केवल एक पुण्य के बल पर जीवात्मा ने बनाया यमराज, इन्द्र, ब्रह्मा अौर शिव जी को अपना कहार

Edited By ,Updated: 30 Oct, 2015 10:43 AM

harinam bhajan

एक गांव में दो भार्इ रहते थे। दोंनों के स्वाभाव में बहुत अतंर था। बड़ा भार्इ साधु-सेवी एंव भगवान के भजन में रुची रखने वाला था। दान-पुण्य करने वाला एंव सरल हृदय वाला था.....

एक गांव में दो भार्इ रहते थे। दोंनों के स्वाभाव में बहुत अतंर था। बड़ा भार्इ साधु-सेवी एंव भगवान के भजन में रुची रखने वाला था। दान-पुण्य करने वाला एंव सरल हृदय वाला था। छोटा भार्इ अच्छे स्वभाव का था परंतु व्यापारी मस्तिष्क का था। उसे साधु-सेवा, भजन अौर दान देना अच्छा नहीं लगता था। अत: वह बड़े भार्इ से सहमत न था। उग्र-विरोध तो नहीं करता था पर समय-समय पर अपनी असहमति प्रकट करता था, बड़े भार्इ को इस बात का दुख था कि उसका छोटा भार्इ मानव जीवन के वास्तविक लक्ष्य श्री भगवान की प्राप्ति में रुचि न रख कर दुनियादारी में ही व्यस्त है। बड़े भार्इ की अच्छी नीयत थी। वह समय-समय पर उसे नम्रता व युक्तियों से समझाता था अौर दूसरे अच्छे लोगों से भी कहलवाता, उपदेश दिलवाता पर छोटे भार्इ पर कोर्इ प्रभाव नहीं होता।
 
एक बार उनके गुरु जी अपनी शिष्य मण्डली सहित उनके गांव में अाए तो बड़ा भार्इ उनको अपने घर भिक्षा (भोजन) कराने की इच्छा से निमंत्रण देने पहुंचा। वहां बात ही बात में उसने अपने छोटे भार्इ की स्थिति बतलार्इ तो गुरु जी ने न जाने क्या विचार कर कहा कि तुम एक काम करना जिस दिन तुम्हारा छोटा भार्इ घर में रहे उस दिन हमें भोजन के लिए बुलाना अौर हमें लाने अौर वापिस भिजवाने के समय बाजा साथ रखना। तुम्हारा छोटा भार्इ जो करे उसे करने देना, शेष सारी व्यवस्था हम कर लेंगे।
 
गरु जी की अाज्ञानुसार सारी व्यवस्था हुर्इ। बजते हुए बाजे के साथ उनके गुरुजी शिष्यमण्डली सहित अा रहे थे। उस दिन घर में ज्यादा रसोर्इ बनते देखकर छोटे भार्इ ने बड़े भार्इ से पुछा कि," रसोर्इ किसके लिए बन रही है?" 
 
तब बड़े भार्इ ने कहा," अाज हमारे गुरु जी शिष्यमण्डली सहित हमारे यहां बाजे-गाजे के साथ भोजन के लिए अा रहे हैं।"
 
छोटे भार्इ को ये बात बहुत बुरी लगी। उसने कहा अाप जो यह सब चीजें करते हैं, मुझे तो अच्छी नहीं लगती, अाप बड़े हैं, जो चाहें सो करें किंतु मैं ये सब देख भी नहीं सकता इसलिए मैं कमरे में किवाड़ बंद करके बैठ जाता हूं। इससे किसी प्रकार का कलह-क्लेश होने से बच जाएगा। जब जाएंगे तब बाहर निकलूंगा। इतना कहकर उसने कमरे में जाकर अंदर से किवाड़ बंद कर लिए।
 
गुरु जी अाए, उन्होंने सब बातों को जान कर कमरे को बाहर से सांकल लगवा दी। भोजन सम्पंन हुअा। फिर गुरुजी ने अपनी सारी मण्डली को बाजे-गाजे के साथ लौटा दिया अौर स्वंय उस कमरे के पास खड़े हो गए।
 
