हमारी इमारतें दिव्यांग हितैषी कब बनेंगी

Edited By jyoti choudhary,Updated: 06 May, 2018 01:56 PM

when will our buildings become a loyal advocate

हर वर्ष 3 दिसम्बर को ‘इंटरनैशनल डे ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटी’ (दिव्यांग अधिकारों के पक्ष में मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय दिवस) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन की घोषणा संयुक्त राष्ट्र आम सभा के रैसोल्यूशन 47/3 द्वारा वर्ष 1992 में की गई थी

जालंधरः हर वर्ष 3 दिसम्बर को ‘इंटरनैशनल डे ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटी’ (दिव्यांग अधिकारों के पक्ष में मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय दिवस) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन की घोषणा संयुक्त राष्ट्र आम सभा के रैसोल्यूशन 47/3 द्वारा वर्ष 1992 में की गई थी और हर वर्ष संयुक्त राष्ट्र के तहत इस दिन दिव्यांगों के अधिकारों तथा हितों के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास किया जाता है। 

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
गत वर्ष दिसम्बर में सर्वोच्च  न्यायालय ने केंद्र तथा राज्यों से सार्वजनिक स्थलों को दिव्यांगों विशेषकर नेत्रहीन हितैषी बनाने के लिए निर्देश दिए थे। जस्टिस ए.के. सीकरी तथा अशोक भूषण की खंडपीठ ने कहा कि सरकारी तथा शैक्षिक संस्थानों की इमारतों को दिव्यांगों की जरूरतों के अनुरूप तैयार करना आवश्यक है। अनुमानत: देश में 6 से 7 करोड़ दिव्यांग हैं जिनमें से लगभग 50 प्रतिशत नेत्रहीन हैं। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार दिव्यांगों को केवल शिक्षा के अवसर प्रदान करना ही काफी नहीं है, शैक्षणिक संस्थानों की इमारतों को भी उनके लिए हितैषी बनाना आवश्यक है। इसके बिना वे शिक्षा का उपयुक्त लाभ नहीं उठा सकते। 

देश में इमारतों की सच्चाई
काफी समय से दुनिया भर में सार्वजनिक इमारतों तथा परिवहन के साधनों को दिव्यांग हितैषी बनाने की मांग की जाती रही है परंतु हमारे देश में अभी इस दिशा में गम्भीरता के साथ प्रयास तक शुरू नहीं किए गए हैं। 

इस वर्ष मार्च में बीमारी के चलते स्वर्ग सिधारे प्रसिद्ध दिव्यांग अधिकार कार्यकत्र्ता जावेद अबिदी ने एक बार बताया था कि जब भी उन्हें आवास बदलना हो तो अपने लिए उपयुक्त किराए का मकान तलाश करने में ही काफी कठिनाई होती थी। ऐसे हालात में किसी भी प्रकार की दिव्यांगता वाले व्यक्ति के लिए किराए पर मकान तलाश करना बेहद दुश्वार है। यह कठिनाई इस तथ्य के अलावा है कि शैक्षिक, सामाजिक, मनोरंजक, कारोबारी एवं आवासीय उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल होने वाली इमारतों को दिव्यांगों के इस्तेमाल में सुविधा के नजरिए से आज भी डिजाइन नहीं किया जा रहा है।

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