न्यायालय ने प्रवासी कामगारों के मामले में सब ठीक होने के दावे पर महाराष्ट्र सरकार को आड़े हाथ लिया

Edited By PTI News Agency,Updated: 09 Jul, 2020 07:50 PM

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नयी दिल्ली, नौ जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र सरकार को आड़े हाथ लेते हुये उसके इस दावे को स्वीकार करने से इंकार कर दिया कि राज्य में प्रवासी कामगारों के मामले में कहीं कोई समस्या नहीं है। न्यायालय ने कहा कि राज्य का...

नयी दिल्ली, नौ जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र सरकार को आड़े हाथ लेते हुये उसके इस दावे को स्वीकार करने से इंकार कर दिया कि राज्य में प्रवासी कामगारों के मामले में कहीं कोई समस्या नहीं है। न्यायालय ने कहा कि राज्य का यह कर्तव्य है कि वह इस मामले में खामियों का पता लगाये और उन्हें दूर करने के लिये आवश्यक कदम उठाये।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से इस मामले की सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार को नया हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार के दावे और इसके लिये अपनायी गयी शैली पर असप्रसन्नता व्यक्त करते हुये उसे नया हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। राज्य सरकार को नये हलफनामे में कोविड-19 महामारी की वजह से अपने पैतृक घर लौटने के इच्छुक कामगारों की समस्याओं को कम करने के लिये उठाये गये कदमों का विवरण देना होगा।

पीठ ने कहा, ‘‘हमने महाराष्ट्र सरकार के 6 जुलाई, 2020 को दाखिल हलफनामे का अवलोकन किया है। हम महाराष्ट्र सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे की शैली और इसमें किये गये दावे की सराहना नहीं करते हैं।’’
पीठ ने कहा, ‘‘यह किसी के खिलाफ वाद का मामला नहीं है और कमियों का पता लगाना तथा ऐसा पता चलने पर आवश्यक कदम उठाना राज्य का कर्तव्य है। राज्य यह दावा नहीं कर सकता कि जब तक उसे सामग्री के बारे में बताया नहीं जाता, वह उसका जवाब नहीं दे सकता या कार्रवाई नहीं कर सकता।’’
शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को दो गैर सरकारी संगठनों-सर्वहारा जन आन्दोलन और दिल्ली श्रमिक संगठन- की अंतरिम अर्जियों पर भी जवाब देने का निर्देश दिया। इन आवेदनों में दावा किया गया है कि प्रवासी कामगार अभी भी अपने गृह नगर लौटने का इंतजार कर रहे हैं।

पीठ ने इस मामले को 17 जुलाई को आगे सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किया है।

न्यायालय द्वारा कोविड-19 महामारी की वजह से देश में लागू लॉकडाउन के दौरान पलायन कर रहे कामगारों की दयनीय स्थिति का स्वत: संज्ञान लिये जाने के इस मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ‘‘महाराष्ट्र में यह क्या हो रहा है? बड़ी संख्या में प्रवासी कामगार अभी भी राज्य में अटके हुये हैं।

महाराष्ट्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सूचित किया कि शीर्ष अदालत के आदेश पर अमल करते हुये छह जुलाई को नया हलफनामा दाखिल किया गया है। उन्होंने कहा कि राज्य ने उन कामगारों के संबंध में एक सूची उपलब्ध करायी है जिन्हें उनके पैतृक निवास स्थानों पर भेजा गया है।

मेहता ने कहा कि हलफनामे का सार यह है कि जो कामगार पहले जाना चाहते थे, उन्होंने अब ठहरने का फैसला किया है क्योंकि राज्य सरकार ने रोजगार के अवसर खोल दिये हैं और एक मई से अब तक करीब साढ़े तीन लाख कामगार दुबारा महाराष्ट्र लौट आये हैं।

पीठ ने कहा कि यह पता करना राज्य की जिम्मेदारी है कि कामगारों के किस समूह को भोजन, परिवहन और दूसरी सुविधायें मिल रहीं हैं या नहीं मिल रही हैं।

