महिला दिवस पर विशेष

Edited By Anil dev,Updated: 06 Mar, 2021 04:58 PM

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सिद्वान्तक तौर पर महिला दिवस उन औरतों को समर्पित होना चाहिए जिन्होनें अपनी स्वतन्त्रता को साथ लेकर न केवल अपने लिए बल्कि औरों के लिए भी नए आयाम और मापदण्ड़ पेश किए और अपनी दृढ़ता गुणवता मजबूती, बहादुरी व संवेदनशीलता का प्रमाण दिया।

नेशनल डेस्क: सिद्वान्तक तौर पर महिला दिवस उन औरतों को समर्पित होना चाहिए जिन्होनें अपनी स्वतन्त्रता को साथ लेकर न केवल अपने लिए बल्कि औरों के लिए भी नए आयाम और मापदण्ड़ पेश किए और अपनी दृढ़ता गुणवता मजबूती, बहादुरी व संवेदनशीलता का प्रमाण दिया। महिला दिवस के इस महत्वपूर्ण अवसर पर दिल तो करता है हम विकासशील, प्रतिभाशाली और शक्तिशाली महिलाओं के बारे में व उनके शोर्य के बारे में चर्चा करें और आपको उनसे अवगत करवाएं जिसमें हम सब हर्षोउल्लास और उत्साह से भर जाएं। पर हमारी नजर में बहादुर महिलाएं सिर्फ वो नहीं है जो बार्डर पर जाकर अपनी सेवाएं देती है। बल्कि वो भी है जिन्होनें पुरुषों की करुता, बीमार मानसिकता व दरिन्दगी को अपने ऊपर सहा है। तब हमारे अन्दर यह प्रश्न उत्पन्न होता, जो हमें दिल की गहराई से झंकझोर देता है कि क्या महिला दिवस मनाना एकमात्र ढ़ोंग है। क्योंकि भारत की अधिक प्रतिशत महिलाएं तो इतने सालों बाद भी प्रताडित हो रही है जो महिलाएं आजादी के लिए अपने व्यक्तित्व को निखारने व पहचानने के लिए घर से बाहर निकलती उनकी आबरु महफूज़ नहीं होती। और जो इज्जत के साथ घर में रहती हैउन्हें स्वतन्त्रता नहीं मिलती। 

ऐसी बहुत सारी घटनाएं है जो प्रमाणित करती है कि महिलाएं अभी भी सुरक्षित नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो के हिसाब से भारत में हर रोज 87: महिलाएं बलात्कार की शिकार होती है। कुछ बलात्कार की घटनाएं तो इतनी भयानक और संवेदनहीन है जो यह दर्शाती है कि आज भी पुरुष औरत को भोग मात्र का एक खिलौना ही समझता है जो आसानी से मिल जाएं तो ठीक नहीं तो पुरुष एक उदण्ड व सिरफिरे बच्चे की तरह न केवल वो औरत रुपी खिलौने से खेलता है बल्कि खेलने के बाद उसे तोड़ मरोड़ के फेंक देता है, जिससे न तो खिलौना दुबारा जुड़ पाता है अन्यथा लोग भी उसे फालतू समझ कर ठोकर मारने से परहेज नहीं करते। ऐसे ही कुछ सनसनीखेज केसों के बारे में आज महिला दिवस पर याद करना अत्यन्त जरुरी है। हैदराबाद की डाक्टर प्रियदर्शनी जो रात को स्कूटी पर अपने घर जा रही थी अचानक स्कूटी पंक्चर होने पर मदद के बहाने चार आरोपियों ने उसके साथ गैंगरेप किया और कुर्कम करते समय उसका मुँह बन्द कर दिया और उसकी मृत्यु होने के पश्चात् उसे जला दिया। 

