चाइल्ड पोर्नोग्राफी मामले पर सुप्रीम कोर्ट, कहा- 'मोबाइल फोन पर बच्चों का पोर्न देखना अपराध नहीं'

Edited By Parminder Kaur,Updated: 20 Apr, 2024 04:12 PM

supreme court on child poronography

आज के सोशल मीडिया के जमाने में हर कोई अपना ज्यादा समय मोबाइल फोन पर गुजारना पसंद करता है। कई घरों में पैरेंट्स ने अपने बच्चों को भी मोबाइल फोन की सुविधा दे रखी है, जिसके कारण देखा गया है कि बच्चे फोन का गलत इस्तेमाल करते हैं। ऐसा भी कई बार देखा जाता...

नेशनल डेस्क. आज के सोशल मीडिया के जमाने में हर कोई अपना ज्यादा समय मोबाइल फोन पर गुजारना पसंद करता है। कई घरों में पैरेंट्स ने अपने बच्चों को भी मोबाइल फोन की सुविधा दे रखी है, जिसके कारण देखा गया है कि बच्चे फोन का गलत इस्तेमाल करते हैं। ऐसा भी कई बार देखा जाता है कि बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते-करते समय से पहले बच्चे पोर्न देखना शुरू कर देते हैं। वहीं आज कल चाइल्ड पोर्नोग्राफी अपलोड करने और देखे जाने का मामला तेजी से बढ़ रहा है। चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने और अपलोड किए जाने के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई, ​जिसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।


Supreme Court on Child Poronography मामले में एनसीपीसीआर ने कहा है कि उनकी ओर से चाइल्ड पॉर्नोग्राफी के खिलाफ उठाए जा रहे कदमों पर राज्य सरकारों का रवैया लापरवाह है। अदालत इस मामले में उचित आदेश जारी करें। उच्च न्यायालय ने 11 जनवरी को 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ अपने मोबाइल फोन पर बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री डाउनलोड करने के आरोप में आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा- बहस पूरी हो गई, फैसला सुरक्षित रखा गया।


प्रारंभ में वरिष्ठ अधिवक्ता एच.एस. याचिकाकर्ता दो गैर सरकारी संगठनों की ओर से पेश हुए फुल्का ने कहा- 'हमारे साथ-साथ प्रतिवादी नंबर 1 (चेन्नई के निवासी एस हरीश) द्वारा लिखित दलीलें दायर की गई हैं।' सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा- 'किसी को सिर्फ अपने व्हाट्सएप इनबॉक्स पर रिसीव करना कोई अपराध नहीं है।'


जस्टिस पारदीवाला ने कहा- 'आपने उनसे क्या करने की उम्मीद की थी? कि उन्हें इसे हटा देना चाहिए था? तथ्य यह है कि उन्होंने 2 साल तक इसे नहीं हटाया, यह एक अपराध है?' POCSO अधिनियम के प्रावधानों का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने कहा- 'साझा करने या प्रसारित करने का इरादा होना चाहिए, यह परीक्षण का मामला है।' फुल्का ने एक कनाडाई फैसले का हवाला दिया और कहा- 'जिस क्षण कब्जा साबित हो जाता है, जिम्मेदारी आरोपी पर आ जाती है।'


राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता स्वरूपमा चतुर्वेदी ने कहा- 'हमने डेटा के साथ अपना हस्तक्षेप आवेदन दायर किया है। हम कानून के अनुसार कार्रवाई कर रहे हैं और समन भेज रहे हैं, लेकिन समस्या यह नहीं है। तीन अलग-अलग खंड हैं। समस्या यह है कि वे (उच्च न्यायालय) बच्चों के इस्तेमाल के बजाय बच्चों द्वारा पोर्न देखने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जो पूरी तरह से तथ्यों का गलत इस्तेमाल है।' उन्होंने अपनी बात रखने के लिए एक घंटे का समय मांगा।


सीजेआई ने कहा- 'हां, बच्चे का पोर्नोग्राफी देखना अपराध नहीं हो सकता है, लेकिन पोर्नोग्राफी में बच्चे का इस्तेमाल किया जाना अपराध है। हस्तक्षेप की अनुमति है। आप सोमवार शाम 5 बजे तक अपनी लिखित दलीलें दाखिल कर सकते हैं।' उसके बाद न्यायालय ने एसएलपी में फैसला सुरक्षित रख लिया।


बता दें 11 मार्च को बेंच ने एसएलपी में नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने चेन्नई के रहने वाले एस हरीश और तमिलनाडु पुलिस से भी जवाब मांगा था। 11 जनवरी, 2024 को मद्रास उच्च न्यायालय ने माना था कि केवल बाल पोर्नोग्राफ़ी देखना या डाउनलोड करना सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम) की धारा 67-बी के तहत अपराध नहीं बनता है। कोर्ट ने इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी की लत और स्पष्ट यौन सामग्री आसानी से उपलब्ध होने के मुद्दे पर चर्चा की थी। न्यायालय ने कहा था, अश्लील साहित्य देखने से किशोरों पर नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, जिससे उनके मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों प्रभावित होंगे।

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