प्यार वाली होली के रंग में चुनरवाली का जादू

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Mar, 2018 03:35 PM

chunarwali magic in the color of love

होली आयी रे, आयी रे, होली आयी रे! रंगों की होली आयी रे! होली के गीतों की धुन में सब झूम उठे हैं। हर तरफ़ रंगों की बारिश हो रही है। एक-दूसरे के उपर पानी से भरे गुब्बारे फेंके जा रहें हैं। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक होली की खुशी उनके चेहरों पर झलक रही...

होली आयी रे, आयी रे, होली आयी रे! रंगों की होली आयी रे! होली के गीतों की धुन में सब झूम उठे हैं। हर तरफ़ रंगों की बारिश हो रही है। एक-दूसरे के उपर पानी से भरे गुब्बारे फेंके जा रहें हैं। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक होली की खुशी उनके चेहरों पर झलक रही है। लोगों के घरों में कई तरह के पकवान बन रहें है। रंगों के साथ प्यार की भी बारिश हो रही है। कोई अपने परिवार के साथ तो कोई अपने प्रेमिका के साथ होली के मौज़-मस्ती में मग्न है। आखिर मस्ती तो बनती है। साल में एक बार ही तो आता है यह त्यौहार। इन सब के अलावा कोई 'चुनरवाली' है जो भीग रही है। जी हां वही लगभग 25 साल पूरानी, 'रंग बरसे भीगे चुनरवाली'। मुझे समझ नहीं आता कि भला 25 साल से जो चुनरवाली भीग रही है उसे कोई बीमारी क्यों नहीं हुई। यदि कोई इतने लंबे समय से रंगों की बारिश में भीगता तो उसे निमोनिया हो जाता या फिर रंगों से एलर्जी। लेकिन ये चुनरवाली आज भी चुस्त-तंदरूस्त है। 

 

'रंग बरसे भीगे चुनरवाली' क्या रंग केवल चुनरवाली के उपर ही बरसता है। ऐसा तो नहीं कि भगवान की कृपा केवल उस चुनरवाली पर है। कभी-कभी तो लगता है कि होली में केवल चुनरवाली ही क्यों भींगती है। क्या बाकी लोग सूखे रह जाते हैं। एक बात मानने वाली है कि उस चुनरवाली ने अपने अदायों से लोगों का मन मोह लिया है। आखिर चुनरवाली भी बड़ी सयानी है। शायद आपको लगता हो कि चुनरवाली को भीगना ज्यादा पसंद है। लेकिन वो चुनरवाली सिर्फ होली के दो हफ्ते पहले से भीगना शुरू करती है। मुझे ऐसा लगता है कि उसके मात-पिता ने उसे खुली छूट दे रखी हो। मानो वह रंगों की बारिश में खुद तो भीगती और सबको भीगने को कहती हो। चलो इसी बहाने सब भीग तो जाते हैं। 

 

होली के दिनों में हर गल्ली, मोहल्ले, गांव और शहरों में संगीत की गूंज सुनाई देती है। लोग खुशी-खुशी नाचते हैं। कई लोगों के लिए यह त्यौहार मानो जीवन का एक मोड़ हो। खासकर प्रेमी और प्रेमिका के बीच। दोनों को अपने प्यार का इज़हार करने का मौका मिल जाता है। दोनों एक-दूसरे को रंग लगाकर अरमानों को पूरा कर लेते हैं। कहीं न कहीं यह त्यौहार प्यार का त्यौहार है। प्यार मात-पिता का, प्यार बच्चों और बूढ़ों का, प्यार लड़के और लड़की का और न जाने कितनों का प्यार कितनों से। प्यार की बातें तो हो गई। अब ज़रा चुनरवाली की बात कर ली जाए। कभी-कभी लगता है चुनरवाली हो या चुनारवाली पच्चीस सालों से भीग रही है 'बेचारी'। अब तो उसकी उम्र भी ज्यादा हो गयी। उसको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। उसने रंगों की बारिश में सबको भीगा दिया। 

 

अब उसे भीगने-भागने की नादानी खत्म करनी चाहिए। उसे सावधानी बरतने की जरूरत है। कहीं किसी दिन तबीयत खराब हुई तो सँभलनी मुश्किल हो जाएगी। उस चुनरवाली के बारे में सोचते हुए हम थोड़े भावुक हो जाते हैं। जिस चुनरवाली को हम पच्चीस सालों से सुन रहे हैं उससे हमारी मुलाकात भले ही न हुई हो लेकिन संवेदना के स्तर पर लो लगाव हो ही जाता है। अब आप समझ गये होंगे कि हम ये सब क्यों कह रहे हैं। मकसद केवल एक है कि आप सच सुनने की आदत डाल लीजिए। 'रंग बरसे चुनरवाली' को हमने अपने दिमाग में जगह दे दी है। उदाहरण के तौर पर यदि बच्चे को बचपन से 'ए' फाॅर 'एप्पल' सिखाया जाए तो वह बड़ा होकर भी पूछने पर 'ए' फाॅर 'एप्पल' ही कहेगा। कुछ ऐसा ही है चुनरवाली का जादू जो सिर चढ़कर बोलता है। होली का त्यौहार जैसे ही आता है तो हमें यही लगता है और यही अहसास होता है। अब करें तो क्या करें।

 

अंकित कुंवर

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