उच्चतम न्यायालय ने मणिपुर युवती की मौत का CBI जांच का दिया आदेश

Edited By Rahul Singh,Updated: 26 Mar, 2024 06:47 PM

supreme court orders cbi probe into manipur girl s death

उच्चतम न्यायालय ने दक्षिण दिल्ली में किराये के एक मकान में 2013 में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाई गई 25 वर्षीय मणिपुरी युवती की मौत की सीबीआई जांच का निर्देश देते हुए कहा कि अनसुलझे अपराध उन संस्थानों में लोगों का विश्वास घटा देते हैं जिनकी...

नेशनल डेस्क : उच्चतम न्यायालय ने दक्षिण दिल्ली में किराये के एक मकान में 2013 में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाई गई 25 वर्षीय मणिपुरी युवती की मौत की सीबीआई जांच का निर्देश देते हुए कहा कि अनसुलझे अपराध उन संस्थानों में लोगों का विश्वास घटा देते हैं जिनकी स्थापना कानून-व्यवस्था बरकरार रखने के लिए की गई है। किराये के जिस मकान में यह घटना हुई थी उसके मालिक ने 29 मई 2019 को उक्त परिसर में मृतका ए. एस. रेनगाम्फी का शव पड़ा पाया, जिसके बाद उसी दिन पूर्वाह्न 11 बजे उन्होंने पुलिस को सूचना दी थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत के कारण का पता नहीं चल सका था।

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रिश्तेदारों ने की थी CBI जांच की मांग
मालवीय नगर पुलिस थाने में, अज्ञात आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। जांच मालवीय नगर अपराध शाखा को हस्तांतरित कर दी गई, और मृतका के रिश्तेदारों के अनुरोध पर मामले में आईपीसी की धारा 302 (हत्या) जोड़ी गई। बाद में, मृतका के दो रिश्तेदारों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया था। उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा था कि ऐसा लगता है कि जांच एजेंसी ने बिना किसी पूर्वाग्रह के जांच की है और ऐसा कुछ भी नहीं सामने आया कि जांच को प्रभावित करने के लिए मकान मालिक राजकुमार और उनके करीबी रिश्तेदार अमित शर्मा किसी राजनीतिक नेता के संपर्क में थे।

नहीं लगता आत्महत्या का मामला - SC 
मृतका के करीबी रिश्तेदारों, अवगुंशी चिरमायो और थोटरेथेम लोंगपीनाओ ने उच्च न्यायालय के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी, जिसने जांच की निगरानी के लिए 2019 में एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित की। एसआईटी अपनी रिपोर्ट में इस निष्कर्ष पर पहुंची कि महिला ने दवा या जहर खाकर आत्महत्या की थी। हालांकि, ‘विसरा' रिपोर्ट में इसकी पुष्टि नहीं हुई। शीर्ष अदालत ने कहा कि 25 वर्ष की आयु में युवती के आत्महत्या करने की कोई वजह नजर नहीं आती है। न्यायालय ने कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया ऐसा नहीं लगता है कि यह आत्महत्या का मामला है। अपराध स्थल पर खून सतह पर फैला हुआ था और चादर खून से सनी हुई थी। ऐसा लगता है कि यह हत्या का मामला है, इसलिए दोषियों को अवश्य पकड़ा जाना चाहिए।''


पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त किया
न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें जांच को सीबीआई को हस्तांतरित करने का अनुरोध करने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘यह पाया गया है कि अनसुलझे अपराध उन संस्थानों में लोगों का विश्वास कम कर देते हैं जिनकी स्थापना कानून-व्यवस्था बरकरार रखने के लिए की गई है। अपराध की जांच निष्पक्ष एवं प्रभावी होनी चाहिए।'' न्यायालय ने कहा कि उसका यह मानना है कि उपयुक्त जांच के लिए, और अपीलकर्ताओं के मन में किसी भी संदेह को दूर करने और वास्तविक दोषियों को न्याय के दायरे में लाने के वास्ते इस मामले को सीबीआई को सौंपने की जरूरत है।

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शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के 18 मई 2018 के आदेश को निरस्त किया जाता है, जिसमें जांच सीबीआई को हस्तांतरित करने के मौजूदा अपीलकर्ताओं के अनुरोध को खारिज कर दिया गया था। न्यायालय ने कहा, ‘‘अपील स्वीकार की जाती है और हम निर्देश देते हैं कि सीबीआई विषय की जांच करे। मामला एसआईटी से सीबीआई को हस्तांतरित किया जाए।'' पीठ ने कहा कि गहन जांच के बाद, सीबीआई अपनी पूर्ण जांच रिपोर्ट या आरोपपत्र संबद्ध अदालत में यथाशीघ्र जमा करे। 

 

 

 

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