श्रीमद्भगवद्गीता: परमेश्वर को अनुभव करने की यही है सही विधि

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jul, 2017 10:09 AM

srimad bhagavad gita

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद अध्याय 7: भगवद्ज्ञान  भगवान हैं सर्वव्यापी

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद अध्याय 7: भगवद्ज्ञान 
भगवान हैं सर्वव्यापी

रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययो:।
प्रणव: सर्ववेदेषु शब्द: खे पौरुषं नृषु॥८॥

शब्दार्थ :
रस:—स्वाद; अहम्—मैं; अप्सु—जल में; कौन्तेय—हे कुंतीपुत्र; प्रभा—प्रकाश; अस्मि—हूं; शशि-सूर्ययो:—चंद्रमा तथा सूर्य का; प्रणव:—ओंकार के अ, उ, म अक्षर— ये तीन अक्षर; सर्व—समस्त; वेदेषु—वेदों में; शब्द:—शब्द, ध्वनि; खे—आकाश में; पौरुषम्—शक्ति, सामथ्र्य;  नृषु—मनुष्यों में।

अनुवाद : हे कुन्तीपुत्र! मैं जल का स्वाद हूं। सूर्य तथा चंद्रमा का प्रकाश हूं, वैदिक मंत्रों में ओंकार हूं, मैं आकाश में ध्वनि तथा मनुष्य में सामर्थ्य हूं।

तात्पर्य : यह श्लोक बताता है कि भगवान् किस प्रकार अपनी विविध परा तथा अपरा शक्तियों द्वारा सर्वव्यापी हैं। परमेश्वर की प्रारम्भिक अनुभूति उनकी विभिन्न शक्तियों द्वारा हो सकती है और इस प्रकार उनका निराकार रूप में अनुभव होता है। जिस प्रकार सूर्यदेवता एक पुरुष है और अपनी सर्वत्रव्यापी शक्ति-सूर्यप्रकाश-द्वारा अनुभव किया जाता है, उसी प्रकार भगवान अपने धाम में रहते हुए भी अपनी सर्वव्यापी शक्तियों द्वारा अनुभव किए जाते हैं। जल का स्वाद जल का मूलभूत गुण है। कोई भी समुद्र का जल नहीं पीना चाहता क्योंकि इसमें शुद्ध जल के स्वाद के साथ-साथ नमक मिला रहता है।  जल के प्रति आकर्षण का कारण स्वाद की शुद्धि है और यह शुद्ध स्वाद भगवान की शक्तियों में से एक है। निर्विशेषवादी जल में भगवान की उपस्थिति जल के स्वाद के कारण अनुभव करता है और सगुणवादी भगवान् का गुणगान करता है क्योंकि वह प्यास बुझाने के लिए सुस्वादु जल प्रदान करता है। परमेश्वर को अनुभव करने की यही विधि है।

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!