हाथरस गैंगरेप केस में उत्तर प्रदेश सरकार और शासन प्रणाली पर बड़े सवाल पैदा किए। 10 सितम्बर 2020 की हाथरस के एक गांव में 20 साल की लढ़की से गैंगरेप किया गया रेप के दौरान उसे इतनी यातनाएं दी गई कि 29 सितम्बर को उसने अस्पताल में दम तोड़ दिया इस पर राजनीति भी खूब हुई। पुलिस प्रशासन ने अपने बचाव के लिए रातों रात 2.30 बजे बिना लड़की के घर वालों की सहमति से दाह संस्कार कर दिया। फिलहाल इस केस की जांच सी.बी.आई कर रही है। दिल्ली निर्भया गैंगरेप केस एक ऐसा केस है जिसने पूरे देश को हिला के रख दिया।16 दिसम्बर 2012 को लड़की अपने एक दोस्त के साथ फिल्म देखकर लौट रही थी कि बस में उसके साथ बड़ी ही बेरहमी से गैंगरेप किया गया उसे और उसके दोस्त को यातनाएं देकर सड़क पर निर्वस्त्र फेंक दिया। कुछ दिनों बाद ही लड़की की अस्पताल में मृत्यु हो गई लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद 20 मार्च 2020 को निर्भया को इन्साफ मिला। इस दौरान महिला सम्बन्धी कानूनों में कुछ संसोधन भी किए गए। उन आरोपियों में से एक ने जेल में ही आत्महत्या कर ली एक आरोपी नाबालिग होने के कारण कुछ सालों की कैद के बाद पैरोल पर छूट गया बाकी आरोपियों को फांसी की सजा हुई।

नर्स अरुणा शानबग केस भी अपने आप में बहुत ही भयानक और दर्दनाक है। 1973 में शानबाग के के.ई.एम अस्पताल में रेप की शिकार हुई। उसी अस्पताल के एक वार्ड ब्याय व स्वीपर मोहन लाल ने बाल्मीकि कुत्ते की जंजीर से अरुणा को बांधकर अप्राकृतिक ढंग से रेप किया उसके फलस्वरुप अरुणा 42 साल कोमा में रही और 18 मई 2015 में वो चल बसी। सबूतों के अभाव के कारण आरोपी को केवल लूटपाट की घटना का आरोपी मानते हुए उसे सिर्फ सात साल की सजा हुई बाद में वह छूट गया। मुम्बई गैंगरेप केस में एक महिला पत्रकार से तब रेप हुआ जब वो अपने एक साथी के साथ पिछड़े इलाके में अपने एक असाइनमेंट की फोटोग्राफी के लिए गई तब पांच युवकों कासिम बंगाली, सलीम अंसारी, चांद शेख, सिराज रहमान और विजय यादव ने रेप किया उसके साथी को भी रेप के लिए बोला गया उसके मना करने पर उसे बुरी तरह पीटा गया। यह कुछ ही केस है जो यहां पर बताए गए ऐसे कितने अनगिनत केस है जिनके आरोपी आज तक पकड़े नहीं गए या पीडित  लोगों ने शिकायत ही नहीं की। कुछ बलात्कार ऐसे हैं जिनमें या तो रिश्तेदार या पड़ोसी शामिल होते है जिन पर हम ज्यादा भरोसा करते हैं। 

आम धारणा यह है कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कमजोर होती है यहां तक कि खुद महिलाएं भीयही मानती है पर यह धारणा गल्त है क्योंकि पुरुषों को जन्म देने वाली महिला खुद कमजोर कैसे  हो सकती है। जबकि वास्तविकता ही किसी महिला को अकेले या कम वस्त्रों में देखते हैं अपने पर काबू नहीं रखते हुए महिलाओं पर टूट पडते है। जबकि पुरुष चाहे कितना भी सुन्दर या कम से कम कपड़ों में क्यों न हो, महिलाएं किसी तरह कमजोर नहीं पड़ती। बल्कि कमजोर पलों में पुरुष के द्वारा किए गए बलात्कार और दरिंदगी को अपने मजबूत मन और शरीर पर सहती है। फिर वो कैसे कमजोर हुई। मेरी नजर में महिला दिवस एक भ्रम मात्र न होकर वास्तविक व सार्थक तभी होगा जब प्रत्येक महिला अपने अन्दर की असीम शक्ति क्षमता और बुद्विमता को पहचान कर इस पुरुष प्रधान देश में अपनी प्रभावपूर्ण उपस्थिति का आभास कराएं और पुरुष भी अपनी बीमार मानसिकता को त्याग कर महिलाओं का शारीरक और मानसिक बलात्कार न करें और उसकी गरिमा को बनाएं रखें।

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