अमरीका ने फिर रस्म अदा कर दी

Edited By ,Updated: 27 May, 2016 03:01 PM

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अमरीका ने पाकिस्तान से कहा है कि वह 26/11 हमले की जांच में भारत के साथ सहयोग करे। उसने अपील की है कि पाकिस्तान अपनी

अमरीका ने पाकिस्तान से कहा है कि वह 26/11 हमले की जांच में भारत के साथ सहयोग करे। उसने अपील की है कि पाकिस्तान अपनी जमीन से काम कर रहे सभी आतंकवादी समूहों को निपटाए। अमरीका यह अपील बार-बार करके सिर्फ रस्म अदायगी कर देता है। जबकि वह जानता है कि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आने वाला है। कुछ दिन पहले ही सूचना मिली थी सैकड़ों आतंकी सीमा पर भारत में घुसपैठ करने के लिए तैयार बैठे हैं। वे मौका तलाश रहे हैं। लगभग 10 आतंकी दहशत फैलाने के प्रवेश कर चुके हैं। आए दिन सीमा पर गोलीबारी हो रही हे। यह पाक सरकार की शह पर हो रहा है। यदि वह सख्ती बरते तो आतंकियों को प्रशिक्षण शिविरों को समाप्त करने में कितना समय लगता है।

भारत का आरोप है कि पाकिस्तान वर्ष 2008 में हुए मुंबई हमले की जांच को लटका रहा है। इसमें दो राय नहीं है, आठ वर्ष बीत चुके हैं और भारत कितने की सबूत दे चुका है कि आतंकी पाकिस्तान से ही आए थे। उन्होंने वहां बैठे अपने आकाओं के निर्देश पर हमला किया था। फांसी पर लटकाने से पूर्व पकड़ा गया आतंकी कसाब का बयान रिकार्ड किया गया था। वीडियो कांफ्रेंसिंग पर डेविड हेडली इस हमले में पाकिस्तान का नाम ले चुका है। ताजा जानकारी यह है कि यह केस पाकिस्तान में जकी उर रहमान पर नए आरोपों में दर्ज हुआ है। अब पाकिस्तान बताए कि मुंबई हमले में लिप्त आतंकियों के खिलाफ वह क्या कार्रवाई करेगा ? 

अपना दामन बचाने के लिए पाकिस्तानी अधिकारी उलटा इसे भारत पर थोप रहे हैं कि उसकी वजह से इस मामले की जांच में देर हो रही है। क्या कभी ऐसा हुआ है कि पीडित पक्ष न्याय पाने के लिए स्वयं मामले को जानबूझकर लटकाए। पाकिस्तान का यह आरोप बेबुनियाद है। इसमें कोई दम नहीं है। यही नहीं, गुरदासपुर, पठानकोट में हुए आतंकी हमलों के भी भारत ने सबूत दे दिए हैं, पाकिस्तान ने तब भी कार्रवाई करने में सक्रियता नहीं दिखाई।

दूसरी ओर, अमरीकी विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता कहते हैं कि पाकिस्तान अपनी जमीन से चलने वाले तालिबान सहित अन्य आतंकी संगठनों पर लगाम लगाए। यह कैसे संभव हो सकता है। पाकिस्तान की नजर कश्मीर पर है, उसे पाने के लिए वह इन्हीं आतंकियों का इस्तेमाल करता है। भारत का अमन चैन अशांत करके वह आतंरिक रूप से इसे कमजोर करने के लिए ही तो इन आतंकियों को भेजता है। संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के सिवाय उसके पास कोई मुद्दा नहीं होता। वह बार-बार कश्मीर के राग को ही अलापता है। अमरीका बताए कि पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ उसकी बातचीत कितना सिरे चढ़ी है ?  

एक बार अमरीका के विदेश विभाग के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा था कि इन दोनों देशों के लिए आपसी बातचीत ही सही रास्ता है जिस पर उन्हें चलना है। दक्षिण एशिया क्षेत्र में तनाव बढ़ रहा है, अत: भारत और पाकिस्तान के लिए यह जरूरी है कि वह अपनी समस्याओं के हल के लिए बातचीत शुरू करें। अब तक जितनी बातचीत हुई हैं ​उनके सार्थक परिणाम नहीं निकल पाए हैं। इसमें दो राय नहीं कि कश्मीर को लेकर अमरीका के रूख में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। उसका मानना है कि दोनों देशों को आपस में मिलकर ही इस समस्या को हल करना है। भारत की संप्रभुता में पाकिस्तान दखल नहीं करे, इसका यही हल है

अमरीका एक महाशक्ति है, उसका यह बयान बचकाना लगता है। वह कुछ समय बाद अपील करके सिर्फ औपचारिकता पूरी कर देता है। यह समस्या बातचीत से हल नहीं होने वाली है, इसके लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाना जरूरी है। यह दबाव भी ऐसा हो कि पाकिस्तान को इन शिविरों के तंबू उखाड़ने के लिए मजबूर होना पड़े। इसके लिए विश्व की अन्य शक्तियों को भी आगे आना होगा। उनके बिना इस तथाकथित मित्रदेश से किसी कार्रवाई की उम्मीद नहीं की जा सकती।

 

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