राजस्थान की शान में चार चांद लगाते हैं प्रसिद्ध किले, देखें तस्वीरें

Edited By ,Updated: 01 Oct, 2015 10:48 AM

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राजस्थान अपने नाम से ही वैभव और शान का प्रतीक लगता है। हो भी क्यों न इसके अलग-अलग जिलों में मौजूद किले इसकी शान में चार चांद तो लगाते ही हैं,

राजस्थान अपने नाम से ही वैभव और शान का प्रतीक लगता है। हो भी क्यों न इसके अलग-अलग जिलों में मौजूद किले इसकी शान में चार चांद तो लगाते ही हैं, साथ ही इसके ऐतिहासिक महत्व को भी दर्शाते हैं। राजस्थानी परम्परा तथा विरासत को खुद में संजोए ये किले वास्तव में ऐतिहासिक धरोहर हैं। आइए जानते हैं राजस्थान के कुछ प्रसिद्ध किलों के बारे में : 

कुम्भलगढ़ का किला (जिला राजसमंद)

यह राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित एक मेवाड़ किला है। यहां के पहाड़ी किलों में शुमार इस किले को विश्व विरासत का दर्जा प्राप्त है। 15वीं शताब्दी में राणा कुम्भा के शासन काल के दौरान निर्मित इस किले का विस्तार 19वीं शताब्दी में भी हुआ। कुम्भलगढ़ महाराणा प्रताप का जन्म स्थान भी है। 19वीं शताब्दी तक विभिन्न राजवंशों का इस किले पर शासन रहा, और अब इसे सार्वजनिक तौर पर लोगों के लिए खोल दिया गया है। हर शाम इसमें कुछ समय के लिए शानदार रोशनी की जाती है। यह उदयपुर के उत्तर-पश्चिम में 82 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 

यह चितौडग़ढ़ के बाद मेवाड़ में  सर्वाधिक महत्वपूर्ण किला है। इस किले की दीवार चीन की दीवार के बाद विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है और इसे ‘ग्रेट वाल ऑफ इंडिया’  के नाम से जाना जाता है।

अम्बर का किला  

एक पर्वत के शिखर पर स्थित यह किला जयपुर का मुख्य पर्यटन आकर्षण हैं। असेर नगर का निर्माण मीणा वंश द्वारा करवाया गया था, और आगे चल कर राजा मान सिंह भी इसके शासक रहे थे। यह किला अपनी कलात्मक हिन्दू शैली के कारण प्रसिद्ध है। महल का सौंदर्य बोध इसकी दीवारों पर से झलकता है। लाल चूना पत्थर तथा संगमरमर से बने इस महल में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, शीश महल या जय मंदिर तथा सुख निवास  मौजूद हैं। यह महल राजपूत राजाओं तथा उनके परिवारों की रिहायश हुआ करता था।

चित्तौडग़ढ़ का किला (चित्तौडग़ढ़)

चित्तौडग़ढ़ का किला भारत के सबसे बड़े किलों में से एक है। राजस्थान का यह सबसे शानदार किला है, जिसे विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त है। किला, जिसे चित्तौड़ के नाम से जाना जाता है, मेवाड़ की राजधानी था। आज यह चित्तौडग़ढ़ शहर में स्थित है। इस किले तथा चित्तौडग़ढ़ शहर में ‘जौहर मेला’ नामक राजपूत मेला लगता है। वार्षिक तौर पर मनाया जाने वाला यह मेला जौहरों में से एक ही वर्षगांठ के तौर पर मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मेले का संबंध पद्मिनी के जौहर से है। दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मिनी को प्राप्त करने के लिए जब राणा रत्न सिंह को कत्ल कर दिया था, तो पद्मिनी ने अपनी जान दे दी थी।

जयगढ़ किला (जयपुर) 

इस किले की मोटी दीवारें लाल चूना पत्थर से बनी हैं और ये लम्बाई में 3 किलोमीटर तक फैली हैं और इनकी चौड़ाई 1 किलोमीटर है। इस किले में विश्व की सबसे बड़ी पट्टियों वाली तोप ‘जलवन कैनन’ स्थित है। इसके महल का परिसर काफी बड़ा है। इसमें लक्ष्मी विलास, ललित मंदिर, आराम मंदिर तथा विलास मंदिर शामिल हैं। इस किले में एक शानदार गार्डन तथा एक म्यूजियम स्थित है जिसे देखने पर्यटक विशेष तौर पर यहां आते हैं।

रणथम्भोर का किला यह किला भी विश्व विरासत स्थलों में शुमार है और यह सवाई माधोपुर के निकट स्थित है। सवाई माधोपुर एक छोटा नगर है। रणथम्भोर का किला  विंध्य तथा अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा है। इस किले का नाम दो पर्वतों-रण तथा थम्भोर से लिया गया है। यह किला थम्भोर पर्वत पर स्थित है, जो समुद्र तल से 481 मीटर ऊंचा है। रण पर्वत थम्भोर पर्वत से जुड़ा है। पर्वत के ऊपर से कुछ शानदार नजारों की तस्वीरें खींची जा सकती हैं।

जैसलमेर का किला 

यह विश्व की सबसे बड़ी किला बंदियों में से एक है। जैसलमेर स्थित यह किला भी विश्व विरासत स्थल का दर्जा प्राप्त है। इसका निर्माण 1156 ईस्वी में राजपूत शासक रावल जैसल ने करवाया था, जिनके नाम पर इस किले का नाम रखा गया। यह थार मरुस्थल के मध्य में त्रिकुटा पर्वत पर स्थित है। यह कई युद्धों का गवाह रहा है। इसकी पीली, चूना पत्थरों से बनी दीवारों का रंग दिन के वक्त शेर के शरीर जैसा होता है। जैसे-जैसे सूर्यास्त होता है, तो यह शहद जैसा सुनहरी हो जाता है और यह जैसे छद्म वेश धारण कर लेता है। इसी कारण इसे ‘सोनार किला’ या गोल्डन कोर्ट कहा जाता है।

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