राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का राष्ट्र के नाम आखिरी संदेश

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Jul, 2017 08:08 PM

the last message of president pranab mukherjee to the nation

देश में गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा की घटनाओं के बीच निवर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने सहिष्णुता को भारतीय सभ्यता की नींव बताते हुए ...

 

नई दिल्ली: देश में गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा की घटनाओं के बीच निवर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने सहिष्णुता को भारतीय सभ्यता की नींव बताते हुए समाज को शारीरिक तथा मौखिक सभी तरह की हिंसा से मुक्त करने की जरूरत बताई है। मुखर्जी ने पदमुक्त होने से पहले राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा कि जिम्मेदार समाज के निर्माण के लिए सहिष्णुता और हिंसा की शक्ति को पुनर्जागृत करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि प्रतिदिन हम अपने आसपास बढ़ती हुई हिंसा देखते हैं। इस हिंसा की जड़ में अज्ञानता, भय और अविश्वास है। हमें अपने जनसंवाद को शारीरिक और मौखिक सभी तरह की हिंसा से मुक्त करना होगा। राष्ट्रपति ने कहा कि सभी प्रकार की हिंसा से मुक्त समाज ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों के सभी वर्गों, विशेषकर पिछड़ों और वंचितों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है। उन्होंने कहा कि में एक सहानुभूतिपूर्ण और जिम्मेदारर समाज के निर्माण के लिए अङ्क्षहसा की शक्ति को पुनर्जागृत करना होगा।

संस्कृति, पंथ और भाषा की विविधता को भारत की विशेषता करार देते हुए उन्होंने कहा कि में सहिष्णुता से शक्ति प्राप्त होती है। यह सदियों से हमारी सामूहिक चेतना का अंग रही है।‘’ जनसंवाद के विभिन्न पहलुओं की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हम बहस मुबाहिशा कर सकते हैं, हम किसी से सहमत हो भी सकते हैं और नहीं भी, लेकिन हम विविध विचारों की आवश्यक मौजूदगी को नहीं नकार सकते, अन्यथा हमारी विचार प्रक्रिया का मूल स्वरूप ही नष्ट हो जाएगा।

मुखर्जी ने कहा कि भारत की आत्मा बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है। भारत केवल एक भौगोलिक सत्ता नहीं, बल्कि इसमें विचारों, दर्शन, बौद्धिकता, औद्योगिक प्रतिभा, शिल्प, नवोन्वेषण और अनुभव का इतिहास समाहित है। सदियों से विचारों को आत्मसात करके भारतीय समाज का बहुलवाद निर्मित हुआ है।

उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समावेशी समाज की परिकल्पना का उल्लेख करते हुए कहा कि गांधीजी भारत को एक ऐसे समावेशी राष्ट्र के रूप में देखते थे, जहां समाज का हर वर्ग समानता के साथ रहता हो और समान अवसर प्राप्त करता हो। राष्ट्रपिता चाहते थे कि भारतवासी एकजुट होकर निरंतर व्यापक हो रहे विचारों और कार्यों की दिशा में आगे बढ़ें।

मुखर्जी ने वित्तीय समावेश को समतामूलक समाज का प्रमुख आधार बताते हुए कहा कि में गरीब से गरीब व्यक्ति को सशक्त बनाना होगा और यह सुनिश्चित भी करना होगा कि हमारी नीतियों का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति को मिले। उन्होंने कहा कि खुशहाली का लक्ष्य सतत विकास के उस लक्ष्य के साथ मजबूती से बंधा हुआ है, जो मानव कल्याण, सामाजिक समावेश एवं पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा है।

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