सर्टिफिकेट के त्रुटि को ठीक कराने में नहीं लगेगा समय

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Apr, 2018 03:44 PM

time will not take time to correct the certificate error

स्कूल का एडमिशन और बोर्ड का रजिस्ट्रेशन फार्म भरते समय विद्यार्थी या स्कूल की ओर से दिखाई जाने वाली जल्दबाजी के चलते एक छोटी सी त्रुटि होने के बाद

लुधियाना (विक्की): स्कूल का एडमिशन और बोर्ड का रजिस्ट्रेशन फार्म भरते समय विद्यार्थी या स्कूल की ओर से दिखाई जाने वाली जल्दबाजी के चलते एक छोटी सी त्रुटि होने के बाद सर्टीफिकेट में इसे दुरुस्त करवाने के लिए स्टूडैंट्स को सी.बी.एस.ई. दफ्तर में बार-बार चक्कर लगाने पड़ते हैं। जब किसी स्टूडैंट्स ने विदेशी यूनिवर्सिटी या कालेज में एडमिशन के अलावा कहीं अन्य बोर्ड में इस सर्टीफिकेट को इस्तेमाल में लाना हो तो यह उपयोगी होने की बजाय रोड़ा बन जाता है। 

कई बार तो एक ही केस को दुरुस्त होने में दस्तावेजी प्रक्रिया लंबी होने के चलते 1 वर्ष से अधिक समय लग जाता है। परीक्षा परिणाम के बाद कई ऐसे केस सामने आते हैं, जब 10वीं के सर्टीफिकेट में अपना नाम व अन्य छोटी-छोटी त्रुटियां दुरुस्त करवाने के लिए विद्यार्थी स्कूल और सी.बी.एस.ई. के दफ्तरों में चक्कर लगाते देखे जा सकते हैं लेकिन इनको स्कूल व बोर्ड की ओर से नियमों का हवाला देकर वापस लौटा दिया जाता है। अब ऐसे स्टूडैंट्स की पीड़ा को दूर करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने सी.बी.एस.ई. को निर्देश दिए हैं कि स्कूल सर्टीफिकेट में गलत नाम के कारण बच्चों को होने वाली परेशानी को दूर करने के लिए कदम उठाए जाएं। कोर्ट के निर्देश अनुसार बोर्ड नाम में बदलाव से जुड़े अपने बाय-लॉ पर दोबारा विचार करके उसे सरल बनाए। इसके लिए बाकायदा सी.बी.एस.ई. को 6 महीने का समय दिया गया है।  दिल्ली हाईकोर्ट के इस निर्देश के बाद सी.बी.एस.ई. द्वारा उक्त प्रक्रिया को सरल करना लाजिमी हो गया है। इस प्रक्रिया में उलझे कई अभिभावकों ने उक्त फैसले के बाद राहत की सांस ली है। 

इंगलिश के स्पैलिंग और उप-नाम से जुड़े हैं मामले
स्कूल में दाखिले के समय जब अभिभावक स्वयं के साथ जुड़ी जानकारी भरते हैं तो अनभिज्ञ होने के कारण कई बार निक नेम (उप नाम) ही भर बैठते हैं। यही नहीं कई बार तो इंगलिश में बच्चों या उसके पेरैंट्स के नाम के स्पैलिंग में भी अंतर होने से स्टूडैंट्स को 10वीं के बाद इसे दुरुस्त करवाने में समस्या आती है। उदाहरण के तौर पर यह नाम फिर स्टूडैंट्स के हर क्लास के नए रजिस्टर पर अध्यापक द्वारा अंकित कर दिया जाता है। 9वीं कक्षा में सी.बी.एस.ई. के पास स्टूडैंट्स का रजिस्ट्रेशन भेजते समय भी अध्यापक पहले से ही दाखिला फार्म में भरे नाम के आधार पर रजिस्ट्रेशन के लिए बच्चों का नाम भेज देते हैं लेकिन जब 10वीं के बाद स्टूडैंट्स के हाथ में बोर्ड का सर्टीफिकेट आता है तो उसमें पेरैंट्स या अपने नाम के स्पैलिंग पासपोर्ट में अंकित नाम के अनुसार न होने से परेशानी का दौर शुरू हो जाता है।