जब लौटते हुए बाजे की अंदर से अावाज सुनी तब छोटे भार्इ ने समझा कि सब चले गए अौर अंदर की सांकल हटा कर किवाड़ खोलने चाहे किंतु वे बाहर से बंद थे। उसने जोर लगाया तथा बार-बार पुकार कर कहा,"बाहर से दरवाजा किसने बंद किया। जल्दी खोलो।"
 
गुरु जी ने किवाड़ खोले एवं उसके बाहर निकलते ही उसके हाथ की कलार्इ जो़र से पकड़ ली। गुरु जी बलवान थे इसलिए वह चेष्टा करके भी न छुड़ा सका तो गुरु जी ने मुस्कराते हुए कहा,"भैया! हाथ छुड़ाना है तो एक बार "राम" कहो।"
 
उसने अावेश में अाकर कहा मैं यह नहीं कहूंगा। गुरु जी बोले तब तो हाथ नहीं छूटेगा। क्रोध अौर बल का पूरा प्रयोग करके भी जब वह हाथ न छुड़ा सका तो उसने कहा अच्छा 'राम' । छोड़ो हाथ जल्दी अौर भागों यहां से। गुरु जी मुस्कराते हुए यह कह कर बाहर चले गए। तुमहे 'राम' कहा तो बड़ा अच्छा किया पर मेरी बात याद रखना इस 'राम' नाम को किसी कीमत पर कभी बेचना मत।
 
यह घटना तो हो गर्इ किंतु कोर्इ विशेष अंतर नहीं अाया। समय अाने पर दोनो भार्इयों की मृत्यु हो गर्इ। विषय वासना अौर विषय कामना वाले लोग विवेकभ्रष्ट हो जाते हैं अौर जाने-अनजाने में छोटे-बड़े पाप करते रहते हैं, पाप का फल तो भोगना ही पड़ता है। मरने के बाद जब छोटे भार्इ की अात्मा को यमलोक ले जाया गया अौर वहां कर्म का हिसाब-किताब देख कर चित्रगुप्त ने बताया कि इस जीव ने मनुष्य योनि में केवल साधु-अवज्ञा ही नहीं बल्कि भजन का विरोध एवं बड़े-बड़े पाप किए हैं पर इसके दृारा एक महान कार्य भी हुअा है। इसकी जिहृा से एक महात्मा के सम्मुख एक बार जबरदस्ती 'राम' नाम का उच्चारण हुअा है।
 
यमराज ने यह सुन कर मन ही मन उसके प्रति श्रद्धा प्रकट की अौर कहा इस राम नाम के बदले अाप जो चाहे मांग लो, फिर अाप को पापों का फल भोगना पड़ेगा। उसे साधु की कही बात याद अा गर्इ कि इसे किसी भी कीमत पर बेचना मत। उसने कहा कि मैं 'राम' नाम बेचना नहीं चाहता किंतु इसका मुल्य जानना चाहता हूं। 'राम' नाम का मूल्य अांकने में यमराज असमर्थ थे। अत : उन्होंने कहा,"चलो देवराज इन्द्र से पुछने चलते है। तब उस जीव ने कहा मैं एेसे नहीं जाऊंगा। मेरे लिए एक पालकी मंगार्इ जाए अौर उससें कहारों के साथ अाप भी लगेंगे। उसकी बात सुन कर यमराज सकुचाये तो सही पर सारे पापों को नाश कर देने नाले अौर मन बुद्धि से अतीत फलदाता भगवान् नाम के लेने वाले की पालकी उठाना अपने लिए सौभाग्य समझ कर पालकी में लग गए।
 
पालकी स्वर्ग पहुंची। देवराज इन्द्र ने स्वागत किया अौर यमराज से सारी बात जान कर कहा,"मैं भी 'राम' नाम का मूल्य नहीं जानता हूं। ब्रहृा जी के पास जाना चाहिए।"
 
