NSG भारत की सबसे पावरफुल फोर्स, जानिए कैसे तैयार किए जाते हैं ये विशेष जवान

Edited By ,Updated: 29 Sep, 2016 06:43 PM

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एनएसजी (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड)देश के सबसे अहम कमांडो फोर्स में एक है जो गृह मंत्रालय के अंदर काम करते हैं।

नई दिल्ली:एनएसजी (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड)देश के सबसे अहम कमांडो फोर्स में एक है जो गृह मंत्रालय के अंदर काम करते हैं। आतंकवादियों की ओर से आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर लडऩे के लिए इन्हें विशेष तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। 26/11 मुंबई हमलों के दौरान एनएसजी की भूमिका को सभी ने सराहा था। इसके साथ ही वीआईपी सुरक्षा, बम निरोधक और एंटी हाइजैकिंग के लिए इन्हें खासतौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इनमें आर्मी के लड़ाके शामिल किए जाते हैं, हालांकि दूसरे फोर्सेस से भी लोग शामिल किए जाते हैं। इनकी फुर्ती और तेजी की वजह से इन्हें ब्लैक कैट भी कहा जाता है।

1984 में किया गया एनएसजी का गठन
एनएसजी को 16 अक्टूबर 1984 में बनाया गया था ताकि देश में होने वाली आतंकी गतिविधियों से निपटा जा सके। एनएसजी का मूल मंत्र है सर्वत्र सर्वोत्तम सुरक्षा। कमांडोज एनएसजी को नेवर से गिव अप भी कहते हैं। लेकिन ब्लैक कैट कमांडो बनना कोई आसान काम नहीं है। काली वर्दी और बिल्ली जैसी चपलता के चलते इन्हें ब्लैक कैट कहा जाता है। हर किसी को ब्लैक कैट कमांडो बनने का मौका नहीं मिलता है। इसके लिए आर्मी, पैरा मिलिट्री या पुलिस में होना जरूरी है। आर्मी से 3 और पैरा मिलिट्री से 5 साल के लिए जवान कमांडो ट्रेनिंग के लिए आते हैं।

देश में करीब 14500 एनएसजी कमांडो
देश में करीब 14500 एनएसजी कमांडो हैं, जिन्हें ढाई साल की कड़ी ट्रेनिंग के बाद तैयार किया जाता है। लेकिन ये ट्रेनिंग इतनी मुश्किल होती है कि आधे तो कुछ ही महीनों में छोड़कर चले जाते हैं। ट्रेनिंग के दौरान इन्हें उफनती नदियों और आग से गुजरना, बिना सहारे पहाड़ पर चढऩा पड़ता है। भारी बोझ के साथ कई किमी की दौड़ और घने जंगलों में रात गुजारना भी इनकी ट्रेनिंग का हिस्सा है।

अत्याधुनिक हथियारों से रहते हैं लेस
अत्याधुनिक हथियारों से लैस इस फोर्स को हवाई क्षेत्र में हमला करने, दुश्मन की टोह लेने, हवाई आक्रमण करने, स्पेशल कॉम्बैट और रेस्क्यू ऑपरेशन्स के लिए खास तौर पर तैयार किया जाता है। आमतौर पर चार गरुड़ कमांडो मिलकर एक छोटा दस्ता बनाते हैं जिसे ट्रैक कहते हैं। चार-चार कमांडो के ऐसे ही तीन ट्रैक बनाए जाते हैं। पहला ट्रैक दुश्मन पर हमला बोलता है, जबकि कमान नंबर टू के पास होती है। इतने में नंबर थ्री टेलिस्कॉपिक गन से निशाना लगाता है, जबकि आखिरी गरुड़ भारी हथियारों से तबाही मचाता है। ये आगे बढऩे की तकनीक होती है।

इसे कैटर पिलर पैंतरा कहते हैं। पोर्टेबल लेजर डेजिग्नेशन सिस्टम एक दूरबीन का काम करता है, जो फाइटर प्लेन से जुड़ा होता है। इसके द्वारा कमांडो अपने दुश्मन को जमीन पर 20 किमी तक देख सकता है। इसके बाद कमांडोज टारगेट सेट करते हैं। फाइटर प्लेन उनका खात्मा करता है। आर्मी फोर्सेस से अलग ये कमांडो काली टोपी पहनते हैं। इन्हें मुख्य तौर पर माओवादियों के खिलाफ मुहिम में शामिल किया जाता रहा है।

इजराइल से मंगाए जाते हैं खास हथियार
एनएसजी के लिए हथियार खास तौर पर इजराइल से मंगाए जाते हैं। ये रात के अंधेरे में भी खतरनाक ऑपरेशन्स को अंजाम दे सकते हैं। ये फोर्स एक मशीन की तरह काम करती है। जिसके पुर्जे एक-दूसरे से मिले होते हैं।

फिजिकल ट्रेनिंग
फिजिकल ट्रेनिंग- इसके लिए उम्र 35 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। सबसे पहले फिजिकल और मेंटल टेस्ट होता है। 12 सप्ताह तक चलने वाली ये देश की सबसे कठिन ट्रेनिंग होती है। शुरूआत में जवानों में 30-40 प्रतिशत फिटनेस योग्यता होती है, जो ट्रेनिंग खत्म होने तक 80-90 प्रतिशत तक हो जाती है

