देश को पहला आदिवासी राष्ट्रपति मिलने की बढ़ी उम्मीद, इन नामों की है चर्चा

Edited By Yaspal,Updated: 23 May, 2022 12:08 AM

the country is expected to get the first tribal president

देश में जुलाई में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने हैं। ऐसे में राष्ट्रपति के नाम की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। भारतीय जनता पार्टी ने जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए चेहरे तलाश शुरू कर दी है। मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का...

नेशनल डेस्कः देश में जुलाई में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने हैं। ऐसे में राष्ट्रपति के नाम की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। भारतीय जनता पार्टी ने जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए चेहरे तलाश शुरू कर दी है। मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है। राष्ट्रपति चुनाव के तमाम समीकरणों के साथ ही भाजपा की निगाहें 2024 के लोकसभा चुनावों पर भी हैं। ऐसे में माना ये जा रहा है कि भाजपा राष्ट्रपति पद के लिए आदिवासी उम्मीदवार पर विचार कर रही है। अगर ऐसा हुआ तो देश को पहली बार कोई आदिवासी राष्ट्रपति मिलेंगा।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आवास पर हाल ही में एक बैठक संपन्न हुई। इस बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी। केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, जुअल ओरांव, पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू और छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनसुईया उइके प्रमु आदिवासी नेता हैं, जिनके नाम राष्ट्रपति पद के लिए चर्चा में हैं।

मालूम हो कि लोकसभा की 543 सीटों में से 47 सीट एसटी वर्ग के लिए रिजर्व हैं। 62 लोकसभा सीटों पर आदिवासी समुदाय प्रभावी है। गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासी वोटरों का वोट ही निर्णायक है। वहीं, गुजरात में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जबकि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 2023 में चुनाव होने हैं। अपने गढ़ गुजरात में भी बीजेपी आदिवासियों को साधने में सफल नहीं रही।

182 सदस्यीय विधानसभा में 27 सीटें एसटी के लिए रिजर्व हैं। बीजेपी को 2007 में इनमें से 13, 2012 में 11 और 2017 में 9 सीटें ही मिल सकी थीं। गुजरात में करीब 14% आदिवासी हैं, जो 60 सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं। झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में 28 सीटें एसटी के लिए रिजर्व हैं। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी इनमें से 11 सीटें और 2019 में 2 सीटें ही जीत सकी। मध्य प्रदेश की 230 सीटों में से 84 पर आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। 2013 में बीजेपी ने इनमें से 59 सीटें जीतीं, जो 2018 में 34 रह गईं। यही स्थिति छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र में भी है।

महाराष्ट्र में लोकसभा की 4 और विधानसभा की 25 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। ऐसे में एनसीपी और शिवसेना के लिए एनडीए के आदिवासी उम्मीदवार का विरोध करना कठिन होगा। वहीं, झारखंड में लोकसभा की 5 और विधानसभा की 28 सीट एसटी के लिए आरक्षित हैं और कांग्रेस की सहयोगी झामुमो इसका विरोध नहीं कर पाएगी। ओडिशा में लोकसभा की 5 और विधानसभा की 28 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक आसानी से एनडीए उम्मीदवार का साथ दे सकते हैं।

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