मैं बोल सकता हूं क्योंकि मेरे पास ज्यादा कुछ खोने को नहीं है: नसीरुद्दीन शाह

Edited By PTI News Agency,Updated: 17 Sep, 2021 10:30 AM

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नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा) अभिनेता नसीरुद्दीन शाह का कहना है कि 20-30 सालों से फिल्मोद्योग के शिखर पर रहने वाले ‘खानों’ को अपनी क्षमता पर और अधिक विश्वास होना चाहिए था।

नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा) अभिनेता नसीरुद्दीन शाह का कहना है कि 20-30 सालों से फिल्मोद्योग के शिखर पर रहने वाले ‘खानों’ को अपनी क्षमता पर और अधिक विश्वास होना चाहिए था।
उन्होंने ‘इंडिया टुडे’ को दिए एक साक्षात्कार में आमिर खान और शाहरुख खान पर कटाक्ष करते हुए यह कहा।
शाह ने कहा कि वह समझते हैं कि ‘बॉलीवुड के खान’ अपना मत क्यों नहीं रखते, लेकिन वह (शाह) अपनी बात कह सकते हैं क्योंकि उनके पास खोने को कुछ नहीं है।
मंगलवार रात को प्रसारित किये गए साक्षात्कार में उन्होंने कहा, “उन्हें कितना नुकसान होगा? एक या दो विज्ञापनों का नुकसान होगा। यह कुछ भी नहीं…... उन्हें जिस परेशानी से गुजरना पड़ेगा , वह मायने रखता है। वह उनके लिए मुश्किल होगा। आमिर और शाहरुख अपने एक नुकसानरहित बयान के बाद पूरी तरह पीछे हट गए थे, यह इसका एक उदाहरण है। मुझे लगता है कि मैं बोल सकता हूं क्योंकि मेरे पास ज्यादा कुछ खोने को नहीं है।”
अभिनेता ने कहा कि फिल्मोद्योग के पास आजाद रहने की ताकत है और काश, उनके (आमिर और शाह के) पास पर्याप्त साहस भी होता। उन्होंने कहा, “लेकिन वे नहीं बोलते क्योंकि उनके हित बहुत बड़े हैं, उनके पास खोने को बहुत कुछ है और वे आसानी से निशाना बन जाते हैं।”
शाह को उनकी बेबाकी के लिए जाना जाता है। उन्होंने “बढ़ती दक्षिणपंथी कट्टरता’’ के बारे में भी आगाह किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि तालिबान के उभार पर जश्न मनाने वाले भारतीय मुस्लिमों के एक वर्ग पर उनकी टिप्पणी को एक समुदाय ने गलत अर्थों में लिया।
उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, “मुझे लगता है कि मैंने और अधिक स्पष्टता से अपनी न कह कर गलती की। मैंने पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए नहीं कहा था जैसा कि कुछ लोगों ने इसका मतलब निकाला। मुस्लिमों ने इसका बुरा माना। हिन्दू इससे खुश हो रहे हैं। मेरा इरादा यह दोनों ही नहीं था।”
शाह ने इस महीने एक वीडियो जारी कर उन भारतीय मुस्लिमों पर अपने विचार प्रकट किये थे जो अफगानिस्तान में तालिबान के लौटने पर खुश थे। इसके बाद से शाह पिछले कुछ दिनों से अपनी टिप्पणी पर स्पष्टीकरण देने और देश तथा दुनिया में कट्टरता पर अपनी चिंता जाहिर करने के लिए सिलसिलेवार साक्षात्कार दे रहे हैं।
शाह ने एक अन्य साक्षात्कार में कहा कि उन्हें घृणा फैलाने वाले संदेशों और मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध हिंसा की वकालत करने वाली मानसिकता के प्रति चिंता है लेकिन वह यह नहीं मानते कि भारत का ‘तालिबानीकरण’ हो रहा है।
अभिनेता ने कहा कि उन्हें आश्चर्य हुआ कि जिस बयान का मुस्लिमों ने गलत मतलब निकाला, दक्षिणपंथियों ने उसके लिए उनका समर्थन किया। शाह ने बरखा दत्त के ‘मोजो स्टोरी’ पर कहा, “... मुझे नहीं लगता कि हम तालिबानीकरण की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन जो हो रहा है वह चिंताजनक है जहां आप खुलकर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा की वकालत करने वाले बयान देख रहे हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर घृणा फैलाने वाले संदेश भेजे जा रहे हैं।”
उन्होंने कहा, “इन सबके बावजूद, मैं भविष्य के लिए निराशावादी नहीं हूं और यह नहीं मानता कि हम तालिबान के रास्ते पर बढ़ रहे हैं।” बॉलीवुड के वरिष्ठ अभिनेता ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘अब्बा जान’ वाले बयान की भी तीखी आलोचना करते हुए कहा कि सभी मुसलमान अपने पिता को ‘अब्बा जान’ नहीं कहते। आदित्यनाथ ने कुछ दिन पहले एक सार्वजनिक सभा में कहा था कि उनके सत्ता में आने से पहले गरीबों का राशन वह लोग ले जाते थे जो ‘अब्बा जान’ कहते हैं।
इंडिया टुडे को दिए साक्षात्कार में शाह ने कहा, “मैं अपने पिता को अब्बा जान नहीं कहता था। मैं उन्हें बाबा कहता था और मेरी हिन्दू पत्नी भी अपने पिता को यही कहती थी। तो यह व्यक्ति जो है वही कह रहा है, इस पर प्रतिक्रिया देने का कोई अर्थ नहीं है। लेकिन यह सच है कि उनका ‘अब्बा जान’ वाला बयान घृणा फैलाने वाले उन बयानों की कड़ी है जो वह पहले से कहते रहे हैं।”
शाह ने ‘नारकोटिक्स जिहाद’ पर केरल के पादरी के विवादास्पद बयान पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा, “जब लव जिहाद और अब पादरी द्वारा नारकोटिक्स जिहाद जैसे ऊलजलूल बयान आ रहे हैं... तो मुझे नहीं पता कि वह ये सब किसके प्रभाव में आकर कह रहे हैं। लेकिन इसका मकसद अलगाव पैदा करना है... या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा अब्बा जान वाला बयान जो प्रतिक्रिया देने लायक भी नहीं है।”
यह पूछे जाने पर कि वह उन हिन्दुओं के बारे में क्या कहेंगे जिन्होंने उनके तालिबान वाले वक्तव्य पर उनकी पीठ थपथपाई थी, शाह ने कहा कि हिन्दुओं को भारत में उभरते दक्षिणपंथी उन्माद के विरुद्ध बोलना चाहिए।

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