नजरिया: प्रियदर्शनी से प्रियंका तक कांग्रेस पार्टी, क्या होगा असर?

Edited By vasudha,Updated: 24 Jan, 2019 02:22 PM

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प्रियंका गांधी की कांग्रेस और सियासत में आधिकारिक एंट्री को लेकर देश भर में कौतूहल है। कांग्रेस का आम कार्यकर्ता जो बरसों से उनमे दादी इंदिरा गांधी की छवि देखता आया है, उसमें गजब का उत्साह संचार हुआ है...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): प्रियंका गांधी की कांग्रेस और सियासत में आधिकारिक एंट्री को लेकर देश भर में कौतूहल है। कांग्रेस का आम कार्यकर्ता जो बरसों से उनमे दादी इंदिरा गांधी की छवि देखता आया है, उसमें गजब का उत्साह संचार हुआ है, तो बीजेपी के प्रवक्ताओं की टोली भी सक्रिय हो गयी है, यह बताने के लिए की कुछ नहीं होने वाला। बीजेपी ने प्रियंका की एंट्री को वंशवाद की सियासत के रूप में प्रचारित करके तगड़ा हमला बोला है। यहां तक कि आम तौर पर शांत रहने  वाले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री भी कवि बन गए हैं।  

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जगत प्रकाश नड्डा ने ट्विटर पर प्रियंका और कांग्रेस के परिवारवाद को लेकर लम्बी चौड़ी कविता लिखी है। यही चीज़ बाकी बीजेपी कर रही है। प्रियंका को लेकर बीजेपी के भीतर मची हलचल को बयाँ करने के लिए शायद यही काफी है। दिलचस्प ढंग से बीजेपी के इन पहरेदारों को रविशंकर प्रसाद, पीयूष गोयल, दुष्यंत सिन्हा,पूनम महाजन, पंकजा मुंडे, अनुराग ठाकुर, दुष्यंत सिंह ,अभिषेक सिंह, प्रवेश वर्मा, आकाश विजयवर्गीय जैसे बाबा साहेब नज़र नहीं आ रहे। दूर क्यों जाना मध्य प्रदेश के चुनाव में 30 बाबा साहबों को जो टिकट बांटे गए वह भी बीजेपी भूल गयी है। बीजेपी भूल यह भी रही है कि जब मोदी आए थे पीएम फेस बनकर तो भी कांग्रेस ने ऐसी ही बातें की थीं।  लेकिन क्या मोदी को रोका जा सका? तो फिर प्रियंका की आमद पर तंज कसकर क्या बीजेपी  उन्हीं का प्रचार नहीं कर रही? हमें तो लगता है किराहुल ने सिर्फ प्रियंका की लांचिंग का काम किया है, ब्रांडिंग बीजेपी ही कर रही है। 
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खैर मसला यह है कि अब प्रियंका के आने से क्या होगा ? क्या कांग्रेस सरकार बना डालेगी अपने दम पर? जवाब साफ़ है --- हरगिज नहीं। ऐसे हालात दूर दूर तक नहीं हैं।  वास्तव में प्रियंका गांधी की लांचिंग सिर्फ और सिर्फ देश का ध्यान कांग्रेस की और केंद्रित करने का एक प्रयास है।  अलबत्ता कांग्रेस के भीतर तो वे अरसे से सक्रिय हैं। हालिया चुनावी जीत के बाद जब मुख्यमंत्रियों के चयन की बात आई थी तो बैठकें प्रियंका की मौजूदगी में ही हुई थीं और उस चयन में प्रियंका की सक्रिय भूमिका थी । वास्तव में कांग्रेस का जन्म किन्ही भी परिस्थितियों में हुआ हो ,उसका विकास एक परिवार की गोदी में ही हुआ है। पहले नेहरू-इंदिरा की जोड़ी ने कांग्रेस को आगे बढ़ाया, फिर इंदिरा-संजय और इंदिरा-राजीव ने यह काम किया। राजीव गांधी की ह्त्या के बाद गैप आया क्योंकि राहुल किशोर थे और सोनिया सियासत से दूर रहना चाहती थीं। तब नरसिंह राव और  सीताराम केसरी के पास देश और पार्टी की बागडोर आयी। लेकिन कांग्रेस के तब कई शक्ति केंद्र उभरे और उनके टकराव से कांग्रेस बिखराव के मुहाने पर पहुंच गयी। तब पार्टी के ही पुराने नेताओं ने सोनिया गांधी से गुहार लगाई। 

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सोनिया ने 1998 में पार्टी की कमान संभाली और अगले ही चुनाव में कांग्रेस पार्टी फिर से सत्ता में थी। गौर करने वाली बात यह है कि कांग्रेस अटल बिहारी जैसे कुशल सियासतदान की सरकार को हराकर पुनर्जीवित हो गयी। हालांकि तब बीजेपी ने विदेशी मूल का मसला इस कदर उठाया कि  अंतत: सोनिया गांधी को पीछे हटना पड़ा। इससे सुषमा और उमा के बाल तो बच गए लेकिन कांग्रेस ने उसके बाद दो टर्म निकाल दीं। बाद में इन दस साल में  हुए भ्रष्टाचार के आरोप कांग्रेस को ले डूबे और मोदी सत्तासीन हुए। 2014 मई में कांग्रेस की लोकसभा में सीट संख्या 24 अकबर रोड के उस समय के तापमान से भी कम हो गईं। उसी समय से प्रियंका गांधी को सक्रिय करने की मांग उठने लगी थी। हालांकि प्रियंका ने ऐसा नहीं किया, लेकिन परिवार में तय हो गया था कि जोड़ियों में(नेहरू-इंदिरा, इंदिरा-संजय, इंदिरा-राजीव ) काम करने के बजाए अब तिकड़ी (सोनिया-राहुल-प्रियंका) में काम करना होगा। यह काम पर्दे के पीछे शुरू हो गया। 