यह उत्पन्न होती है बाधा 
केस नंबर-1 एक छात्र जपनजीत (काल्पनिक नाम) ने बताया कि बोर्ड के सर्टीफिकेट पर उसका नाम जपनजीत है लेकिन पासपोर्ट पर उसका नाम जपनजीत सिंह सिद्धू लिखा हुआ है। जब उसने कनाडा के एक कालेज में दाखिले के लिए दस्तावेज गत वर्ष जमा करवाए तो सर्टीफिकेट में अंकित नाम और पासपोर्ट में लिखे नाम में आए अंतर के चलते विदेशी कालेज ने उसे सर्टीफिकेट में नाम दुरुस्त करवाने के लिए कहा। इसके बाद उसने इस प्रक्रिया को शुरू किया लेकिन अभी भी प्रक्रिया बीच में ही लटकी हुई है, क्योंकि दस्तावेजी कार्रवाई काफी लंबी है।

दूसरा केस अगर बताएं तो सर्टीफिकेट पर एक अन्य स्टूडैंट के पिता जगजीत का नाम अंग्रेजी के डबल ई के साथ लिखा हुआ है लेकिन पिता के आधार कार्ड पर वही नाम आई के साथ लिखा है। अब इस संबंध में पासपोर्ट बनवाने में भी उसे दिक्कत आ रही है। इस संबंधी दस्तावेजी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही पासपोर्ट बनेगा, जिसके बाद ही छात्र 12वीं के रिजल्ट के बाद किसी विदेशी यूनिर्वसिटी में दाखिले के लिए आवेदन कर सकेगा।

बोर्ड ने बदलाव के लिए समय में की कटौती
बता दें कि 10वीं की मार्कशीट में गलत नाम या जन्मतिथि में सुधार के लिए नियमों में सी.बी.एस.ई. ने गत वर्ष ही बदलाव किया है, जिसके चलते स्टूडैंट्स गलत नाम या जन्म तिथि में सुधार 1 वर्ष के भीतर ही करवा सकते हैं। बोर्ड ने 2017 की परीक्षाओं से इस नियम को लागू कर दिया है, जिसके चलते 1 वर्ष से अधिक समय होने पर किसी भी त्रुटि को बदला नहीं जाएगा। इससे पहले 10वीं के छात्र रिजल्ट घोषित होने के 5 वर्ष बाद तक भी सर्टीफिकेट में नाम, जन्म तिथि व पिता के नाम का बदलाव करवा सकते थे लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। 


अदालत में जाने को मजबूर होते हैं स्टूडैंट्स
इस तरह के कई ऐसे मामले हैं, जो छोटी-छोटी त्रुटियों के कारण अधर में लटके हुए हैं। स्टूडैंट्स का भविष्य सी.बी.एस.ई. या किसी अन्य बोर्ड के नियमों के चलते दाव पर लग जाता है, क्योंकि बोर्ड स्टूडैंट्स, स्कूल या फिर उसके अभिभावकों तक की बात तक पर गौर करने के लिए तैयार नहीं होता। ऐसे कई मामलों में स्टूडैंट्स को अदालत की शरण लेनी पड़ती है, जहां से स्टूडैंट्स को न्याय मिलने पर उनके भविष्य का रास्ता साफ होता है। 

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह जारी किए आदेश
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस ए.के. चावला और जस्टिस रविन्द्र भट्ट की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि सी.बी.एस.ई. एफीलिएटिड स्कूलों में आने वाले सभी स्टूडैंट्स ऐसे परिवारों से ताल्लुक नहीं रखते, जो पूरी तरह से जागरूक व शिक्षित हैं। ऐसे में कई स्टूडैंट्स स्कूलों में अपनी इ‘छानुसार दाखिला लेते हैं लेकिन संभव है कि वे अपना नाम भी ठीक से लिखना नहीं जानते। जब तक स्टूडैंट्स को अपनी गलती समझ आती है, तब तक देर हो चुकी होती है। बैंच ने कहा कि बाय-लॉ की वजह से स्टूडैंट्स को नाम में बदलाव करवाने संबंधी दिक्कत आती है, क्योंकि उनके दूसरे दस्तावेजों में भी गलत नाम आ जाता है। कई बार स्टूडैंट्स नाम में गड़बड़ी के कारण अ‘छे मौके भी खो देते हैं। यह सब बाय लॉ 69.1 की वजह से ही है। 

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