Edited By Seema Sharma,Updated: 03 Apr, 2018 04:37 PM
सुप्रीम कोर्ट अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) अत्याचार निवारण कानून से संबंधित आदेश को लेकर केंद्र सरकार की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने 20 मार्च के फैसले को स्थगित रखने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान...
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) अत्याचार निवारण कानून से संबंधित आदेश को लेकर केंद्र सरकार की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने 20 मार्च के फैसले को स्थगित रखने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि हम एससी/एसटी के खिलाफ नहीं हैं, बस इतना चाहते हैं कि किसी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। केंद्र की पुर्निवचार याचिका पर 10 दिन बाद विस्तार से सुनवाई की जाएगी। इस बीच, महाराष्ट्र और अन्य लोग अपनी लिखित दलीलें पेश करें।
ये कहा कोर्ट ने
कोर्ट ने कहा कि हमें चिंता एक्ट के दुरुपयोग की है, इसलिए फैसले पर रोक नहीं लगाई जाएगी। कोर्ट अपने फैसले पर कायम है।
-SC/ST एक्ट में केस दर्ज करने के लिए प्रारंभिक जांच जरूरी है।
-FIR IPC के अन्य प्रावधानों पर दर्ज हो सकती है।
-अगर बिना जांच किए किसी सरकारी व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया जाएगा तो वह फिर काम कैसे कर पाएगा।
कोर्ट की टिप्पणी
अनुसूचित जाति/ जनजाति अत्याचार निवारण कानून से संबंधित 20 मार्च के फैसले पर रोक से इंकार, लेकिन केंद्र की पुर्निवचार याचिका पर विस्तार से विचार करेंगे।
-आंदोलन कर रहे लोगों ने फैसला उचित ढंग से नहीं पढ़ा है और वे निहित स्वार्थी तत्वों से गुमराह हो गए।
-हमने कानून के प्रावधानों को नरम नहीं किया है, बल्कि निर्दोष व्यक्तियों की गिरफ्तारी के मामले में उनके हितों की रक्षा की है।
पुर्नविचार याचिका में सरकार की दलील
-सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से सरकार ने इस मामले में याचिका दायर करके शीर्ष अदालत से अपने गत 20 मार्च के आदेश पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है।
-मंत्रालय की यह भी दलील है कि सर्वोच्च न्यायालय के हालिया आदेश से लोगों में संबंधित कानून का भय कम होगा और एससी/एसटी समुदाय के व्यक्तियों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में बढ़ौतरी होगी।