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सोनिया पीछे हटीं और राहुल को कमान दे दी गयी, यह फैसला भी बिल्कुल सही समय हुआ (एक्सीडेंटल पीएम की स्क्रिप्ट से ठीक विपरीत )। अब कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं बचा था, उसे पाना ही था। शुरुआत गुजरात से हुई जहां उसने बीजेपी और मोदी-शाह को नाकों चने चबाने पर मजबूर किया। अगले ही चुनाव में कर्नाटक में बीजेपी की बनाई सरकार गिर गयी और कांग्रेस  ने कुमारस्वामी के साथ सरकार बनाई। इसके ठीक बाद कांग्रेस ने एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में लिंक रोड (कर्नाटक की गठबंधन सरकार) से हाईवे में एंट्री कर ली। हाईवे पर कांग्रेस को सफर जारी रखने के  लिए जब को-ड्राइवर की जरूरत पड़ीतो राहुल ने यह सीट प्रियंका को दे दी। यानी कुल मिलाकर कांग्रेस ने खुद की लय और गति बरकरार रखने के लिए यह कदम उठाया है। अब इससे बीजेपी में खलबली मची हुई है तो यह बीजेपी की भीतर की तस्वीर ब्यान करने वाला ही मामला है,कांग्रेस तो फिलहाल खुद को संभालने में लगी है ताकि चुनाव में बेहतर से बेहतर परफॉर्म किया जा सके। इसलिए अभी यह कहना मुश्किल है की कांग्रेस प्रियदर्शनी के बाद अब  प्रियंका के हाथ में आ गयी है। इसके लिए अभी प्रियंका को कई कुछ करना होगा।   

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यहां होगा पार्टी को बड़ा लाभ 
प्रियंका को आगे करने का एक बड़ा लाभ कांग्रेस को यह मिलेगा (जो शुरू भी हो गया है ) कि फोकस उनके ऊपर चला जायेगा। ऐसे में राहुल गांधी पर पप्पू होने का जो लेवल बीजेपी ने चिपकाया है वह आउट ऑफ़ फोकस हो जायेगा गांधी खुलकर खेल सकेंगे। प्रियंका के खिलाफ राबर्ट वाड्रा के कथित घोटालों से इतर ऐसा कुछ नहीं है,और वाड्रा मालों को कांग्रेस सियासी रंजिश बताकर मैनेज करने के मूड में है। यानी निजी रूप से प्रियंका की छवि(दादी इंदिरा जैसा रूप ) का बेहतर उपयोग हो सकता है। इसके अतिरिक्त प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान सौंपे जाने का फैसला भी काफी सोच समझ कर लिया गया है। कांग्रेस इस बहाने यह संकेत भी देना चाहती है कि वो क्षेत्रीय दलों के  गठबंधन (सपा-बसपा) के आगे निढाल नहीं है।  

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एक और गांधी का इंतज़ार 
प्रियंका गांधी तो सामने आ गईं, लेकिन जनपथ के सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस में अभी एक और गांधी का इंतज़ार हो रहा है। वे हैं वरुण गांधी। जी हां अरसे से शांत बैठे वरुण गांधी को कांग्रेस में लाकर बीजेपी को बड़ा झटका देने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। दिलचस्प ढंग से इस मुहिम को सिरे चढाने में बीजेपी के दो दिग्गज नेता भी सक्रिय हैं। प्रियंका और राहुल ने कभी भी वरुण के प्रति कोई नेगेटिव जेस्चर नहीं दिया। पिछले दिनों वरुण गांधी का एक समारोह में ताई सोनिया गांधी के साथ मुस्कुराते हुए एक चित्र भी वायरल हुआ था। बीजेपी में उनके बगावती सुर वैसे भी चर्चा में रहे हैं।  अब ले-दे कर सारा मामला मेनका गाँधी पर जा टिका है। मेनका गांधी वरुण गांधी के लिए बीजेपी में बड़ी जिम्मेदारी चाहती रही हैं,लेकिन वे चाहतें सिरे नहीं चढ़ीं। ऐसे में  बीजेपी के जो दो बड़े नेता  वरुण गांधी की कांग्रेस में वापसी को लेकर सक्रिय हैं वही मेनका गांधी को इस बात के लिए राजी कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि मेनका गांधी को भी  यह बात समझ में आ रही है कि वरुण के लिए बीजेपी से ज्यादा स्कोप में है क्योंकि बच्चों की ट्यूनिंग आपस में बहुत सही है। ऐसे में अगर वरुण गाँधी की कांग्रेस में एंट्री हुई तो वह प्रियंका की एंट्री के मुकाबले कहीं ज्यादा जोर  झटका होगा। क्योंकि बीजेपी का परिवार बिखर रहा है और कांग्रेस का जुड़ रहा है।  

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