केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर अमेरिका की टिप्पणी पर जयशंकर ने दिया कड़ा जवाब , कहा- भारत में दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं की जाएगी

Edited By Mahima,Updated: 28 Mar, 2024 03:06 PM

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भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार की दोपहर अमेरिकी राजदूतावास से केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय की टिप्पणी से नाराज होके कड़े सवाल जवाब किए। उन्होंने अमेरिका की कार्यवाहक मिशन उप प्रमुख ग्लोरिया बर्बेना को बुला कर कहा कि यह...

नेशनल डेस्क: भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार की दोपहर अमेरिकी राजदूतावास से केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय की टिप्पणी से नाराज होके कड़े सवाल जवाब किए। उन्होंने अमेरिका की कार्यवाहक मिशन उप प्रमुख ग्लोरिया बर्बेना को बुला कर कहा कि यह किसी संप्रभु देश के मामले में दखलंदाजी है। बाद में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बयान जारी किया, “भारत में कुछ कानूनी कार्यवाहियों के बारे में अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता की टिप्पणियों पर हम कड़ी आपत्ति जताते हैं। कूटनीति में किसी भी देश से दूसरे देशों की संप्रभुता और आंतरिक मामलों का सम्मान करने की अपेक्षा की जाती है। अगर मामला सहयोगी लोकतांत्रिक देशों का हो तो यह जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। ऐसा ना होने पर गलत उदाहरण पेश होते हैं।” अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा था, “अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर हमारी करीबी नजर है। हम मुख्यमंत्री केजरीवाल के लिए पारदर्शी कानूनी प्रक्रिया की उम्मीद करते हैं।”

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जयशंकर ने कहा जाहिर सी बात है अमेरिका कौन होता है, किसी देश की न्यायिक प्रक्रिया पर नजर रखने वाला? हमारे यहां एक गंवई कहावत है, सूप बोले तो बोले, चलनी का बोले, जेहिमा बहत्तर छेद हैं! इसका मतलब है सूप तो आवाज करेगा तो क्या चलनी भी आवाज करेगी जो छिद्रों से पटी पड़ी है। इतना ही नहीं यही हाल जो बाइडेन सरकार का भी है वे यह मानते हैं कि भारत और भारतीयों के हर कदम पर आलोचना करना अमेरिकी सरकार का जन्मसिद्ध अधिकार है। हालांकि केजरीवाल को ED द्वारा गिरफ्तार करना अमेरिका को काफी चुभता है और तो और कभी बाल्टीमोर ब्रिज के टूटने की तोहमत वहां भारतीयों पर लगाई जा रही है। भारतीयों के विरुद्ध सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कई तरह की नस्लवादी टिप्पणियां आई हैं। जबकि यह जहाज सिंगापुर की एक कंपनी का है। इसके चालक दल में सभी 22 लोग भारतीय थे।

बताते चलें कि डाली नाम का यह मालवाहक जहाज बाल्टीमोर शहर के फ्रांसिस स्कॉट ब्रिज से मंगलवार की तड़के टकरा गया था। देखते ही देखते यह पुल पल भर में ध्वस्त हो गया। पुल गिरने से आठ लोग पटाप्सको नाम की नदी में बह गए जिनमें से 6 अभी भी लापता हैं। इतना ही नहीं चालक दल की सूझ-बूझ से ज़्यादा लोगों की जान जाने से पहले उन्हें बचा लिया गया। लेकिन चूंकि क्रू में सभी भारतीय थे इसलिए अमेरिका में सोशल मीडिया पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। ये टिप्पणियां भारतीयों के प्रति नफरत को दिखा रही है। दरअसल इसका कारण शायद अमेरिका में भारतीयों की बढ़ती तादाद से है। अमेरिका में भारतीय हर क्षेत्र में गोरों की बराबरी कर रहे हैं। बल्कि कम्प्यूटर साइंस में तो वे आगे हो गए हैं। आईटी क्षेत्र की अधिकांश नौकरियां भारतीय लोगों के पास है। इसलिए अमेरिकी श्वेत भारतीयों से कुढ़ते हैं।