फिजिकल ट्रेनिंग के बाद होता है इंटरव्यू
कमांडोज की टे्रनिंग बहुत ही कठोर होती है। जिस तरह से आईएएस चुनने के लिए पहले प्री-परीक्षा होती है, फिर मेन और अंत में इंटरव्यू। जिसका शायद सबसे बड़ा मकसद यह होता है कि अधिक से अधिक योग्य लोगों का चयन हो। ठीक उसी तरह से कमांडोज फोर्स के लिए भी कई चरणों में चुनाव होता है। सबसे पहले जिन रंगरुटों का कमांडोज के लिए चयन होता है, वह अपनी-अपनी सेनाओं के सर्वश्रेष्ठ सैनिक होते हैं। इसके बाद भी उनका चयन कई चरणों में गुजर कर होता है। अंत में ये सैनिक टेनिंग के लिए मानेसर पहुंचते हैं तो यह देश के सबसे कीमती और जांबाज सैनिक होते हैं।

15-20 फीसदी सैनिक अंतिम दौड़ तक पहुंचने में रह जाते
जरूरी नहीं है कि टे्रनिंग सेंटर पहुंचने के बाद भी कोई सैनिक अंतिम रूप से कमांडो बन ही जाए। नब्बे दिन की कठोर टेनिंग के पहले भी एक हफ्ते की ऐसी टे्रनिंग होती है जिसमें 15-20 फीसदी सैनिक अंतिम दौड़ तक पहुंचने में रह जाते हैं। लेकिन इसके बाद जो सैनिक बचते हैं और अगर उन्होंने नब्बे दिन की टेनिंग कुशलता से पूरी कर ली तो फिर ये सैनिक ऐसे खतरनाक कमांडोज में ढलते हैं जिनकी डिक्शनरी में असफलता जैसा कोई शब्द कभी होता ही नहीं।

नब्बे दिन की विशेष ट्रेनिंग सफलतापूर्वक पूरी करनी होती है
एनएसजी कमांडोज कीे ट्रेनिंग कितनी कठिन होती है, इसको कुछ तथ्यों से समझा जा सकता है। किसी भी चुने हुए रंगरुट को एनएसजी कमांडो बनने से पहले नब्बे दिन की विशेष टेनिंग सफलतापूर्वक पूरी करनी होती है जिसकी शुरुआत में 18 मिनट के भीतर 26 करतब करने होते हैं और 780 मीटर की बाधाओं को पार करना होता है। अगर चुने गये रंगरुट शुरुआत में यह सारा कोर्स बीस से पच्चीस मिनट के भीतर पूरा नहीं करते, तो उन्हें रिजेक्ट कर दिया जाता है। जबकि टेनिंग के बाद इन्हें अधिक से अधिक 18 मिनट के भीतर ये तमाम गतिविधियां निपटानी होती हैं।

ए श्रेणी हासिल करनी है तो नौ मिनट में पूरा करना होता है कोर्स
अगर किसी कमांडो को ए-श्रेणी हासिल करनी है तो उसे यह पूरा कोर्स नौ मिनट के भीतर पूरा करके दिखाना होता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस प्रारंभिक कोर्स में जो बाधाएं होती हैं, वे सब एक जैसी नहीं होतीं। इन बाधाओं में कोई तिरछी होती है तो कोई सीधी। कोई ऊंची होती है तो कोई जमीन से सटी हुई। अलग-अलग तरह की 780 मीटर की इस बाधा को एनएसजी के टेनिंग रंगरूट को अधिकतम 25 मिनट के भीतर और अच्छे कमांडोज में शुमार होने के लिए 9 मिनट के भीतर पूरी करनी होती है।

50-62 हजार जिंदा कारतूसों का फायर प्रैक्टिस में प्रयोग करना होता है
किसी भी चुने गए कमांडो को नब्बे दिनों की अनिवार्य ट्रेनिंग के दौरान पचास से बासठ हजार जिंदा कारतूसों का अपनी फायर प्रैक्टिस में प्रयोग करना होता है। जबकि किसी सामान्य सैनिक की पूरी जिंदगी में भी इतनी फायर प्रैक्टिस नहीं होती। कई बार तो एक दिन में ही एक रंगरूट को दो से तीन हजार फायर करनी होती है।

मानसिक ट्रेनिंग होती है सबसे सख्त
कमांडोज की मानसिक टेनिंग भी बेहद सख्त होती है। उनमें कूट-कूट कर देशभक्ति का जज्बा भरा जाता है। अपने कर्तव्य के प्रति ऊंचे मानदंड रखने की लगन भरी जाती है। दुश्मन पर हर स्थिति में विजय प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा भरी जाती है और अंत में अपने कर्तव्य के प्रति हर हाल में ईमानदार बने रहने की मानसिक टे्रनिंग दी जाती है। इस दौरान इन कमांडोज को बाहरी दुनिया से आमतौर पर बिल्कुल काट कर रखा जाता है। न उन्हें अपने घर से संपर्क रखने की इजाजत होती है और न ही उन सैन्य संगठनों से, जहां से वे आए होते हैं

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