हैं। ऐसा विश्वास किया जा रहा है ​वे संविधान की परवाह न करते हुए अपना तीसरा कार्यकाल भी पूरा करना चाहते हैं। लोग चिंतित हैं कि देश में गुस्से की आग कभी भी भड़क सकती है। अब वे कहने लगे हैं कि इससे असुरक्षा की भावना और बढ़ेगी।

यदि भारत सरकार यहां रहने वाले अफ्रीकी नागरिकों की सुरक्षा का भरोसा दिलाकर उनके असतोष को शांत कर सकती है ​तो उसे उनके देशों में बसने वाले भारतीयों की हिफाजत की गारंटी भी लेनी होगी। अन्यथा स्वाइन फ्लू और इबोेला जैसी जानलेवा बीमारियों से जूझ रहे और अकारण होने वाले हमलों को झेलने के लिए देश में जाकर लोग अपनी जान क्यों खतरे में डालना चाहेंगे ?

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