ऐसा वक्त है कि किसी की भी भावनाओं को किसी भी बात से ठेस पहुंच जाती है: कश्यप

Edited By PTI News Agency,Updated: 30 Jun, 2022 08:00 PM

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नयी दिल्ली, 30 जून (भाषा) लेखक-फिल्मकार अनुराग कश्यप का कहना है कि कलाकार ऐसे वक्त में कंटेन्ट तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं जब किसी भी बात पर, किसी भी शख्स की भावनाओं को आसानी से ठेस पहुंच जाती है।

नयी दिल्ली, 30 जून (भाषा) लेखक-फिल्मकार अनुराग कश्यप का कहना है कि कलाकार ऐसे वक्त में कंटेन्ट तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं जब किसी भी बात पर, किसी भी शख्स की भावनाओं को आसानी से ठेस पहुंच जाती है।

कश्यप ने देश के मौजूदा रचनात्मक माहौल को ‘सीमित’ बताते हुए कहा कि राजनीति और धर्म से संबंधित किसी भी विषय को फौरन अस्वीकार कर दिया जाता है।

लंदन में बुधवार को ‘दोबारा’ की बीएफआई स्क्रीनिंग के बाद चर्चा के दौरान निर्देशक ने कहा, “ मुझे लंबी-चौड़ी कहानी सुनाना पसंद है और मैं बहुत सारी सामग्री पर काम भी कर रहा हूं लेकिन हम इस तरह के माहौल से जूझ रहे हैं जहां आप जिस तरह के नाटक कर सकते हैं, उसमें संभावनाएं बहुत सीमित हैं। फिलहाल, हम ऐसी कोई चीज़ नहीं कर सकते हैं जिसका राजनीति या धर्म से रत्ती बराबर भी संबंध हो। इसके लिए फौरन इनकार कर दिया जाता है।”
निर्देशक ने कहा कि सीमित माहौल के बावजूद यह लंबी चौड़ी कहानी और प्रायोगिक कहानियां बताने का सही वक्त है।

कश्यप ने कहा, ‘‘ इनकार इसलिए नहीं है कि किसी ने यह कह दिया कि आप वह नहीं कर सकते हैं। यह इसलिए है कि सब लोग ऐसे माहौल में रह रहे हैं जहां वे नहीं जानते हैं कि कोई शख्स कैसे प्रतिक्रिया देगा। फिलहाल हम बहुत कमज़ोर हैं और किसी भी चीज़ पर हमारी भावनाओं को आसानी से ठेस पहुंच जाती है।”
‘दोबारा’ में काम करने वाली अभिनेत्री तापसी पन्नू और पवैल गुलाटी भी फिल्मकार कश्यप की फिल्म स्कॉलर रैचेल डायर के साथ बातचीत में शामिल हुए।

“दोबारा’ फिल्म 23 जून को लंदन भारतीय फिल्म महोत्सव (एलआईएफएफ) में प्रदर्शित की गई थी और यह 2018 में आई स्पैनिश फिल्म ‘मिरगी’ की हिंदी रीमेक है।

निर्देशक ने कहा कि उन्होंने पहली बार किसी रीमेक पर काम किया है।

कश्यप ने उनकी सबसे लोकप्रिय फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के बारे में भी बात की जिसकी रिलीज़ को पिछले हफ्ते 10 साल हो गए हैं।

वहीं पन्नू ने दक्षिण भारतीय फिल्मों के उत्तर भारत में लोकप्रियता हासिल करने पर बात रखी। उन्होंने कहा कि इसका बहुत श्रेय डीजिटल मंच को जाता है।

2010 में तेलुगु फिल्म ‘झुम्मंदी नादम’ से अभिनय की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री ने कहा कि दक्षिण में जिस तरह की फिल्म बनाई गई थी, शायद उनका बजट एसएस राजामोली की फिल्मों की तरह बड़ा नहीं था, लेकिन उन्हें ‘क्षेत्रीय’ माना गया पर वे अच्छी थीं।



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