त्वचा गोरी करने वाली फेयरनेस क्रीम किडनी कर सकती हैं खराब, वैज्ञानिकों ने बताई वजह

Edited By Mahima,Updated: 18 Apr, 2024 09:45 AM

skin whitening fairness cream can damage kidneys

अगर आप एहतियात नहीं बरतते हैं तो आपको त्वचा की रंगत निखारने वाली क्रीमों के इस्तेमाल की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। हालिया अध्ययन के मुताबिक त्वचा को गोरी करने वाली क्रीमों के कारण भारत में लोगों की  किडनी की समस्याएं बढ़ रही हैं।

नेशनल डेस्क: अगर आप एहतियात नहीं बरतते हैं तो आपको त्वचा की रंगत निखारने वाली क्रीमों के इस्तेमाल की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। हालिया अध्ययन के मुताबिक त्वचा को गोरी करने वाली क्रीमों के कारण भारत में लोगों की  किडनी की समस्याएं बढ़ रही हैं। मेडिकल जर्नल किडनी इंटरनेशनल में प्रकाशित अध्ययन कहा गया है कि पारे की भारी मात्रा वाली फेयरनेस क्रीम के बढ़ते उपयोग से मेम्ब्रेन नेफ्रोपैथी (एम.एन.) के मामले बढ़ रहे हैं, यह एक ऐसी स्थिति है जो किडनी के छानने की प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाती है और प्रोटीन रिसाव का कारण बनती है।

क्या है मेम्ब्रेन नेफ्रोपैथी
मेम्ब्रेन नेफ्रोपैथी (एम.एन.) एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसके कारण नेफ्रोटिक सिंड्रोम होता है।  यह एक किडनी विकार है जिसके कारण शरीर मूत्र में बहुत अधिक प्रोटीन उत्सर्जित करता है। अध्ययन के हवाले से शोधकर्ता ने बताया कि पारा त्वचा के माध्यम से अवशोषित हो जाता है और गुर्दे के छानने की प्रक्रिया पर कहर बरपाता है, जिससे नेफ्रोटिक सिंड्रोम के मामलों में वृद्धि होती है।

एम.एन. के 22 मामलों की थी जांच
रिपोर्ट के मुताबिक अध्ययन में जुलाई 2021 से सितंबर 2023 के बीच दर्ज किए गए मेम्ब्रेन नेफ्रोपैथी (एम.एन.) के 22 मामलों की जांच की गई थी। अस्पताल में भर्ती उन मरीजों में कई तरह के लक्षण पाए गए थे, जिनमें अक्सर थकान होने, हल्की सूजन और मूत्र में झाग बढ़ने के छोटे संकेत पाए गए थे। केवल तीन रोगियों में खतरनाक सूजन थी, लेकिन सभी के मूत्र में प्रोटीन का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया था। एक मरीज में सेरेब्रल वेन थ्रोम्बोसिस विकसित हुआ, मस्तिष्क में रक्त का थक्का जम गया था, लेकिन गुर्दे का कार्य सभी में ठीक पाया गया। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा है कि ऐसे उत्पादों के उपयोग के खतरों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता फैलाना और इस खतरे को रोकने के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों को सचेत करना जरूरी है।

मरीज कर रहे थे क्रीम का इस्तेमाल
अध्ययन के निष्कर्षों से पता चला कि लगभग 68 प्रतिशत या 22 में से 15 तंत्रिका एपिडर्मल वृद्धि कारक-जैसे 1 प्रोटीन (एनईएल-1) के लिए पॉजिटिव थे। मेम्ब्रेन नेफ्रोपैथी (एम.एन.) का एक दुर्लभ रूप से अधिक घातक है। 15 मरीजों में से 13 में लक्षण शुरू होने से पहले ही त्वचा को गोरा करने वाली क्रीम का उपयोग करने की बात स्वीकार की। बाकियों में से एक के पास पारंपरिक स्वदेशी दवाओं के उपयोग का इतिहास था जबकि दूसरे के पास कोई पहचानने योग्य चीज नहीं थी। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा कि ज्यादातर मामले उत्तेजक क्रीमों के उपयोग को बंद करने पर ठीक हो गए थे।

सी.एस.ई. ने 2014 में भी किया था खुलासा
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सी.एस.ई.) ने भी साल 2014 में अपने एक अध्ययन के माध्यम से सौंदर्य प्रसाधनों में भारी धातुओं की मौजूदगी का खुलासा किया था।।  अध्ययन में कहा गया था कि गोरा बनाने वाली क्रीम में पारा है जो अत्यंत विषैला माना जाता है।  सी.एस.ई. की प्रदूषण निगरानी लैब (पी.एम.एल.) का कहना था कि सौंदर्य प्रसाधनों में पारे का उपयोग भारत में प्रतिबंधित है।  पी.एम.एल. ने जिन फेयरनेस क्रीमों का परीक्षण किया उनमें से 44 प्रतिशत में पारा पाया गया। इसमें लिपस्टिक के 50 प्रतिशत नमूनों में क्रोमियम और 43 प्रतिशत में निकिल पाया गया। उस दौरान सी.एस.ई. की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा था कि कॉस्मेटिक उत्पादों में पारा मौजूद नहीं होना चाहिए। इन उत्पादों में उनकी उपस्थिति पूरी तरह से अवैध और गैरकानूनी है।

 

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