Edited By Radhika,Updated: 27 Jun, 2025 04:47 PM

पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा शुरू होने से पहले एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसमें भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए 'बीमार' पड़ जाते हैं और एकांतवास में चले जाते हैं। इस दौरान वे भक्तों को दर्शन नहीं देते।
नेशनल डेस्क: पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा शुरू होने से पहले एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसमें भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए 'बीमार' पड़ जाते हैं और एकांतवास में चले जाते हैं। इस दौरान वे भक्तों को दर्शन नहीं देते। इन 15 दिनों में भगवान का विशेष 'उपचार' किया जाता है, जिसमें उन्हें काढ़ा पिलाया जाता है और औषधियों का लेप लगाया जाता है ताकि वे स्वस्थ हो सकें।

भक्त माधवदास की पीड़ा और भगवान का त्याग
इस अनोखी परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा है। बताया जाता है कि भगवान जगन्नाथ के परम भक्त माधवदास एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे। अपनी बीमारी की हालत में उन्होंने भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना की और कहा, "आप तो जगतस्वामी हैं, क्या आप मेरी बीमारी ठीक नहीं कर सकते?"
भगवान ने माधवदास को बताया कि यह उनके पिछले जन्म के कर्मों का फल है, जिसे उन्हें भोगना ही होगा। भगवान ने कहा कि उनकी बीमारी को ठीक होने में अभी 15 दिन और लगेंगे। यह सुनकर माधवदास रोने लगे, क्योंकि उन्हें बहुत पीड़ा हो रही थी।
अपने भक्त की असहनीय पीड़ा को देखकर भगवान जगन्नाथ द्रवित हो गए। उन्होंने माधवदास के बचे हुए 15 दिनों की बीमारी को स्वयं अपने ऊपर ले लिया। इस त्याग के कारण माधवदास तो तुरंत ठीक हो गए, लेकिन भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए बीमार पड़ गए।
तब से चली आ रही है यह परंपरा
मान्यता है कि तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन महास्नान के बाद भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए बीमार होते हैं और एकांतवास में चले जाते हैं। इन 15 दिनों के बाद, जब भगवान पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं, तो वे रथ पर बैठकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं, जिसे हम भव्य रथयात्रा के रूप में जानते हैं। यह कथा भगवान और भक्त के अटूट रिश्ते, भगवान की करुणा और उनके त्याग को दर्शाती है।