Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Feb, 2018 10:43 AM
एक बार एक संत अपने आश्रम के नजदीक स्थित बगीचे में पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि सारे पेड़-पौधे मुरझाए हुए हैं। यह देख संत चिंतित हो गए और एक-एक कर सभी पेड़-पौधों से उनकी इस हालत की वजह जानना चाही।
एक बार एक संत अपने आश्रम के नजदीक स्थित बगीचे में पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि सारे पेड़-पौधे मुरझाए हुए हैं। यह देख संत चिंतित हो गए और एक-एक कर सभी पेड़-पौधों से उनकी इस हालत की वजह जानना चाही।
शाहबलूत (ओक) के वृक्ष ने कहा, ‘‘मैं मर रहा हूं क्योंकि मुझे ईश्वर ने देवदार जितना लंबा नहीं बनाया।’’ संत ने देवदार की ओर देखा तो उसके भी कंधे झुके हुए थे। वह इसलिए मुरझा रहा था क्योंकि वह अंगूर की बेलों की भांति फल पैदा नहीं कर सकता था। वहीं अंगूर की बेल इसलिए मरी जा रही थी कि वह गुलाब की तरह खिल नहीं पाती थी। संत बगीचे में थोड़ा और आगे बढ़े तो उन्हें एक ऐसा पेड़ नजर आया जो भरपूर खिला और ताजगी में नहाया हुआ था।
संत ने उससे पूछा, ‘‘बड़ी अजीब बात है! मैं पूरे बाग में घूम चुका हूं लेकिन एक से बढ़कर एक मजबूत और बड़े-बड़े वृक्ष कोई न कोई दुख लिए बैठे हैं। पर तुम इतने प्रसन्न नजर आ रहे हो, इसका राज क्या है?’’ पेड़ बोला, ‘‘बाकी पेड़ दरअसल अपनी खूबियां देखने की बजाय दूसरों की विशेषताएं देख उनसे अपनी तुलना कर दुखी हैं। वहीं मेरा यह मानना है कि मेरे मालिक ने मुझे कुछ सोचकर ही इस बगीचे में रोपित किया होगा।
शायद उसकी चाहत रही होगी कि मैं अपनी खूबियों के सहारे बगीचे को सुंदर और समृद्ध बनाऊं। इसीलिए मैं किसी और की तरह बनने की बजाय अपनी क्षमता के अनुसार श्रेष्ठतम बनने का प्रयास करता हूं और प्रसन्न रहता हूं।’’
हम भी अक्सर दूसरों से अपनी तुलना कर खुद को कमतर आंकने की गलती कर बैठते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि ईश्वर ने इस जगत में हर प्राणी को किसी विशिष्ट खूबी से नवाजा है। हमारे भीतर भी कुछ ऐसी खूबियां हैं, जो दूसरों में नहीं होंगी। जरूरत है तो सिर्फ अपनी खूबियों को पहचानने की और उन्हें विकसित कर अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने की।