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अमेरिकी अपनी दादागिरी दिखा रहा है
अमेरिका में अब हालात ऐसे हो गए हैं कि वहां अकेले निकलना भी मुश्किल हो गया है। पिछले वर्ष 26 भारतीय छात्रों की हत्या हुई थी। इस वर्ष के तीन महीनों में दस भारतीय छात्रों की हत्या हो चुकी है। अमेरिका ने इन हत्याओं पर कभी कोई सख्त टिप्पणी नहीं की परंतु भारत के आंतरिक मामलों में टिप्पणी करना वह अपना अधिकार समझता है। एक तरह से यह अमेरिक की दादागिरी नहीं तो और क्या है। दरअसल बाइडेन प्रशासन इस बात से बौखलाया हुआ है कि भारत रूस से न तो दोस्ती खत्म कर रहा है न ही यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में वह रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन की निंदा कर रहा है। अभी पुतिन जब पांचवीं बार रूस के राष्ट्रपति बने तो भारत ने आगे बढ़ कर पुतिन का स्वागत किया। भारत का सदैव से मानना रहा है कि रूस उसका सबसे भरोसेमंद दोस्त है।

जयशंकर ने आगे कहा बाइडेन को निजी तौर पर भी भारत से बहुत खुन्नस है। इसकी एक वजह तो अगले वर्ष होने वाला अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव है। बाइडेन को पता है, कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप से दोस्ती निभा सकते हैं। इंडियन डायसपोरा अमेरिका में बहुत ताकतवर है। पैसे के मामले में भी और राजनीतिक ताकत में भी। भारतीय लोग वहां एकतरफा वोटिंग करते हैं। हालांकि केजरीवाल की गिरफ्तारी पर जर्मनी ने भी केजरीवाल की ED द्वारा गिरफ्तारी पर बड़े नरम लहजे में ऐसी ही बयानबाजी की थी। भारत ने फौरन जर्मन दूतावास के डिप्टी चीफ जॉर्ज एनजवीलर को तलब कर लिया था। उन्हें कहा था कि भारत आंतरिक मसलों पर विदेशी हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा।

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अमेरिका की दखलंदाजी का विरोध
जर्मनी ने सिर्फ इतना ही कहा था कि आरोपों का सामना कर रहे अरविंद केजरीवाल किसी भी अन्य भारतीय नागरिक की तरह निष्पक्ष सुनवाई के हकदार थे। इसमें कोई शक नहीं कि जर्मनी ने यह बयान अमेरिका के उकसावे पर दिया होगा। लेकिन भारत की सख्त प्रतिक्रिया से वह चुप बैठ गया। अमेरिका ने कुछ दिन पहले भी CAA लागू करने के मुद्दे पर कुछ इसी तरह की टिप्पणी की थी। तब भारतीय विदेश मंत्री एस। जयशंकर ने कहा था इतिहास को समझे बिना CAA पर कोई भी टिप्पणी करना ठीक नहीं है। हम विभाजन के दौरान हुई नागरिकता संबंधी जटिलताओं को सुलझाने के लिए ही CAA ले कर आए हैं। 

अपने सख्त रवैये से अमेरिका की दिक्कत यह है कि वह भारत को छोड़ना भी नहीं चाहता और उसे छेड़ने से भी बाज नहीं आ रहा। आज चीन जिस तरह अमेरिका से आर्थिकी में होड़ ले रहा है, वह संकेत है कि एशिया के देशों में अमेरिकी दादागिरी अब नहीं चल पाएगी। ऐसे में अपने एकमात्र सहयोगी देश भारत को छोड़ना अमेरिका के लिए स्थायी सिरदर्द बन जाएगा। आबादी में भारत चीन को टक्कर दे रहा है। यह बढ़ती आबादी ही आज किसी देश की GDP को ऊपर चढ़ाती है। इसीलिए अमेरिका, कनाडा यूके में भारतीय आज शिखर पर हैं। भारतीयों का यह दबाव ही आज नरेंद्र मोदी की शक्ति बन गया है। इसीलिए अमेरिका हो या जर्मनी फौरन सख्त जवाब पाने का हक रखते हैं।

 

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