IndvsAUS: पहले टैस्ट मैच में टीम इंडिया से हुई ये बड़ी गलती!

Edited By ,Updated: 28 Feb, 2017 09:35 AM

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क्या भारत निर्णय समीक्षा प्रणाली (डीआरएस) का सही उपयोग करने में नाकाम रहा है? अगर पिछले साल इंग्लैंड के खिलाफ श्रृंखला से लेकर अब तक के आंकड़ों...

नई दिल्ली: क्या भारत निर्णय समीक्षा प्रणाली (डीआरएस) का सही उपयोग करने में नाकाम रहा है? अगर पिछले साल इंग्लैंड के खिलाफ श्रृंखला से लेकर अब तक के आंकड़ों पर गौर करें तो इसका जवाब हां होगा क्योंकि विराट कोहली की टीम को विशेषकर क्षेत्ररक्षण करते समय अक्सर ‘तीसरी आंख’ की पैनी निगाह से बोल्ड होना पड़ा।  

भारत लंबे समय डीआरएस का विरोध करता रहा लेकिन पिछले साल इंगलैंड के खिलाफ 5 टैस्ट मैचों की श्रृंखला से वह ट्रायल के तौर पर इसे आजमाने के लिए तैयार हो गया और तब से सभी टैस्ट मैचों में यह प्रणाली अपनाई गई। भारतीय खिलाडिय़ों की इस प्रणाली को लेकर अनुभवहीनता हालांकि खुलकर सामने आई है।  डीआरएस अपनाने के बाद भारत ने अब तक जो 7 टैस्ट मैच खेले हैं उनमें बल्लेबाजी करते हुए कुल 13 बार मैदानी अंपायर के फैसले को चुनौती दी लेकिन इनमें से केवल 4 बार वह फैसला पलटने में सफल रहा। 

क्षेत्ररक्षण करते समय भारतीय टीम ने कुल 42 बार डीआरएस का सहारा लिया लेकिन इनमें से सिर्फ दस अवसरों पर ही टीम को सफलता मिली।  हर मैच में पहले 80 ओवर तक प्रत्येक टीम को डीआरएस के दो अवसर मिलते हैं। अगर वह इनमें सफल रहती है तो उसका अवसर कम नहीं होता लेकिन नाकाम रहने पर उसके अवसरों की संख्या घट जाती है। अक्सर देखा जाता है कि टीमें 70 से 80 ओवर के बीच इस प्रणाली का अधिक इस्तेमाल करती हैं क्योंकि बचे हुए मौके इसके बाद खत्म हो जाएंगे और दो ने अवसर इसमें जुड़ जाएंगे।  

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