मेहता ने कहा कि जो जाना चाहते थे उन्हें भेज दिया गया और वापस गए कामगारों को हो सकता है कि उन्हें उनकी दक्षता के अनुरूप काम नहीं मिल रहा हो और वे खेतिहर मजदूर की तरह काम नहीं कर सकते।

पीठ ने कहा, ‘‘आपका हलफनामा ठीक नहीं है। हम राज्य के इस दावे को स्वीकार नहीं कर सकते कि महाराष्ट्र में कोई समस्या नहीं है। उन्होंने इसे विरोधात्मक वाद के रूप में लिया है। आप (मेहता) उन्हें सुनवाई की अगली तारीख तक सही हलफनामा दाखिल करने की सलाह दें।’’
मेहता ने कहा कि वह ऐसा करेंगे और व्यक्तिगत रूप से हलफनामे पर गौर करके यह सुनिश्चित करेंगे कि इसमें ज्यादा प्रासंगिक विवरण शामिल हो।

बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि राज्य से कामगारों के वापस जाने का सिलसिला शुरू हो गया है और पटना से दूसरे शहरों को जाने वाली ट्रेन पूरी तरह भरी हुयी हैं।
मेहता ने कहा कि कामगारों का वापस लौटना अच्छी बात है क्योंकि औद्योगिक और व्यापारिक गतिविधियां अब शुरू हो रही हैं।

इस बीच,न्यायालय ने कोविड-19 के प्रबंधन को लेकर राष्ट्रीय योजना बनाने सहित तमाम राहतों के लिये गैर सरकारी संगठन सेन्टर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस की जनहित याचिका को इस स्वत: संज्ञान वाले मामले के साथ संलग्न कर दिया है।

जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि कोविड-19 के प्रबंधन पर एक सैद्धांतिक राष्ट्रीय योजना है और सॉलिसीटर जनरल मेहता को इसे रिकार्ड पर लाना चाहिए।

मेहता ने कहा कि कोविड-19 के लिये जिस राष्ट्रीय योजना का जिक्र गैर सरकारी संगठन की याचिका में किया गया है, उसे दूसरे मामले में पहले ही रिकार्ड पर लाया जा चुका है।
पीठ ने मेहता की इस दलील को स्वीकार करते हुये सिब्बल से कहा कि यह मुद्दा पहले भी उठा था और उन्होंने योजना पेश कर दी थी। पीठ ने मेहता से कहा कि कोविड-19 प्रबंधन की एक प्रति सिब्बल और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी को उपलब्ध करा दी जाये।

सिंघवी ने कहा कि वह कुछ सुझाव देना चाहते हैं और पुनर्वास का काम क्रमवार होना चाहिए और सरकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिये पंजीकरण आधार नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से बहुत सारे लोग छूट जाते हैं।

उन्होंने कहा कि सरकार इन कामगारों के लिये बीमा के बारे में विचार कर सकती है और इनके पुनर्वास के लिये केन्द्रीकृत योजना तैयार कर सकती है।

मेहता ने सिंघवी से कहा कि उन्हें जवाब में दाखिल हलफनामों का अध्ययन करना चाहिए क्योंकि इनमें सारे प्रासंगिक विवरण शामिल हैं।

इससे पहले, 19 जून को न्यायालय ने केन्द्र और सभी राज्यों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि रास्तों में फंसे उन सभी कामगारों को, जो अपने घर लौटना चाहते हैं, उन्हें कोई किराया वसूल किये बगैर ही उनके पैतृक निवास स्थानों तक पहुंचाया जाये।

शीर्ष अदालत ने इससे पहले 28 मई को इस मामले में अनेक निर्देश दिये थे। न्यायालय ने राज्यों से कहा था कि घर लौट रहे इन श्रमिकों से किसी भी तरह का भाड़ा वसूल नहीं किया जाये।



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