भारतीय हाकी के वजूद की जंग थी 2001 जूनियर विश्व कप : ठाकुर

Edited By ,Updated: 05 Dec, 2016 03:44 PM

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भारत को पंद्रह बरस पहले एकमात्र जूनियर हाकी विश्व कप दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले अनुभवी फारवर्ड दीपक ठाकुर का मानना है...

नई दिल्ली : भारत को पंद्रह बरस पहले एकमात्र जूनियर हाकी विश्व कप दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले अनुभवी फारवर्ड दीपक ठाकुर का मानना है कि भारतीय हाकी का अस्तित्व बचाने के लिए वह टूर्नामेंट एक जंग की तरह था और सुविधाओं के अभाव में भी हर खिलाड़ी के निजी हुनर के दम पर टीम ने नामुमकिन को मुमकिन कर डाला।

भारत ने 2001 में आस्ट्रेलिया के होबर्ट में फाइनल में अर्जेंटीना को 6.1 से हराकर एकमात्र जूनियर हाकी विश्व कप जीता था । ठाकुर ने उस टूर्नामेंट में सर्वाधिक गोल किए जबकि देवेश चौहान सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर रहे । सेमीफाइनल में भारत ने जर्मनी को 3.2 से हराया था। अगला जूनियर हाकी विश्व कप आठ से 18 दिसंबर तक लखनउ में खेला जा रहा है और मेजबान को प्रबल दावेदार माना जा रहा है। ठाकुर ने यादों की परतें खोलते हुए भाषा से कहा ,‘‘अब हम सोचते हैं तो हैरानी होती है कि हम कैसे जीत गए । वास्तव में वह टीम सिर्फ अपनी क्षमता के दम पर खेली और जीती थी।

अटैक, डिफेंस या मिडफील्ड हर विभाग में हमारे पास बेहतरीन खिलाड़ी थे । हमें आज जैसी सुविधायें नहीं मिली थी लेकिन भारतीय हाकी का वजूद बनाए रखने का जुनून हमारी प्रेरणा बना ।’’ पूर्व कप्तान राजपाल सिंह ने भी कहा कि उस टीम की क्षमता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी घरेलू स्तर पर सारे खिलाड़ी सक्रिय हैं। राजपाल ने कहा ,‘‘आप उस टीम की क्षमता का अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि उसका 18वां खिलाड़ी 2010 में सीनियर टीम का कप्तान बना और वह खिलाड़ी मैं था । घरेलू हाकी में आज भी उनमें से अधिकांश खिलाड़ी सक्रिय है ।’’  सुविधाओं के अभाव के बारे में पूछने पर ठाकुर ने कहा ,‘‘ हमें याद है कि हैदराबाद में गर्मी में अभ्यास करने के बाद हम होबर्ट में कड़ाके की सर्दी में खेले । यही नहीं खाना इतना खराब था कि पूरे टूर्नामेंट में पिज्जा खाकर गुजारा किया और हालत यह हो गई थी कि पिज्जा खा खाकर पेट में दर्द होने लगा था।

अब सोचते हैं तो हैरानी होती है कि हम कैसे खेल गए ।’’ उन्होंने कहा ,‘‘ अब तो खिलाड़ियों को सारी सुविधाएं मिल रही है। हाकी में पेशेवरपन आ गया है और अनुकूलन वगैरह का पूरा ध्यान रखा जाता है। अब खिलाड़ी तीन तीन दिन ट्रेन से सफर करके खेलने नहीं जाते। सुविधाओं के अभाव के बावजूद हमारी टीम में सकारात्मकता थी और हमने पहले ही दिन से ठान रखा था कि भारतीय हाकी को बचाना है तो यह टूर्नामेंट जीतना ही है।’’ 

पिछले पंद्रह साल में भारत उस सफलता को दोहरा नहीं सका लेकिन इन दोनों धुरंधरों को उम्मीद है कि इस बार अपनी सरजमीं पर टीम पोडियम फिनिश कर सकती है।   ठाकुर ने कहा ,‘‘ सेमीफाइनल तक तो भारत की राह आसान लग रही है और घरेलू मैदान पर खेलने का फायदा भी मिलेगा । टीम की तैयारी पुख्ता है और काफी एक्सपोजर मिला है। कोई माइनस प्वाइंट नहीं दिख रहा तो मुझे नहीं लगता कि खिताब तक पहुंचना उतना मुश्किल होना चाहिए ।’’

वहीं राजपाल ने कहा ,‘‘इस बार पोडियम तक जरूर जा सकते हैं। प्रारूप भी एेसा है कि इसका फायदा हो सकता है। पहले लीग, सुपर लीग, सेमीफाइनल और फाइनल वाला प्रारूप था लेकिन अब लीग , क्वार्टर फाइनल और फाइनल खेला जाता है । यह पक्ष में भी जा सकता है और खिलाफ भी। देखते हैं कि टीम कैसे इसका फायदा उठाती है।’’ 

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