उस जीव ने निवेदन किया यमराज के साथ अाप भी पालकी में लगें तो चलूं। इन्द्र ने बात मान ली अौर पालकी लेकर ब्रह्म लोक में पहुंचे। ब्रह्म जी ने भी 'राम' नाम की महिमा का मूल्य अांकने में असमर्थता प्रकट की अौर जीव के कहने पर पालकी में जुट गए एवं शंकर जी के पास चलने की राय दी। पालकी कैलाश पर्वत पर शिवजी महाराज के पास पहुंची । शिवजी महाराज ने यमराज, इन्द्र एंव ब्रह्म को पालकी में जुटा देख कर अाश्चर्य से सारी बात पूछी तथा बताने पर उन्होंने कहा,"भार्इ! मैं तो दिन-रात 'राम' नाम जपता हूं, उसका मूल्य अांकने की मेरे मन में कभी नहीं अार्इ। अाअो विष्णु भगवान के पास चलते हैं एंव एेसे  भाग्यवान जीव की पालकी में मैं भी लग जाता हूं।"
 
पालकी में एक अोर यमराज अौर देवराज इन्द्र एवं दूसरी अोर ब्रहृा अौर शिवजी महाराज कहार बने चल रहे थे। पालकी वैकुण्ठ पहुंची। चारों महान देवताअों को पालकी उठाए देख कर भगवान विष्णु हंस पड़े। पालकी वहां दिव्य भूमि पर रखी गर्इ। भगवान ने अादरपूर्वक सबको बिठाया अौर कहा,"अाप लोग पालकी में बैठे हुए इस महाभाग जीवात्मा को उठा कर मेरी गोद में बैठा दीजिए।"
 
देवताअों ने वैसा ही किया। तदनन्तर भगवान विष्णु के पूछने पर शिवजी महाराज ने कहा,"इसने एक बार परिस्थिति से बाध्य होकर 'राम' नाम लिया था। इसने 'राम' नाम का मूल्य जानना चाहा पर हम लोगों में से कोर्इ भी 'राम' नाम का मूल्य न बता सका अौर इस जीव की इच्छानुसार पालकी में लग कर अापकी सेवा में उपस्थित हुए हैं। अब अाप बताइए कि  'राम' नाम का क्या मूल्य है। 
 
भगवान विष्णु ने मुस्कराते हुए कहा,"अाप जैसे महान देव इनकी पालकी को ढोकर यहां तक लाए अौर अाप लोगों ने इसे मेरी गोद में बैठा दिया, अब यह इस गोद का नित्य अधिकारी हो गया है। 'राम' नाम का पूरा मूल्य तो बताया नहीं जा सकता फिर भी अाप इससे ही मूल्य का अनुमान लगा सकते हैं। इस प्रकार राम नाम का महान मूल्याभास पाकर शंकर अादि देवता लौट गए।
 
श्रीराम का पवित्र नाम तीन बार पाठ करना से जो फल होता है, श्रीकृष्ण नाम एक बार उच्चारण करने से वही फल होता है इसलिए तीन बार राम-राम का फल एक बार कृष्ण नाम में ही पाया जाता है। इससे ऊपर भी एक अौर नाम है जिसके विषय में श्रीचैतन्य चरितामृत में कहते हैं।
 
एक कृष्ण नाम से समप्त पापों का नाश हो जाता है एंव प्रेम को उदय करने वाली साधन भक्ति का प्रकाश होता है तत्पश्चात प्रेम के उदय होने पर स्वेद, कम्प, अश्रु इत्यादि विचार उत्पन्न होते हैं एवं अनायास में ही भव बंधन से मुक्त हो जाते हैं। यदि अनेक बार कृष्ण नाम लेने पर भी प्रेम के विचार उत्पन्न नहीं होते तो समझना चाहिए कि निश्चय ही नाम अपराध हो रहे हैं लेकिन चैतन्य-नित्यानन्द के नामों में अपराध के ये सब विचार नहीं हैं। स्वतन्त्र र्इश्वर प्रभु अत्यन्त उदार हैं, नाम लेने से ही प्रेम देने हैं एवं अश्रुधार बहती है। अत: अनर्थयुक्त जीवों के लिए नित्यानन्द प्रभु व श्री चैतन्य महाप्रभु के नाम का कीर्तन करना अर्थात "नितार्इ-गौरांग" "नितर्इ-गौरांग" का कीर्तन करना परम लाभदायक है।
 
श्रीचैतन्य  गौड़ीय मठ की ओर से
श्री बी.एस. निष्किंचन जी महाराज

 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!